Friday 29 April 2022

भाव

किस भाव को चलने दें,
किस भाव को रोकें?
किस भाव को बढ़ने दें,
किस भाव को टोकें?
किस भाव की कीमत है,
किस भाव की सस्ती बात,
क्या भाव है क्या रात?
क्या भाव है आगे का,
क्या भाव है पीछे का?
किस भाव का गहरा घाव,
किस भाव का बड़का ताव?
क्या भाव मेरा है,
क्या भाव तुम्हारा है?
किस भाव मे राम हैं,
किस भाव में राम नहीं?

Thursday 28 April 2022

AMR

ये किनके बच्चे हैं 
जो अधनंगे
घूम रहें हैं घाटों पर
इनको गुम होने का
नहीं है डर
घाट पर ही है
इनका घर
ये हंसते हैं,खेलते हैं 
और भटकते हैं इधर–उधर,
ये खाते हैं मिट्टी,
लोटते हैं ज़मीन पर
ये कर भी देते हैं,
इधर–उधर,तितर–बितर,
कौन साफ करता है इनको, 
कहां है इनका साफ–बिस्तर
पैर पोछकर बोरे मे
चढ़ जातें हों ये जिनपर,
वह गया ढूंढने था रोटी,
जो उठा लाया paracetamol
कूड़े मे हाथ अंदर कर,
रंग–बिरंगे,लाल–नीले,
छोटे–छोटे, हरे बटन
पानी खोज के पी लेगा
और बढ़ जायेगा AMR,

बापू के लगते है ये बच्चे,
अधनंगे फकीर, बेहद निडर
दुनिया के बच्चे हैं, 
अब तक हैं जो बेघर
अंबर की छतरी के नीचे, 
ये बच्चे कर्ज हैं भारत पर!

Wednesday 27 April 2022

गुंजाइश

मिलने की तुमसे
हर घड़ी मै
गुज़ारिश ढूंढता हूं,
अपने दिल के
टूटने पर
जीते रहने की 
बिन तुम्हारे
ख्वाहिश ढूंढाता हूं

अब तुम्हारी आरजू की
अंजुमन मे बारिश ढूंढता हूं,
कतरा कतरा मै जुटाता
आंसुओं को
ख्वाब तेरे मै सजाता
उनमे खुद की गुंजाइश ढूंढता हूं

मै तुम्हारे लब पे अपनी
हर तमन्ना की लड़ाई
ज़र्रा ज़र्रा इस तड़प की
नुमाइश ढूंढता हूं

तुम ना कह दो
मै तुम्हारा हूं नहीं अब
इस फिकर मे
धूप मे खुद की मै
परछाई ढूंढता हूं 

मै बिखर कर 
गिर न जाऊं
धूल बनकर रास्तों पर
मै तुम्हारे दर्द डूबने को
गहराई ढूंढता हूं

मुझसे मिलने आ गई तो
हूं अकेला ही खड़ा मै
बच रहा हूं भीड़ से मै
अजनबी बनकर तुम्हारा
आने वाली तन्हाई ढूंढता हूं,

तुम भुलाओ प्यार को तो
मै संभल कर याद कर लूं,
कोई पूछे नाम लेकर
मै छुपाऊं, कुछ बताऊं
मै तुम्हारे नाम पर
देने वाली कर दुआएं
कर गुजरने के लिए
खुदा के दर पे दुहाई ढूंढता हूं।

Sunday 24 April 2022

मना लेना

तुम उससे 
बात करने को
कुछ कहकर मना लेना,
मेरी कविता ही
अपने शब्द मे
पढ़कर सुना देना,

कुछ अखबार के चर्चों से
उसको मन बना लेना,
सरकार की बातों से
कोई तह सजा लेना,

कुछ पूछ लेना की 
पढ़ती आजकल क्या है?
Election कौन लड़ता है
लिखती आजकल क्या है?

कोई कविता जो उसकी हो
तो मुझको भेज देना तुम,
मै पढ़ता हूं बहुत कुछ अब
उससे मैसेज देना तुम,

मै “रोना” छोड़ चुका हूं अब
पते की बात करता हूं,
पंजाब को जीत आया हूं
मै अब गुजरात चलता हूं,
मुनासिब है नहीं की अब
कव्वाली इश्क की गाउं,
बसंती रंग लिया चोला
मै डांडी मार्च करता हूं,

पुरानी बात को भूले
भगत–बिस्मिल सरीखे हम,
बहुत–से पेट भूखे हैं
दिलों के हाल भूलें हम,
यहां मेहमान दो पल के
मुसाफिर बन के आए हैं,
जो जीवन छोड़ जाते हैं
कहां फिर रोक पाए हैं?😔

