Wednesday 31 July 2019

गुमराह

मै फिर ख़ुद से
भटक गया था,
तुमने देखकर
बदल गया था।

मैंने सोचा
जिसको चाहा,
मैंने पाया
जिसको त्यागा,
कुछ और सोच
मै पिघल गया था।

मैंने तुमको
हँसते देखा,
हरकत करते
तुमको देखा

चंचल चितवन
रूप देखकर
मई भी नाचने
निकल गया था

मै फिर ख़ुद से
भटक गया था।

Saturday 27 July 2019

मन

मन करता है
खुद से बातें।

प्रश्न कई
नाना-विधि करके
खुद को रक्खे आगे।

 मन करता है खुद से बातें।

सत्य को देके
नई सी उलझन
झूठ गढ़े
क्यों बिन बातें?

मन करता है खुद से बातें।

अट्टहास, शोक, विलाप
एक ही बात पर करे आघात
बैठे निजी हित पाके।

मन करता है खुद से बातें।

Tuesday 23 July 2019

Just a call away

I am just a call away

Call me when
you are happy and gay
call me when
you have a sad day
call me when
you are in distress
call me even
for a de-stress

I will never 
leave you dismay

I am just a call away

Call me to ask
things of past
call me to know 
my religion and caste

Call me if you 
need to debate
call me if you
are irate

Call me to know
Konark and Ratha
call me to know
cyclones are tough

Let us have some
words for play
you propose 
and I dismay
Let's catch up
in another affray

I am just a call away.

Monday 15 July 2019

Penance

आज फिर वही ठंड,
हल्के बारिश वाली
रोम-रोम उत्तेजित

सतह के नीचे,
प्रवाहित मंद तरंग
घर्षण से उन्मादित
तन स्थिर मन तंग।

आलिंगन को व्याकुल
ऊष्मित अंग समग्र,
निथर जाती टपक-टपक
मेरी सतही तरंग।

तलवे ठोस झंकृत
भीतर विद्युत अनंत,
स्मृति पर आक्षादित
छुअन, चुभन, सुगंध।

विश्वामित्र बिन मेनका
मनोवृत्ति का आलस्य,
मेरी अग्निपरीक्षा
बारिश मे तपस्या।

Thursday 4 July 2019

Article 377

चित्रण:श्वेता
फिर कमसिन
पूनम की रात,
रोशनी की बरसात
फलक का चाँद।

रोशनी उतरती
परत दर परत,
हवा की सतह पर
क़दम रखती।

छन से बिखरती
कोई एक चंचल,
हवा की चुभन पर
गिरती-लुढ़कती,
मदमस्त छलकती।

सघन सी फ़िजा के
कई बिंदुओं पर,
चूमे सरल सी,
कई गाँठ खुलती।

कोई जाके बैठी
फूलों की नाज़ुकी पर
चौपाल है यह
गुलाबी सफ़ेदी।

डालियों की अँगड़ायी
हल्की जम्हाई,
बाज़ुओं से लटकती
अंधेरों में छुपकर
बत्ती जलाती,
फिर छुप जाती, सताती।

रात थक के बैठी
नहाकर सँवरती,
रोशनी की गिरह मे
सृंगार उघरती।

आज बिन परीक्षा
कोई चित्र रंगती,
प्रकृति वसंत का
नया गीत लिखती।

नज़र से निहारा
अधूरा ही पाया,
सुना राग दीपक
नहीं मन सुहाया।

फूलों की ख़ुशबू
थी मुँह चिढ़ाती,
हवा बाँह छूकर
ना सुलाती, जगाती।

तुम्हारे अधर के
भीगे सतह पर,
रात और रोशनी
मिलकर चमकती।

तुम्हारे और मेरे 
अधर के मिलन पर,
घूलती-फिसलती,
एक हो जाती
रात और रोशनी।







Sunday 30 June 2019

दोस्त

अंग्रेजी बोलता है
फर फर मेरा दोस्त
विदेश घूमता है
फर फर मेरा दोस्त
पैसे उड़ाता है
फर फर मेरा दोस्त
दारू पीता है
फर फर मेरा दोस्त।

