Thursday 30 November 2023

दखल

जब मुझको पूछे कोई 
तब मैं दखल करुंगा ठीक,
जब मुझको वो बुलवायेंगे
तब हाजिरी लगाएंगे निर्भीक,
अभी देख रहे हैं चुप प्रपंच 
अभी मानव के हैं रंग-मंच,
अभी हो-हल्ला है लोगों का 
अभी अपने सभी मशवरे दें,
अभी बहुत पुराने किस्से भी 
आयेंगे सामने दिखने में
अभी जीत के सवा-शेर अपने 
सेखियां बघारने आयेंगे,
अभी उनको गोली मारने को 
बंदूकें सभी उठाएंगे,
अभी कौन सुनेगा 
नमक बनाने का तजुर्बा बापू का 
अभी कौन हमारे बातों पर 
ध्यान भी देगा इतना-सा,
हम अपनी दखल लगाएंगे 
जब अपना नाम मुकर्रर हो,
हम जय श्री राम सुनाएंगे,
राम ऐसा जब चाहेंगे!

Tuesday 28 November 2023

मुर्ख

तुम मुर्ख बना दो 
फिर से मुझको,
फिर से कह दो 
गलती हो गई,
फिर से कह दो 
भूल हो गई,
फिर अपना 
जूठा खाने दो,
फिर से कहो कि 
बात करेंगे,
सुबह-सुबह
मुलाकात करेंगे,

मैं उम्मीदों के
कुछ दिये,
जला के बैठा था 
रातों में,
मैं फूलोँ- सी 
बात सजाकर 
बाट जोहता था 
राहों में,
तुम आई नहीं 
कभी मेरे रास्ते,
पर जाने की 
वजह बता दो,
कुछ बात बनाकर 
फिर फुसला दो!

Tuesday 21 November 2023

छूटा

छूट गया वो चौरा जाना 
छूट गया कुछ ठेकवा- लाई 
कुछ फल खाने को छूट गए 
कुछ ताश के पत्ते बिखरे रह गए 
उन्हें उठाना छूट गया,

छत पर सुबह उठकर व्यायाम 
कुछ सूर्य-नमस्कार छूट गया,
वो आत्मा और परमात्मा का मिलन 
कुछ प्राणायाम हमरा छूट गया,

हमने किया प्रणाम चाचा को 
और उठाए कुछ धान की गांठें,
कुछ सीमाएं लांघे ही नहीं 
पानी सूखना, मेल-मिलान ही छूट गया,

वैशाली के स्तूप भी छूटे 
राजगीर का महल बड़ा,
अर्घ दिया सूरज को जाकर 
मनभर डुबकी लगा लिया,
पर वहाँ पर गंडक मे सब 
अपना- तुम्हारा छूट गया,

ले आया शरीर मैं अपना
ओढ़ना-बिस्तर भी ले आया,
पाहूर ले आया झोले भरकर 
पर भूख-प्यास ही छूट गया,
त्यौहार तो बीत गए 
पर भाई चारा छूट गया
खुशी जुटा ली भरकर मुट्ठी
दिल बेचारा छूट गया
क्रिकेट देखने रात को जागे,
चैन से सोना छूट गया!


Friday 17 November 2023

सो गया

कोई लड़कर सो गया 
कोई बस झगड़ कर,
कोई तेवर दिखाकर 
कोई चुप कराकर,

कोई आया और 
ऊपर बैठकर सो गया,
कोई नीचे बिछाया 
और दुबक कर सो गया,

कोई सीट के नीचे 
घुसकर सो गया,
कोई गुसलखाने की 
सड़क पर सो गया,
कोई और मेरे कंधों पर 
सर रखकर सो गया,
कोई सोया नहीं था 
दो दिनों से,
सब्र करकर सो गया,

आज जनरल डिब्बे मे
एक दोस्त चुनकर सो गया,
आज जनरल डिब्बे मे
सब का सब 
मिलाकर सो गया!