चिलबिल

चिलबिल की तितली
कितनी आसानी से
आ जाती हाथ मे,

गुच्छे दर गुच्छे
और मुट्ठियाँ भर जाती,
एक पत्थर की दरकार
फिर सारी उड़ जाती,
पेट चीर कर खाते बच्चे
सस्ता बादाम बन जाती,

चिलबिल की तितलियां
बच्चों जैसी ही
साथ खेलती–खाती,
इस पीढ़ी से उस पीढ़ी
याद बनकर रह जाती,
हम बड़े हो गए भले बहुत
नाम किया या किया नहीं कुछ
पर चिलबिल नहीं चिढ़ाती
कहीं दूर से उड़ते–उड़ते
पैरों तक आ जाती,
पेट चीर कर
खुशियां देती
दोस्ती अब तक निभाती।


Echo–Chamber

मै खुद ही बोलता है,
मै खुद ही खुद की
आवाज़ सुनता है,
मै खुद को सुनकर
घबराता है,
मै खुद को सुनकर,
डर जाता है,

मै खुद ही खुद की
किताब लिखकर
खुद को पढ़कर
सुनाता है,
पात्रा को सुनाता है
उन्हें उनकी lines
याद कराता है,
बोलने को कहता है,
और फिर उनका
जवाब देता है,
जवाब को सही और
गलत कहता है,

मै climax ढूंढता है
आज के लिए
कल फिर उसे 
बदलने के लिए
उसी आधार पर
किरदारों को नया
जामा पहनाने के लिए,

Climax मेरे मै का 
Echo–chamber मे
घूमती हुई ये आवाज़,
ये आवाज़ जो 
किसी और मुंह से
निकल कर उनके
वजूद को पिरोती है
और फिर
उलाहने देती है,

मै प्रफुल्लित और होता 
गूंज की आवाज़ मे
अट्टहास करता
और फिर कुछ और
जुटाने मे लग जाता,
खोखली दुनिया की
आकाशवाणी सुनकर
सुदर्शन चक्र जैसा
जीवन गोल–गोल घुमाता,

मै राम–राम, महावीर की 
गाथा जब गाता,
तो मैं को राम का echo
तब समझ आता,
मै खुद echo–chamber
का हिस्सा बनकर
सुखी हो जाता,
मै बुद्ध हो जाता,
मै फिर फिर गाता
"बुद्धम् शरणम् गच्छामि:"

नशा

किसी बात पर फिर से
नशा चढ़ा तो होगा,
तुम्हारे साए की उम्मीद मे
दिल यूंही नही मचला होगा,

कुछ रही होगी मौसम के 
मिज़ाज की गुस्ताखी,
कोई फूल गुलिस्तां मे
वैसा ही खिला होगा,

कुछ इम्तिहान–ए–ज़िंदगी की
नज़र लगी होगी,
कोई हाल–ए–दिल कि किस्सा
नासूर बना होगा,

नशेमन के बिखरने पे
कोई कातर हुआ होगा,
कोई आप–सा लगने से
ये पागल हुआ होगा,
कोई बात तो होगी
नशा ऐसा चढ़ा होगा।

Wednesday 20 April 2022

चलन

मै चल नहीं पाता
या चलना ही नहीं आता
जाता हूं जिधर भी मै
क्यों ज्यादा नहीं पाता,

आता छूट जाता है,
लिखा ना खूब जाता है,
मै जिसको बात कहता हूं,
वो हांसिए मे ही पाता हूं,

मै फिर से दुहराता,
मै लिख के बैठाता हूं,
मै मंजिल ढूंढता अब तक
या मंजिल को गँवाता हूं,

मंजिल के किनारे मै
आकर मुस्कुराता हूं,
हठ है जिंदगी के ये
या सच से दूर जाता हूं,

सब राहें एक ही तो हैं,
फिर क्यों दौड़ता हूं मै,
समय मेरा नहीं बचता
क्यूं फिर खाका बनाता हूं?

राम का नाम ले चलना या
चलकर राम में मिलना,
राम के फैसले हैं ये
जिन्हे अपना बताता हूं!