मुझसे आगे चलता है
 हर पल मेरा दोस्त
फोटो फेसबुक पर डालता है
हर पल मेरा दोस्त

बहुत मजे करता है
हर पल मेरा दोस्त
कुछ भी ऐब नहीं है
बड़ा सही है मेरा दोस्त

मेहनत है सब करते
पसीना खूब बहाते
चुटकी में हल करता
हर वही है मेरा दोस्त।

मुझको जानता नहीं वह
पर प्यार से मिला था
पुचकार कर दो मिनट
मुझसे गले लगा था

अलविदा कहा था
मैंने नजर झुका कर
रुतबे और दया मे
बड़ा धनी है मेरा दोस्त।

2 मिनट नहीं
2 जिंदगी गुजारी
बीने थे मीठे अमले
बइरी कि धर मुँँडारी

उंगली पकड़ के जिसकी
लड़-भिड़ गई थी सबसे
मिल कर रखे थे दिये
दिवाली बना घरौंदे

रंग लगाकर गालो
जलाई साथ में लड़ियाँ
फोड़े नहीं पटाखे
पर मुस्कुराए बढ़िया।

सड़क पर गई
सब्जी का लेकर थैला
खाए गोलगप्पे
कलुआ के बाई का समोसा

उसकी न याद आई
किया भी नहीं फोन
जिस पर सितम बड़ा है
रो रही है मेरी दोस्त

वह छूट गई है पीछे
वह नहीं है मेरी दोस्त
जिससे मिली नहीं हूँँ
अब वही है मेरा दोस्त

जिस से मिली भी नहीं हूँँ
क्या वही है मेरा दोस्त ?

अरसे की याद

एक अरसा हुआ
तुमको देखे हुए।

की आंख का काजल
अभी भी फबता होगा
हर सुबह तुम जाती होगी
तो lab तुम्हारी खुशबू से
अभी भी महकता होगा।

तुम्हारे काले से चेहरे पर
काला-सा काजल,
काली नोटबुक
और काली सी पेन

कई wristband और
काला ही phone
काला चश्मा और
काली ही frame

नजरबट्टू बनकर
असर करती होगी।

एक अरसा हुआ
तुमको देखे हुए।

कि तुम्हारी हंसी से
माहौल खूब सजाता होगा,
चौड़ी आंखों से धीरज
अब भी डर जाता होगा।

तुम्हारे गुजरने से
खुशी अभी भी टपकती होगी
तुम्हारी झपकी पर
किसी की नजर रूकती होगी।

एक अरसा हुआ
तुमको देखे हुए।

अग्नि परीक्षा

सिन्हासनरूढ़, गर्वित-राम,
सिर मुकुट, तिलक चारू
चारक-सेवक, अनुज संगत
छप्पन-भोग,आहार

पीत-वसन आभूषित काया
तृप्त-नयन, कौशलचंद छाया
पर सीता हिय-बसत
न किंचित मन अकुलाया

क्या कर दे प्रमाण
कांता-प्रेम अपार का
बिरह-विच्छेद उर-संसार का

कैसे दे राम अग्नि परीक्षा ?

धनुष धर  स्पर्धा मे
आया कर्ण बिन न्यौता के
अनंत-प्रशंसा अर्जुन की
सुनकर आगंतुक जनता की

नहीं मन राज्य का लोग भरे
बस कौशल का भुज कोष लिए
लेने केवल खेल में भाग
मन में भरा सहोदर सम्मान

पर क्या कर दे प्रमाण
साहित्य-कला के कुल का
जाति के निर्मूल का,
क्या हेतु है प्रतिस्पर्धा का
जो प्रेम बढ़ाए मानव का

कैसे दे कर्ण अग्नि परीक्षा ?

Friday 21 June 2019

हद

मुझे इंतज़ार है,
तुम्हारी बेक़रारी की हद तक।

तुमको हो फिर यकीन
मेरी कसक को सुकून,
मुहब्बत रिसे आँख से
बनके कतरा लहू,

मुझे है ऐतबार
मेरी ज़िद की वजह तक।

मुझे है इंतज़ार............

तुम ना ढूँढो कोई
हमसफ़र मेरे बाद,
घूमो कहीं रात भर
हाथ मे हाथ,साथ-साथ,

मुझको हो ना गिला,
तुम्हारी अधूरी नज़र पर।

मुझे है इंतज़ार,
तुम्हारी बेक़रारी की हद तक।






माँ का जगराता

भैया की आवाज़ है मीठी,
माँ के जगराते मे
भजन उसने गाया,

सबने सुना
हर मन भाया,
माता की उपासना कर
उनका आशीष पाया,
रात भर हर एक जगा
माता को जगाया।

सबका जगराता,
माता का जगराता।

घर पर भाई आया,
मम्मी को ख़ूब सुनाया
उनकी नज़र को झुकाया
उनको उनका काम सिखाया।

माँ डर गयी,
तिरस्कार से सहम गयी,
कल चला जाएगा भाई
यही सोचकर ठहर गयी,
पिता की दो बातें भी सुनी,
कुछ कड़वे घूँट पी गयी।


बेचैनी में रात भर जागी माँ
सब सोए, माँ जागी
यह हुआ बस
माँ का जगराता।






















शादी

जगराते में जागकर
रात भर नाचा,
दूसरों को देखकर,
ख़ुश होती बेटियाँ।

भैया ने गाया,
छोटे ने गाया,
माता की चौकी ने
सबको झूमाया,
तुम होते तो........
आँखों को सपना दिखाया
चौड़े मुँह हँसाती मौसियाँ।