Thursday 16 November 2023

बदतमीज

हमें बदतमीज रहने 
कि उनका दिल बहल जाए,
सचिन-राहुल तो नहीं 
जो उनके काम आ जाए,

बिना कीमत के आये हैं 
महज पानी सरीखे हैं,
ज़रूरत से नहीं बढ़कर 
की शौक से रात कट जाए,

निरा आलू की सब्जी हैं 
किसी के साथ बन जाए,
चखना हो नहीं सकते 
की वो बदनाम हो जाएं!

नादानी

अपने बीते हुए कल में 
थोड़ी नादानी रहने दो,
आज बातें ठीक मत करो 
उन्हें इंसानी रहने दो,

वो कहेंगे की तुमसे ही 
शिकायत है मुझको,
आज उनके पिशानो
थोड़ी परेशानी रहने दो,

अभी तो पाव पटके हैं 
कभी पंजे लगायेंगे,
उन्हें नाख़ून मे अपने 
ज़रा शाही लगाने दो,

अपने मन की करने को 
बड़े ही मनचले हैं वो,
पहनने जीन्स दो उनको 
ज़रा स्याही लगाने दो,

कुछ बोलने को वो 
बड़े तैयार रहते हैं,
उन्हें गुस्सा तो आने दो 
ज़रा गाली सुनाने दो,

जुबां पर है बढ़ा चस्का 
की डेयरि मिल्क खाते हैं,
ज़रा-सा मिर्च चखने दो 
हमें पानी पिलाने दो!





बदली

बारिश मे भीगकर हम 
मुट्ठीभर किरणें उठा लेते,
जहां नहीं होती तुम 
वहाँ भी पा लेते,
आजमाने की आदत है तुम्हारी 
हम खुद को अजायबघर बना लेते,
आज के बाद फिर 
मिलना कहाँ मंजूर है,
तुम सोचती हो मन मे
हम कदम बढ़ा लेते,
आजकल बदली है मेरे 
शहर की रोशनी मे,
हम दिवाली मनाकर 
तुम्हें बुला लेते!

कमी

तुम होती तो 
कह देती की 'जाने दो'
तुम होती तो 
भरमा देती झूठे गुस्से से,
तुम होती तो 
माजरा समझ जाती 
बात मेरी सुनकर बस,
तुम होती तो 
करती बातें 
मिलने वाले शौहरत की 
होटल, खाने, पानी की 
आने वाली गाड़ी की,
सोने वाले बिस्तर की 
और साफ़ सफ़ाई चादर की,

तुम औरों की बातों का 
मतलब खूब समझ जाती,
तुम उलझन के पहले ही 
कुछ-कुछ कहकर निकल जाती,
तुम कभी-कभी आती 
तुम काम छोड़कर आ जाती,
तुम मेरे काम की चीज़ों को 
अपना काम बना लेती!

Friday 10 November 2023

चहल

वो गर्विले गलियारों की चहलकदमी
वो निर्भीक यारों की गलबहियाँ,
वो ठंड की हल्की धूप के खुले मैदान 
कंधों के पीछे ढलता सूरज,
वो छत के ओदे कपड़े
अंधेरों में दबे पांव,
वो कुछ और कलम चलाने के पहले 
मिलने वाले थोड़े पल,
वो syllabus की अंधी दौड़ 
और कभी ना आने वाला कल,
वो प्रिन्सिपल के कमरे के बाहर 
फैला हुआ सा डर,
और मिमिक्री करने से 
हल्के होते पल,

आकाश के तारे गिनते-गिनते 
सोने जाते बज जाते दो,
वो उठना ठंड में pt जाना 
पहन ओढ़ कर मोजे टोप,
कुम्हलाई आँखों से उसको
निगाह में भरने वाली धुन,
कुछ खेल-खेल मे लड़ जाना
वो इश्क मे उसके टांग लड़ाना!

