Sunday 16 October 2016

फ़ोन ही नही उठाती हो !

आज फिर तुम्हारा जन्मदिन था 
मैंने फिर से फ़ोन कर दिया 

पर तुम हो की फ़ोन ही नही उठाती हो !

बस इतना पूछता की 
मुम्बई कैसी है ?
तुम कैसी हो ?
लाइफ कैसी है ?
जॉब कैसी है ?

फिर से तो कंपनी 
चेंज कर ली क्या ?
और वो तुम्हारे  
स्टार्ट उप का क्या हुआ ?

क्या तुम अभी वैसे ही रैंडम घूमने निकल जाती हो ?
HN मे icecream, और मटका कुल्फी खाती हो ?

पर तुम हो की फ़ोन ही नही उठाती हो !

यह बताता की

यह कविता सच में
तुम्ही पर लिखी है,
यह जापान से
गंगा तक बही है,

गोवा भी है,
और BHU भी,
केजरीवाल भी है,
और JHV भी

क्या ट्यूशन अभी भी पांच बजे पढाने जाती हो ?
क्या खाना अभी भी दोनों हाथो से खाती हो ?

कुछ discuss भी कर लेता,

जो VENEZUELA मे आग लगी है,
तुमने विकिपीडिया पढ़ी है ?
तुम्हारी कहानी क्या
शशि थरूर से आगे बढ़ी है ?

'CERSIE' का attitude
अच्छा क्यों है ?
तुम्हारा मन अभी भी
बच्चा क्यों है ?
TURING मशीन का मकसद समझाता !

'महात्मा गाँधी' के नाम से तुम चिढ जाती हो !
अभी भी 'Feminism' के नाम पर लड़ जाती हो ?

पर तुम हो की फ़ोन नहीं उठाती हो !

व्यस्त हो या नाराज़ हो ?
काम है या पढ़ाई है ?
घर पर हो या बाहर हो ?
Network prob. है balance का ?
फ़ोन का या सिम कार्ड का ?
Notebooook का या tab ka
Facebooook ka ya Whatsapp ka ?

तुम कुछ भी तो नहीं बताती हो
और फ़ोन भी नही उठाती हो !!!!



























Monday 11 July 2016

तुम

तुझसे बातें करूँ
तुझसे मिन्नत करूँ,
तुझसे जिद्द भी करूँ
और बगावत भी,

कभी पलकों मे रखके
इबादत करूँ,
कभी नज़र मे चढ़ाकर
शिकायत भी,

तेरी मुस्कान पे
आयतें भी लिखूँ,
तेरी नादानियों पर
हिदायत भी,

तुझको उड़ने भी दुँ
आसमां के परे,
तुमको पल्कों मे
रक्खूँ छुपाकर भी,

तुम मेरी कोशिशों की
आफ़रीन हो,
तसव्वुर का मेरी
तुम ही आमीन हो,

तुम रिसती हो मेरे
पिघलने से ही,
मै उमड़ता हूँ
तेरे उभरने से ही,

तुम "तुम" हो नहीं 
तुम मैं ही तो हूँ ।।

संगम

कुछ उन्होंने मान ली  कुछ मैंने बातें कही नहीं, कुछ मेरी नर्म जुबां थी  कुछ उनकी मंद मुस्कान थी, कुछ उनके घर का आँगन था  कुछ मेरी द्वार पर पू...