सफेद

रोशनी का रंग
अब सफेद है,
हरे और भगवे का
मेल भी सफेद है,
सफेद है रंग अब
पढ़ाई का स्कूल मे,
सफेद है समय भी आज
जुनून मूर्त रूप मे,
सफेद होती राजनीति
अरविंद और नरेंद्र की,
सफेद रंग ओढ़ती रहा है
मासूम की मुस्कान भी,

सफेद ही तो रंग मे थे
बुद्ध–महावीर भी,
सफेद रंग बापू का था
बोस की खादी का भी,
सफेद पटेल–नेहरु का
काम भी था साथ मे,
सफेद रंग साहेब का
हमारे संविधान मे,

सफेद ही बोलते थे
कबीर और रहीम जी,
सफेद रविदास थे
सफेद मीराबाई भी,
सफेद सूरदास थे
सफेद मानस–मंदिर भी,

सफेद टोपी डालकर
कलाम भी तो बढ़ गए,
सफेद रंग केसरी
भगत भी सूली चढ़ गए,
सफेद ही व्यक्तित्व था
माता टेरेसा का बना,
बापू की मुट्ठी से निकलके
सफेद ही नमक बना,

अब मिलाकर हाथ फिर
रंग दो सफेद मे,
देश की तरक्की को
ढाल दो सफेद मे,
सूर्य–चंद्र को मिलाकर
काल हो सफेद मे!

Tuesday 19 April 2022

Subscriber

WhatsApp करता हूं
Telegram करता हूं,
मै दुनिया भूल जाता हूं
जो तुमसे बात करता हूं,

मै signal तोड़ देता हूं
Duo call करता हूं
तुमको ढूंढ लेने को
मै apps install करता हूं,

Imo पर तुम्हे खोजूं
Messenger पर भी आ जाऊं
मै गूगल पर भी ज्यादातर
तुम्हारा नाम लिखता हूं,

Review पढ़ के magicpin के
खाने रोज जाता हूं,
तुम्हारा नाम ले ले कर
मै zomato पे discount उठाता हूं,

Researchgate पर चर्चे
तुम्हारे नाम के पढ़ कर,
मै linkdin पर तुम्हे request
Profession वार करता हूं,

UPI id से मै जो
कुछ पैसे मांग लेता हूं,
तुम्हारा address लिखकर
Teddy गिफ्ट करता हूं,

Youtube पर तुम्हारा dance
सौ–सौ बार तकता हूं,
तुम्हारी खबर चुराने को
Bell icon दबाता हूं,

E-mail लिखता हूं
Blog मे tag करता हूं,
मेरी subscriber हो तुम
मै कविता आम कहता हूं,

मै FB खोल लेता हूं
Instagram पढ़ता हूं,
की तुमको देख लेने को
मै data on करता हूं,

मै message छोड़ देता हूं
तुम्हे Miss call देता हूं,
बस एक आवाज़ सुनने को
तुम्हे सलाम करता हूं,

परीक्षा और देता हूं
मै फिर से form भरता हूं,
तुम्हारे काम आने को
कहां आराम करता हूं,

मै तुमसे दूर जाने को
बहुत संग्राम करता हूं,
चिढ़ाता हूं तुम्हे लेकिन
मै खुद परेशान रहता हूं,

मै दिन भर राम कहता हूं,
मै उठकर राम कहता हूं
जन्मदिन पर तुम्हारे मै
तुम्हे पैगाम कहता हूं,

मै चंदन–सा नहीं शायद
रवि का छाव भर ही हूं,
कन्हैया–सा नहीं वादक
धनुष भी क्या ही रखता हूं,

नहीं नागों–सा हँसमुख हूं
न महारथ ही मुझे हासिल,
ना कुछ इलाज करता हूं
न वकालत के ही मै काबिल,

जो तुमसे प्यार करता हूं
नहीं विश्राम करता हूं,
सीता मान कर तुमको
हृदय मे राम रखता हूं।😂😂😁

Saturday 16 April 2022

अभिव्यक्ति

इंसान कविताएं,
क्यों लिखता है?
 क्यों सुनाता है?

कोयल गाती है,
भोर में सुबह को
बुलाती है,
भंवरा मंडराता है,
गुंजन करता है।

फूलों पर कलियों पर 
तितलियां इठलाती हैं,
सोमरस लेती हैं,
उड़कर, बैठकर।

इंसान क्यों लिखता है?
किस सुबह को बुलाता है?
और सुनाता क्यों है?
कौन–सा सोमरास पीता है?😇

Friday 15 April 2022

सिक्के

राम नाम के
सिक्के हैं ये,
गिन के सबको
मिले हुए हैं,

खनक मे राम
बसे हैं इसके,
सबको कानों
सुने हुए हैं,

खर्च करो तुम
समझ के इनको
या फिर जेब से
निरा गिरा दो,
नहीं मिलेंगे
फिर ये मोती,
जो समय काल
से भरे पड़े हैं!

