Thursday 9 April 2020

बरेली की बर्फी

नौमी दिवस है,
शुक्लपक्ष पावन
अप्रैल का महीना
न धूप न सावन,

खुला साफ़ अंबर
चँहकता सा उपवन
नहीं जान पड़ता
सुबह, शाम, दुपहर,

नीम के पेड़ की
घनी छांव तपकर
गन्ने के रस से
पिरो कर निकल कर,

बनी थी पिघल कर
और फिर जमकर
मीठे गुड़ की बेटी
बनारस की मिशरी ।

चमक जैसे दर्पण
खनक जैसे बर्तन
जॉनी जॉनी के मुंह में
दुलार करती प्रतिक्षण,

मां के किचन की
छोटा-सा फाँका
पापा के चाय की
चम्मच भर की थिरकन,

दादा जी की चोरी
दादी जी की उलझन
मधुर-सी मधुमेह
बनारस की मिशरी ।

सफेद बर्फ-सी
रुई नरम-सी
बेदाग, चौकोर,
चांदी की परत भी,

फटा दुध अव्वल
दही ना खटाई,
बरेली का खोवा
बनारस की मिशरी,

बड़े घर की बिंदी
बरेली की बर्फी ।

शिवालिक का आंगन
गंगा का उद्गम
रोहिलखंड में शिव के
सीने की धड़कन,

दशरथ की संजीवनी
कौशल्या का मरहम
लक्ष्मण की सीता
उर्मिल की अर्पण,

नए घर की तुलसी,
बरेली की बर्फी ।


Saturday 4 January 2020

तुम्हारे नाम का tariff

तुम्हारे नाम का tariff
गर एक month का ले लूँ,
और उन ३० दिनों को,
मै १२ महीने बिखरा लूँ ।

चुन-चुन दिन मै बात करूँ
तुमसे महीने में दो बार,
एक १ली तारीख़ चलाऊँ
दूजा १५वी वार।

आधे घंटे बात करूँ
आधे करूँ बहस,
कुछ तो हँसी-ठहाके मारूँ
कुछ बढ़वा लू साहस।

गर तुम्हारे........

ना ही कपिल comedy देखूँ
ना ही देखूँ पिक्चर,
ना ही सदगुरु बात सुनु
ना ही जापु मंतर।

Love,Lust and Laughter,
मिल जाए मुझको package
मन मेरा मुट्ठी मे हो
और बुद्धि दौड़े सरपट।

गर तुम्हारे........

पढ़ने मे tension ना हो
Exam लगे ना भयंकर
मेरे personal jokes पे मै
हँसता जौ दिनभर।

दुख की कोई बात हो,
तो share करते जाऊँ
ख़ुशी कोई मुझको आए तो
झटपट तुम्हे बताऊँ।

गर तुम्हारे..........

बाक़ी बचे ६ दिन
तुमको जन्मदिन पर दे दूँ,
तुम्हारे लिए लिखू एक कविता
६-६ घंटे पढ़ दूँ ।

पर ऐसा होता तब ही,
जब मै होता कुछ क़ाबिल,
भगवान से जाकर मै करवाता
तुम्हारे नाम का tariff।


Phone ही नही उठाती हो !

आज नया साल था,
मेरा फिर वही हाल था,

मैंने फिर से phone कर दिया,
पर तुम तो तुम हो,

Phone ही नही उठाती हो !

बस यही पूछता की
तुम कैसी हो ?
दीदी कैसी हैं ?
फल और दूध
क्या regular खाती हो ?
अब hospital कितने दिन पर जाती हो ?
क्या एक बोतल IV चढ़ा कर भाग आती हो ?

पर तुम हो की............

करती हो क्या अब भी digital payment
रात को टहलती हो JNU pavement
वो किरण जी की तैयारी कैसी है ?
प्रियंका दी कि आदत क्या अब भी वैसी है ?

क्या तुम ही उनका खाना पकाती हो ?
मलाई पराँठा या दाल-fry बनाती हो ?

क्या अब भी translation से पैसे कमाती हो ?

पर तुम हो की............

ये भी बताता की मैंने गीता पढ़ी है,
तुम्हारी माँ की ही बातें तो उसमे लिखी हैं,
तुमने जो जो उपदेश दिए थे,
कृष्ण भगवान ने वही तो कही हैं-
Stoic होने को उन्होंने कहा है,
तुम्हारे मन को समझना उनपर भी बला है,
और उनका रंग भी तुम्हारे जैसा ही काला है !

तुम्हारी धमकी से मौसी जी अब तक डरी हैं,
क्या अब भी वकालत से सबको डराती हो ?

पर तुम हो की............

आजकल दिल्ली मे ठंडी बहुत है,
पर आग भी है, लखनऊ तक लगी है,
PM और CM हैं, मिलकर जलाते,
रविश और स्वरा जी हैं काग़ज़ छुपाते,
Cyclone और बाढ़ की किसको पड़ी है ?

क्या तुम भी इन भीड़ों के प्रदर्शन में जाती हो ?
मरतों-ठिठुरतों को relief fund जुटाती हो ?
मेरा खाना नहीं पचता जब तक तुम नहीं चिल्लाती हो ?

पर तुम हो की.......

Exam है या कोई बवाल है ?
मेरा उत्तर ग़लत था या कोई और सवाल है ?
नोटेबंदी है या नेटबंदी है ?
बेरोज़गारी है या आर्थिक मंदी है ?
Tuition फ़ीस बढ़ी है या हॉस्टल फ़ीस ज्यादा है ?
कोई नौकरी करती हो या तैयारी का इरादा है ?
क्या किसी ने तुम्हे फिर मना कर दिया है ?
या दिल ये किसी और को दे दिया है ?

जलन है या ग़ुस्सा है,
कविता या कोई क़िस्सा है,
बात है या जज़्बात है,
Mistrust है या अंधविश्वास है,
बदला है या remorse है,
तुम्हारी सोच या मेरी बकवास है,
कोई डर है या कड़वी याद है,

तुम्हारे दिल  किस-किस ने block कर रखा है,
धारा १४४ तो लगा ही है, १२४A क्यूँ लगाती हो ?
मेरे दिल की दिल्ली को कश्मीर क्यूँ बनाती हो ?

तुम कुछ clear भी तो नही बताती हो...........

और phone भी तो नहीं उठाती हो ........😌😔

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...