मुझे रास्ते में मिली,
एक प्यारी-सी मुस्कान
ख़ुशी से लबरेज़,
एक भारी-सी मुस्कान
सुबह-सुबह खिली,
एक ताज़ी-सी मुस्कान ।
गुलाबी लबों में
बदन को सिमटती,
मोती के बिस्तर पर
करवट बदलती,
ख्वाबों को सँजोती
अलसाई-सी मुस्कान ।
आँखों से बहती
वो होंठों पर आई,
इठलाती-बलखाती
फिर चेहरे पर छाई,
मदहोशी में अंगड़ाई
एक भोली-सी मुस्कान ।
क्षितिज़ से उभरकर
फलक पर बिखरती,
कोरे दृगों मे
कई रंग भरती,
कुदरत मे पली
एक नयनाभिराम ।
निगाहों में कोई
कशिश-सी छुपाये,
ख़ामोशी से जैसे
ग़ज़ल कोई गाये,
किसी शायर की है
वो कलम की जुबां ।
कोई खुदगर्ज़ आदत,
कोई बिगड़ी-सी हरकत,
कोई बेख़ौफ फितरत,
कोई बेबाक हसरत,
परी लोक की
कोई नटखट शैतान |
कही कोई मंदिर की
गलियों से रिसती,
खुशबू जो हौले से
साँसों में बसती,
ज़न्नत दिखाती
एक पाकीज़ा एहसास ।
किसी रसिक भँवरे के
लबों पर पली-सी,
कचनार की एक
कमसिन कली-सी,
मय से भरी
एक मदहोश ज़ाम ।
अनजाने ही मेरे
लबों पे आ गई,
मेरे हृदय को
वो बहला गई,
रूक गया मै वहीं
मुस्कुराता रहा..
हर ग़म को मै
भुलाता रहा....
पल वो था रूका
मेरी आगोश मे,
न रहा मै भी उस
दरमियाँ होश मे
इक तसव्वुर मे
ख़ोया हुआ मै ज़रा
हर मंज़र को
मन में बसाता रहा ।
आँख झपकी मेरी , मै
संभल-सा चुका था,
मेरी गफ़लत में लम्हा
गुज़र सा चुका था,
पलभर का मंज़र
नज़र से मेरी,
दास्तां बनके दिल मे
उतर सा चुका था ।
कभी-कभी वापस
वो आ जाती है,
चेहरे पे फिर से
वो छा जाती है,
निराशा तिमिर में नई आश देती
अदिति-सी मुस्कान !!
एक प्यारी-सी मुस्कान
ख़ुशी से लबरेज़,
एक भारी-सी मुस्कान
सुबह-सुबह खिली,
एक ताज़ी-सी मुस्कान ।
गुलाबी लबों में
बदन को सिमटती,
मोती के बिस्तर पर
करवट बदलती,
ख्वाबों को सँजोती
अलसाई-सी मुस्कान ।
आँखों से बहती
वो होंठों पर आई,
इठलाती-बलखाती
फिर चेहरे पर छाई,
मदहोशी में अंगड़ाई
एक भोली-सी मुस्कान ।
क्षितिज़ से उभरकर
फलक पर बिखरती,
कोरे दृगों मे
कई रंग भरती,
कुदरत मे पली
एक नयनाभिराम ।
निगाहों में कोई
कशिश-सी छुपाये,
ख़ामोशी से जैसे
ग़ज़ल कोई गाये,
किसी शायर की है
वो कलम की जुबां ।
कोई खुदगर्ज़ आदत,
कोई बिगड़ी-सी हरकत,
कोई बेख़ौफ फितरत,
कोई बेबाक हसरत,
परी लोक की
कोई नटखट शैतान |
कही कोई मंदिर की
गलियों से रिसती,
खुशबू जो हौले से
साँसों में बसती,
ज़न्नत दिखाती
एक पाकीज़ा एहसास ।
किसी रसिक भँवरे के
लबों पर पली-सी,
कचनार की एक
कमसिन कली-सी,
मय से भरी
एक मदहोश ज़ाम ।
अनजाने ही मेरे
लबों पे आ गई,
मेरे हृदय को
वो बहला गई,
रूक गया मै वहीं
मुस्कुराता रहा..
हर ग़म को मै
भुलाता रहा....
पल वो था रूका
मेरी आगोश मे,
न रहा मै भी उस
दरमियाँ होश मे
इक तसव्वुर मे
ख़ोया हुआ मै ज़रा
हर मंज़र को
मन में बसाता रहा ।
आँख झपकी मेरी , मै
संभल-सा चुका था,
मेरी गफ़लत में लम्हा
गुज़र सा चुका था,
पलभर का मंज़र
नज़र से मेरी,
दास्तां बनके दिल मे
उतर सा चुका था ।
कभी-कभी वापस
वो आ जाती है,
चेहरे पे फिर से
वो छा जाती है,
निराशा तिमिर में नई आश देती
अदिति-सी मुस्कान !!