भटकाव

यह भटक गया है
सटक गया है,
करते–करते
लटक गया है,

कुछ बोल गया है
पट खोल गया है,
मेरी आंखों को 
खटक गया है,

मै जाप करी हूं
कथा सुनी हूं
परसादी दी पर
झटक गया गया है,

मै कहती थी की
रोक लो इसको
पढ़ते–पढ़ते सब
गटक गया है!

इसका होना था
बैंगलोर में ही
यह इलाहाबाद मे
अटक गया है!😇

Thursday 14 April 2022

किराएदार

इस घर का किराएदार है,
यह जो तुम्हारा–मेरा प्यार है,
जाता नहीं कहीं और
कोई तो ये बड़ा साहूकार है,

गरज है इसे
तुम्हारे होने की इस कदर 
जैसे मेरी जिंदगी
कोई इसपर उधार है,

डर तो इसको
पुलिस का भी नहीं है,
लगता है देश में
इसी को सरकार है,

किसी Leftist की तरह
मुझसे लड़ जाता है,
JNU का President
कन्हैया कुमार है,

ये गुजरात मे प्रचार
खुलेआम कर रहा है,
जैसे मानो ये आम आदमी
का उम्मीदवार है,

तुम आ जाओगी
इसका झंडा उठाने,
झोले को कंधे से
मेरे उठाने,
जयशंकर हो तुम
ये यूक्रेन का war है,

इसे है बस यकीन
तुम्हारे खुदा होने का
जानता भी नहीं कि
यह किसका शिकार है,

बातें तुम्हारी 
इस कदर करता है
जैसे इसको किसी और का
नहीं इंतजार है,

धूल उड़ाता है
पैरों से रौंदकर,
रोज मनाता 
ये जश्न–ए–बहार है,

कहानियों में सजाता है
गमों और खुशी को
खट्टा मीठा है, नमकीन है,
यह स्वाद है तुम्हारा,
 बड़ा चटकदार है,

यह घूमता फिरता है
पहाड़ों–जंगलों में
नदी के किनारे,
सागर–सितारों मे,

मैं रहने देता हूं इसको
तसव्वुर में तुम्हारी
जैसे जिंदगी का मेरे
यही तो आधार है,

किसी और की अब मै
नेमपट ढूंढता हूं
अब यह महज
कुछ दिन का मेहमान है!😇

मिठाई मामा

मामाजी मिठाई
चट कर जाते थे,
मिठाइयों तक
चींटी से पहले ही
पहुंच जाते थे,

पर्दे के पीछे
छुपा के रखते,
धीरे धीरे, बारी–बारी
तराश–तराश के खाते थे,
झाड़–फूंक सहलाते थे
दोनो ओर घुमाते थे,

मुंह मे रखकर
दुनियां भूल जाते थे,
रसगुल्ले का–सा
चासनी मे,
भंवरे का–सा
कुसुम मकरंद मे,
धीरे–धीरे उतर जाते थे,
एक–एक टुकड़े को
चुबलाते थे,
मामाजी जब मिठाई खाते थे।


Wednesday 13 April 2022

जहां हो

रह चुका हूं
मै वहां पर,
तुम जहां पर हो,
से चुका वो
सारी उल्फत
तुम जहां पर हो,

बोलकर मै चुप हुआ हूं
तुम बोलती जो हो,
मै पारकर आगे बढ़ा हूं
तुम जिस किनारे हो,

तुम तपिश मे
जिस जलन की,
झुलसती हो आज,
मै जानता हूं
उन दरों से
निकलने के राज़,

जिस गली से 
तुम गुज़र कर
घर पे लौटे हो,
उस धूप की
चादर को हम
ओढ़े बिछाए हैं,

जिस खंजरों को आज
चाकू कह रहे हो तुम,
सीने मे रखकर
उनको हमने
खिलजी रुलाए हैं,

तुम मित्र और
बहनों को लेकर
कर रही जो प्रश्न,
मै कर चुका हूं
वर्षों पहले
वही तुम्हारे संग,

तुम मिल बिछड़कर
आज जैसे
देखती हो सत्य,
मै आज तक भी
जूझता हूं
लेके अपना अर्ध–सत्य।

याद रखना

मेरे तुम प्यार को
बस याद रखना,
वासना को
भूल जाना,

शाम को तुम याद रखना
रात मेरी भूल जाना
तुम टहलना याद रखना
बात मुझसे भूल जाना,

हम थे अक्षरधाम मे
हाथ मे ले हाथ अपना,
हाथ जोड़ने को याद रखना
और पकड़ना भूल जाना,

आंसू बहाए हैं
तुम्हारे ही लिए
मैने सुबककर,
उन आंसू की तुम
वफाएं याद रखना,
गिलों को भूल जाना