Wednesday 8 November 2023

माटी और सफ़ेद

आज सफ़ेद 
पहन कर चलते,
हम रुकते 
माटी से पहले,
माटी कर देती 
मटमैले,
रंग चमक की 
फेंके उजले,
माटी से माटी 
बचना चाहे,
माटी सफ़ेद ही 
रहना चाहे,
बापू के वस्त्र 
की कर अभिलाषा,
सामने रखना 
चाहे आग,
बापू के तौर तरीकों से 
आए कैसे लाज,
माटी और 
सफ़ेद मे भेद,
आज चाहता मटियामेट!


आग

मुझे इतना 
जला रही है,
पानी अन्तर का 
सूखा रही,
उबाल रही 
अंग के भीतर 
ज्वाला से बुलबुले 
उठा रही,

लहरों को 
करती तीव्र,
इधर-उधर 
भटका देती,
नाम नहीं लेती 
गंगोत्री का,
चलने को करती 
टेढ़ी- मेढ़ी,

खींच पकड़ कर 
लेती हाथ,
पाँव कहीं और 
कहीं पर माथ,
अम्बर के ऊपर, 
धरती के भीतर 
अतल और पाताल,
आग बड़ी भीषण विकराल 
कर रखती है अकाल!


Monday 6 November 2023

ज़रूरत

एक ज़रूरत की चीज़ थी 
जो रखे हुए ख़राब हो गई,
वो अंगूरों का रस थी तर्बियत के लिए,
आज हमारे लिए वो शराब हो गई,

अब सुधरने मे उसकी 
मशक्कत बड़ी होगी 
हमारा नाम लेकर वो 
बहुत बर्बाद हो गई,
और आजमाना था उसे 
हमारे दिल फरेब को,
वो शुरुआत से पहले ही 
तलबगार हो गई!


Sunday 5 November 2023

6 lane

यह मन की वृत्ति 
यही चौड़ी-सी सड़क,
यह मन के कई सतह 
कोई हवाई, कोई खंदक,

एक से जाते बहुत विचार 
एक से एक-दो ही एक बार,
एक की भीड़ हज़ारों की 
एक पर लगी है बड़ी कतार,

एक पर मयखाने हैं खुले 
एक पर मन्दिर और मज़ार,
एक पर वैभव की आसक्ति 
एक पर फीका लगे संसार,

समय-समय ले राम का नाम 
करते रहते हम आर या पार!

दूसरे की बेटी

वह दूसरे की बेटी 
निकल गई है घर से,
बाज़ार मे, गली में 
मुहल्ले में, चौराहे पर,

वो दूसरे की बेटी जिसपर 
सभी की नज़र,
चाहे जैसी भी हो 
बुरी या बेहतर,

उसके निहारते कपड़े 
उसके बिलाउज के स्तर,
उसके घुटनों के कवर 
उसकी दिखती हुयी कमर,

उसके नखरे, उसकी अदा 
उसकी चढ़ती हुई उमर,
वो आती हुई इधर 
वो निकलती हुई किधर,

वो किसके गई थी घर 
उसकी जींस उसकी टॉप 
उसकी गोलगप्पे की चाहत 
उसके होंठो की रंगत,

वो दूसरे की बेटी 
वो खुली हुई तिजोरी 
वो चलती फिरती बाज़ार!

Friday 3 November 2023

ख्वाहिशों की ख्वाहिश

ख्वाब सजाने की 
ख्वाहिश बड़ी- बड़ी,
ख्वाबों में लगाने की 
चार चाँद बड़ी-बड़ी,

ख्वाबों की माला में 
मोतियों की लड़ियां लगा लेती,
मोतियों के ऊपर 
और सितारे सजा देती,

ख्वाबों को देखकर 
यह और ख्वाब सजा देती, 
जितने झूठे गीत 
ये गाते हुए भुला देती, 
सारे दुख, सारे संताप 
और मांगने की ख़ातिर 
ये झटपट हाथ बढ़ा देती,

ये ख्वाबों की ख्वाहिशें 
ये और की ख्वाहिशें!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...