देखा है तुम्हे,
बेशक ख्वाबों में नहीं,
साकार देखा है,
कई बार देखा है,
कभी नज़रें चुराकर,
कभी बहाने बनाकर,
हर बार नई उमंग के साथ
खिलते हुए कई रंग के साथ |
कभी class के पीछे
अपने बेंच को
स्याही से सींचते,
कभी उद्वेग कभी हर्ष और
कभी वक़्त को खींचते,
कभी हौले से मुस्काते,
खुद के ख्यालों में डूब जाते,
किसी आहट से सकुचाते,
अपने सुनहरे ख्वाब को
आँखों में छुपाते,
नज़रें चुराते,
बातें बनाते-फिराते |
कभी बाग़ में,
सरसों के फूलों को सहलाते,
उनकी बालियों को घुमाते,
उन्हें बालों में लगाकर,
इतराते, बलखाते, शरमाते
और खिलखिलाते |
कभी गुनगुनाते देखा है,
कोई नई-सी धुन,
ज़िन्दगी को लुभाते,
मुश्किलों को भूलते,
मिठास लिए हुए धुन,
सुरीली लय में बंधे हुए
इठलाते देखा है |
कभी सड़क पर देखा
बेफिक्र चलते हुए,
दंभ भरते हुए,
गुलाबी लिबास में,
चंचल उल्लास में,
विचरते, टहलते
और मचलते |
कभी group में,
सहेलियों से जुबान लड़ाते हुए,
झूठी बातें बनाते,
और फिर सच बताकर हँसाते,
किसी बात पर भौहें चढाते,
कभी मुह बिचकाते,
कभी फुलाते,
कभी चिढाते, मनाते,
और कभी गुर्राते |
कभी प्रार्थना करते हुए
पलकों को हौले से उठाते,
चोर नजरें सभी पर घुमाते,
कभी व्यस्त पाकर सबको,
नजरें पूरी फैलाते,
दोस्तों को देखकर मुस्काते,
बातें बहुत-सी कह जाते |
किसी teacher की तरफ करते इशारे
और फिर डर के सहम जाते,
कभी पकड़े जाने पर
शरमाते ,घबराते
पछताते और सर झुकाते |
फिर ध्यान से भगवन को
याद करते और मनाते,
अब जपते हर बोल को,
विनय के हर मोल को
पहचानते ,स्वीकारते,
अब मानते और जानते |
कभी शाम को अकेले
बैठे हुए,
ड्योढीयों पर क्यारियों के,
हाथ रख कर डालियों पे,
छोटे पौधों को सवांरते,
तल्लीन हो कुछ सोचते,
दुविधा में डूबे हुए,
किसी व्यथा या नई कोई शरारत,
का हल ढूंढ़ते,
सजाते,बनाते या
शायद अपनाते,
देखा है तुम्हे..........
पर अब ख्वाब लगता है,
बीते हुए कल का नज़ारा
वो लम्हा जिसका हर पल
था तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा ....
बेशक नहीं थे तुम
ख्वाबों में कभी,
पर हमेशा रहोगे,
मेरी यादों में कहीं ...
-धीरू
-धीरू