तुम करके फोन मैने
कुछ बहाने बोलता था,
बात के जज्बात मेरे
याद रखना बहाने भूल जाना,

कुछ मांग लेता हूं
गाहे–बगाहे वक्त,

बेच दी कुरान
कुछ फूल लेने को,
फरियाद मेरी याद रखना
औकात मेरी भूल जाना,

रोज़े रखे मैने तुम्हारा
जिक्र करने को,
इबादत को मेरी
याद रखना,
और तमन्ना भूल जाना,

फाका मुझे मंजूर था
तुम्हारे दर पे आने तक,
जूनून–ए–इश्क 
मेरा याद रखना
और हिमाकत भूल जाना,

मांग लेता हूं खुदा से
तुमको अपनी खुशी समझना,
तुम खुशी को लब पे रखना
साथ मेरा भूल जाना।



किस्मत

तुम मिल गई
किस्मत से मुझको
वरना मैं तो बांवरा था
मै डगर पर नाश के था,

तुम हाथ दे दी
भंवर मे मुझको,
वरना डूबना ही तय था,
मै तैरना कब जानता था,

अब हो भले ही
द्वंद और आत्म–संशय,
पुनरावृत्ति काल के
घटना चक्र की,
उधेड़बुन हो
अहम और गरिमा की
बारंबार,

पर यह रहेगा सत्य
एक स्वर का सत्य,
की किस्मत थी मेरी तुम,
और तुम ही मेरा सत्य।


डाल

किसी और डाल
पर उड़ जाना हैं,
इस डाल पे
पक्षी तेरा तो
एक रात का ही
ठिकाना है,

यहां मिली है
कटुक निबोरी,
वहां फला है
मीठा दाना,
खाकर इनको
डाल डाल से
बहता जल 
पीने जाना है,

है बस सफर
रात का पक्षी,
सुबह सवेरे
उड़ जाना है।

पर क्या है
डाल डाल का
खाना अलग
अलग दाना है,
क्या किसी डाल पर
जीना भर है,
किसी डाल पर
खुल गाना है,

जो हवा नहीं
और मलय नहीं
कुछ पल ओट की
पत्तों के,
तो क्या कुछ नया
बहाना लेकर
फुदक–फुदक
मन बहलाना है?

नीड़ बनाई जहां
खोह खोजकर,
कुछ समय वहां
बिताना है,
तूफान आए
और पतझड़ तो भी
पल पल नहीं 
मचल जाना है,

पक्षी अटल है
बल और छल,
इनका तो 
आना–जाना है,
नीड़ बनाई
तिनका–तिनका
फिर पिंजरे से क्यूं
ललचाना है?

Sunday 10 April 2022

बिन बात

लोग आ जा रहे थे
पार्क के बेंच की
पीछे की सड़क से,
और हम कर रहे थे
बिन बात की कोई बात,

की खातमबंद दिखा रहा था
मै तुम्हें कश्मीर की
अपने फोन पर,
अच्छे–दर के कुछ फूलों
कोई रह गई होगी कसर
वो किस मिज़ाज मे लुप्त था
वहां का कारीगर,

शायद बुला लिया होगा
बीवी ने सामान उतारने
और लटक गया होगा
काम उधर का उधर,
जैसे स्कूल मे 6वी की
हिंदी की परीक्षा मे
हो गई थी तुम बीमार,

और इसी बीच अटक गई
मेरी उंगली तुम्हारे बालों पर
और डांट दिया तुमने मुझे
ऊंची नज़र कर,
और बात आ गई कल पर
जब तुम गिना दी मुझको
कल देर हुई किधर,

मेरे notes की कीमत
थी क्यूं तुमसे भी बढ़कर
नहीं देता अगर परीक्षा
तो ढाता कौन सा कहर,
Ice–cream जाएगी पिघल
अगर तुम रुक नही इधर,

मौसा जी कल घूमने 
जा रहे है तिलकनगर,
जैसे जापान है या सिंगापुर,
और तुम्हारी सहेली
आज है किधर,
लोग शाम को टहलने
आते हैं वक्त पर,
ना इधर–उधर थूंकते,
ना देखते इधर–उधर,

राम नवमी पर
राम का जनम,
क्यूं हुआ दोपहर,
मुझे जानते नहीं तुम
मै बिफरती हूं किस कदर
और ठहरती हूं किधर,
जाना है कल दिल्ली
कॉलेज खुलेगा कल,
अब कब मिलन होगा,
हम कब मिलेंगे कल,

बिन बात ही निकल गया
ये हसीन पल,
लोग आ जा रहे हैं अभी भी,
और हम कर रहे हैं
बिन बात की बात।

Saturday 9 April 2022

पत्थर

पत्थर बांध के पैर मे
तैरना उनको मुबारक
जो बिखर जायेंगे खुलकर
अपने विषयावेश मे,

मै खुदा के पंख लेकर
स्वच्छंद उड़ना चाहता हूं,
मै पवन मे ढीठ बनकर
हंस के गिरना चाहता हूं,

मै बेड़ियों की आरजू से
हट के खिलना चाहता हूं,
मै राम की पट्टी लगाकर
ऊपर उभरना चाहता हूं,
मै राम सेतु बनने को फिर से
पत्थर का जीवन चाहता हूं 😇

मोल

मोल चुकाकर
शान्त हृदय का,
उत्तेजना मैंने
मोल उठा ली,

क्षणिक सुखों की
कर उपासना,
मैने सत्य की
राह भुला दी,

मैने नदी सरोवर त्यागे
लहरों पर ही घर बनवा ली,
पथिक चला था मानसरोवर
सांभर मे ही प्यास बुझा ली,

मोल चुकाकर
शांत हृदय का,
मैने हृदय की 
गति बढ़ा दी!

मेघालय से दिल्ली

मेघालय मे ठंडी थी
दिल्ली जाकर गर्म हो गई,
मेघालय ice–cream थी
दिल्ली जाकर पिघल गई,
मेघालय मे बादल थे
दिल्ली जाकर धुआं हो गए,
मेघालय मे झरने थे
दिल्ली जाकर यमुना हो गए,
मेघालय मे बस चलती थी
दिल्ली मे platform बन गई,
मेघालय की धीमी गाड़ी
दिल्ली जाकर express हो गई,
मेघालय मे बच्चे थे
दिल्ली जाकर क्रांति हो गई,
मेघालय मे fruit जूस
दिल्ली जाकर cocktail बन गई,
मेघालय की खुर्की अब
दिल्ली जाकर राफेल बन गई,
शिलांग की टूटी ओड़िया–हिंदी
JNU मे अंग्रेज़ बन गई,
अंग्रेजी पढ़ती दोस्त सरल थी
Spanish पढ़ दिलफेंक हो गई!

सौम्या

तुम चली गई तो
चला गया तुम्हारे
जैसा होना भी,
ना प्रीत के संग ही
प्रीत मिली,
ना रोने के संग
रोना ही,

कौन सरल
और सौम्य रह गया
जो हंसता होगा,
बिन मतलब
कौन गरल
घूंट पिएगा,
किसी और का
लगा तलब,

कौन है जो फिर
इधर उधर की
बातों में भी रस लेगा,
कौन मेरी भोली बातों
मेरे ही मुख सूनेगा,
कौन करेगा इंतजार
मेरे फोन का घंटों तक,
कौन लपक कर
बाहर जाकर
मुझे बताएगा छुपकर,

कौन मेरी, जग की
कटुता को
समझ के परे ही पाएगा,
कौन शब्द से आहत होकर
नाहक नीर बहायेगा,
कौन मेरी बात राम तक
बिना लपेट पहुंचा देगा,
कौन चांद को धर ललाट पर
धीरे से सो जायेगा,

कौन कहेगा जन्म–जन्म के
खेल हैं सारे बंधन के
कौन गोपाल की प्रतिमा का सा
मुरली बांधे क्रंदन मे,
विप्लव को कौन पकड़ लेगा
बच्चों–सा पैर पटक लेगा,

तुम चली गई तो नहीं हवाएं
पूरब से मद्धम बहती हैं,
नीम के पेड़ के छांव तले
अब नहीं नरम दुख बहती है,
अब कौन तुम्हारे जैसा है
जो पढ़ने को कहा करेगा

कौन है तुमसा 
अब जहां में
जो हृदय मे फिर से आ बसेगा?

Friday 8 April 2022

बढ़ी बात

मौसी छोटी–सी बात को
बढ़ा देती हैं,
मौसी बातों में ही
उलझा देती हैं,
मौसी प्रश्न ऐसे
पूछ देती हैं,
जो मां भी सबसे
छुपा देती हैं,

मौसी छोटी–सी बात को 
बढ़ाकर बताकर
बात बढ़ने से पहले
बचा लेती हैं।

Wednesday 6 April 2022

राम लड़ाई

सब राम से ही मांगते हैं
राम नहीं दे रहे हैं,
राम से प्राण पाकर
सब राम से ही लड़ रहे हैं,

राम पर ही दोष है,
राम पर चित्कार है,
राम के विरोध मे
राम तिरस्कार है,

राम के बिना जिया जो
राम से मजबूर है,
राम को सिखा रहा
आज का दस्तूर है,
राम को खलल पड़ी है
राम के ही रूप से,
सब राम को करते रहे हैं
राम–राम दूर से!

सताना

अब सताने के लिए
तुम कुछ नही करती हो,
अब फोन नहीं करती
अब बात नहीं करती,
अब नाम मेरा लेकर
आवाज़ नहीं करती,

अब हाल नहीं पूछती हो
अब हंसाती नही हो,
अब बिना मतलब के तुम
पास आती नही हो,
अब नही जलती
किसी और से
बस मुझसे,
अब नही मेरे लिए
लड़ जाती हो खुद से,

अब नही सताती तो
तड़प ज्यादा होती है!

सुबह

सुबह उठा तो सब
जाग चुके थे,
सूरज चढ़ चुका था,
चिड़ियां गा चुकी थी,
चूहे और छछुंदर
बिलोर–बिलोर के
जा चुके थे,

रोशनी फैल चुकी थी,
मन उचट चुका था,
भजन हो चुका था
रात जा चुकी थी,
ठंड लग नहीं रही थी
कंबल उधड़ चुका था,

मच्छर कमरे के अंदर
और मच्छरदानी के ऊपर
से उड़ चुके थे,
अंदर के मच्छर,
इतना खून पी
चुके थे की,
मस्त और भारी
हो चुके थे,
मच्छरदानी के
निचले ओर पर
मच्छरदानी खुलने
की फिराक मे
बैठे हुए ऊब रहे थे,
चद्दर एक तरफ
उघर चुकी थी,
कूलर का पानी
खतम हो गया था,
पंखा गरम हवा
फेंक रहा था,

ब्रह्म मुहूर्त 
जा चुका था,
विद्यार्थी अब
मै कैसे बनूं अच्छा
मेरा वक्त गुजर चुका था!

Monday 4 April 2022

तुस्सी जा रहे हो!

तुम हमे रुलाकर
हंसाने के बाद
फिर से जा रही हो,

हमारे साथ कुछ जीकर
हमे जिंदा कर
जीना सिखाने के बाद
फिर से जा रही हो,

जैसे रात जाती
ओस की बूंदे गिराकर,
जैसे धूप जाती है
चिलचिलाने के बाद,
जैसे लहर जाती
पांव धोने के बाद,
जैसे रूह जाती है
सो जाने के बाद,
तुम फिर से जा रही हो!

सारनाथ भी बस 
बगल में नही था,
गंगा नदी भी 
दूर बह रही थी,
भोलेनाथ को भी 
जानते नही थे,
हम सुबह–ए –बनारस को
मानते नही थे,
हमे उनसे मिलाने के बाद
तुम फिर से जा रही हो!

बरसात आकर के
हमारे घर भिगोती थी,
धूप तंग करती हमे
छूकर जलाती थी,
बारात जाती थी
सड़क से शोर–गुल करके,
नवरात्र रातों मे हमे
नाहक जगाते थे,
इन्हे त्यौहार बनाने के बाद
तुम फिर से जा रही हो!

हमारी परीक्षा थी
और जागती थी तुम,
अंधेरों मे निराशा मे
उंगली थामती थी तुम,
होली मे रंगों मे
महज बचते रहे थे हम,
हमारे हाथ रंगों से सजाकर
चिढ़ाती रही थी तुम,
हमारे रंग मिलाने के बाद
फिर से जा रही हो तुम!

फिल्में थी या
बहस कर रहे थे,
हम जो भी कुछ
बेवजह कर रहे थे,
वही जीने का मकसद है
बताकर आज हम सबको,
गीता आज अर्जुन को
जिलाकर जा रही हो तुम!

चोरी

थोड़ा वक्त चुराकर
देख लिया कुछ,
कुछ तुमसे भी
खुशियों की 
चोरी कर ली,

कुछ पल पढ़ाई से
छुप कर निकाला
एक कविता लिखी
वाह वाही कर ली,

कुछ क्षण उठाए
बगावत को मैने
अपने सुकून से 
लड़ाई कर ली,

मैने देखा syllabus
थोड़ी देर तक
कुछ topics मैने
ताड़ों पे धर दी,

चोरी से सोया मै
चोरी से जागा,
और अपने मे
हेरा–फेरी–सी कर ली,

देखा वो मैने
जो नहीं देखनी थी,
सोचा वो मैने
जो नहीं सोचनी थी,

पर अपनी वजह को
वजह कुछ बताकर
मैने राम नाम की
कुछ चोरी कर ली।

Sunday 3 April 2022

Spectrum

ये तुम्हारी मेरी बातें
खतम नहीं होती,

हर पढ़ाई के बाद 
तकरार है कोई,
कोई प्रश्न छूटता है
इनकार है कोई,

किसी वजह में 
कोई वजह है,
जो बेवजह लगती है,
कोई भाव है
खालिश भरी
जो बेवजन लगती है,

कोई हाल पुराना है
जो स्वर्ग था बना
कोई आज कलेश है
जो नर्क लग रहा,

हर बार कोई 
एक बिंदु 
छूट जाता है,
रह–रह के वही
घूम–घूम 
फिर से आता है,,

कोई है नहीं किनारा
ना ओर –छोर है,
बातों का हमारी
मज़्म और है,

तर्क है, कुतर्क है,
चढ़ी हुई हैं त्यौरियां,
आज नृत्य कर रही हैं
बढ़–चढ़ के बोलियां,

इतिहास के प्रसंग
भूगर्भ की है पंक्तिया,
समाज की भी झांकी है
फ़िल्मों की बैसाखियां,

देश है, विदेश है
विज्ञान की है दुर्दशा
तुम्हारी बात में कभी तो
सात रंग दिख रहा,

तुम उमंग की तरह 
सूर्य से बिखर गई,
रोशनी नई बनी
झंकृत सभी मे हो गई,

कोयलों की गूंज है
भंवर की गुनगुनाहटें,
बात की सरिता है करती
पर्वतों मे आहटें,

इधर–उधर
पलक–झपक,
चटर–पटर
खटर–खटर,
उठा–पटक
धबड़–धबड़,
दबी हैं मेरी बोलियां,

कथक–सदृश
लस्य–रस,
घूमती घूमर–घूमर
आग –जल
पृथक–पृथक,
गर्जती–सी 
कलारिपयट्ट,

मराठी–आंग्ल की भिड़ंत
हिंदी वाक प्रखर–सरल
रंग–रूप का मिलन
निर्बाध हो रहा यौवन,
अधर के मिलन–चुभन
दूर–पास, सरल–सघन,

आज जुगलबंदी करती,
फैली हुई Spectrum !🙏🙏

Friday 1 April 2022

स्कूल जाकर क्या करोगी?


तुम स्कूल जाकर क्या करोगी?
मुंह ढका हुआ
तन ढका हुआ,
पेट तुम्हारा
फुला हुआ है,

आंखे तुम्हारी 
देख रही हैं,
कान तो सुनने
के काबिल हैं,
ज़ुबां तुम्हारी
खा लेती हैं,
तुम मुंह से बोल के क्या कर लोगी?

खाना बनाना 
आता ही है,
खुश भी मुझको 
कर लेती हो,
घर के चार दिवाल
के पीछे
हंसना गाना
कर लेती हो,
हाथ–गोड़ से 
चल ही लेती हो !
कलम चला कर क्या कर लोगी?

चौराहे तक
जा सकती हो,
मोल–भाव भी
कर सकती हो,
हुश्न–जमाल की
रंगत पर तुम,
लाली खुद से
लगा सकती हो,
कह दो जो है
मर्द से कहना,
तुम संसद जाकर क्या कह दोगी?

कौन तुम्हे महफूज़ रखेगा
चोरों–डाकु–गुंडों से,
कौन चरित्र का परचम देगा
अग्नि–दाह से निस्बत से,
चारो तरफ हमीं फैले है
हमे ज्ञान अपनो का,
हममे बसी है क्रूर आत्मा
जो बस रची है हिंसा से,
हमको हंसा–रुलाकर
तुम अपने जैसा ही कर दोगी,

खान अब्दुल गफ्फार खान के जैसा 
हमे बना कर क्या कर लोगी?
बामियान के बुद्ध के बूत लगाकर
तुम तालिबान को क्या कर दोगी?

डर

मुझसे जो डर के करे बात
वो पहले से ही डरी हुई थी,
जो मुझसे मुंहज़ोर लड़ी
वो बहुतों के मुंह लगी हुई थी,

डर मेरा था या था उसका,
बल मेरा था या था उसका
गलती मेरी नहीं है कोई
यही मै सोचा करता था,

पर प्रेम की भाषा में भी 
क्यूं मै डर के सोचा करता था?
दिल की गली में जाकर क्यों
मै मन से सोचा करता था?🤭

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...