नानी को सहारा दिया
आगे बढ़ाया
गठिया का दर्द भुलाया,
ना छूटा कोई,
सबको खाना खिलाया,
नज़र ना मिलायी
पर हाथ बटाया,
स्वागत करती मामियाँ।

किलकारियों से
आँगन गुंजाया,
सज-धज के
सबको रिझाया,
छोटे बच्चों से
Frog-race लगाया,
नन्हें क़दम बढ़ाती बच्चियाँ।



Thursday 20 June 2019

विच्छेद

चित्रण:श्वेता
मटकी भरे माखन
फूल गली उपवन
पगडंडी पर नज़र
अनसुना मुरलीधर

ये राधा किसी और की।

मायूस धरी मुरली
नयन बिन लावण्य
शून्य-स्तब्ध-चेतन
राधा भूली मोहन

ये राधा किसी और की।

हाथ प्रिय कंगन
माँग धारे परधन
देर भयी गिरीधर
मूरली धारे अधर

अब राधा बस नाम की।

Wednesday 12 June 2019

सब सामान्य

हमारा लड़ना सामान्य।
मेरा डरना सामान्य।
मेरा कहना,
तुम्हारा बिदकना सामान्य।

मेरा सत्य,
तुम्हारी हिंसा सामान्य।
मेरा ह्रदय,
तुम्हारा पैसा सामान्य।

मेरा cool,
तुम्हारा झूठ सामान्य।
दिन में सोना,
रात में पढ़ना सामान्य।

अब डर नहीं होगा,
क्योंकि हर शिकायत ,अब हो गयी सामान्य ।

बंगाल में चुनावी हिंसा,
दीदी का मांगना पैसा सामान्य।
मोदी का इंटरव्यू सामान्य।
रविश की बौखलाहट सामान्य।

कन्हैया के भाषण सामान्य।
अरविंद की झुंझलाहट सामान्य।
अब चिढ़ नहीं होगी, क्योंकि बर्दाश्त की राहत सामान्य।

लड़कियों की scooty,
हाफ पैंट मे बाहर सामान्य।
लाइब्रेरी की ठंडक और
लिंगानुपात सामान्य।

CBSE की topper और
non-medical की चाहत सामान्य।
मुहल्ले की दीदी की
मुस्कुराहट सामान्य।

दोस्ती की ad,
नए चेहरों का स्वागत सामान्य।
item-song के परे,
एहसान की मुहब्बत सामान्य।

अब झिझक नहीं होगी,
क्योंकि लड़कियों की आहट सामान्य।

मुस्कुराहटों पर राहत,
ठहाकों की बगावत सामान्य।
तुम्हारी थकावट,
मेरी गर्माहट सामान्य।
तुम्हारे होठों की झुकावट,
मेरी सांसो की हिमाकत सामान्य।

अब कसक नहीं होगी,
क्योंकि पाँचों इंद्रियों की लगावट सामान्य।

चलने में राहत,
खाने में बेस्वाद सामान्य।
खाना बनाना
और दूध पीना
फिर मुझको बताना सामान्य।

नजर चुरा कर,
खुद की नजर से
इंतजार सामान्य।
गुस्से की चासनी मे,
फटे हुए दूध का
छेना-सा उबार, प्यार सामान्य।

अब तकलीफ नहीं होगी
क्योंकि छुपा इजहार सामान्य।

द्रोणाचार्य

मेरे मन मे बसी है एक मूरत
तुम्हारे से मिलती है एक सूरत
वही मेरे दिल का द्रोणाचार्य है,
'एकलव्य' के समझ का वही ज्ञान है।

एकलव्य तो बना था, बड़ा ही धनुर्धर
गुरु को समझ कर पत्थर की मूरत
किया उसने आप ही अभ्यास निरंतर
मेरे बहस मे की वही बिंदु हो तुम
हर पल मुझे बस यही ध्यान है।

एक आँख बंद कर,
साँस भीतर बाँध कर,
मन मे उनको ध्यानकर,
लक्ष्य अव्वल जानकर

मै भी आँखें संकुचित कर
बातें तुम्हारी सोचकर,
तर्क रखता हूँ परस्पर
अपने सच को मानकर,

वाम मे धरकर धनुष
वज्र बाहु तानकर,
शर और मिलाकर प्रत्यंचा
सीधे से संधान कर,

मै हूँ फिर करता प्रकट
प्रश्न, प्रत्युत्तर जानकर,
चेहरे पर देखे विजय के
भाव या मुस्कान भर,

चरण भूमि रोपकर
कान तक ले खींचकर,
छोड़ देता वह अंगूष्ठा
एक बारी भींचकर,

विचरोत्तेजक, भावतिरेक
भावना में डूबकर,
मै तुम्हारा हाथ धरता,
तिरता हूँ सच ढूँढकर

मुस्कुराकर नमन करता
गुरु प्रतिमा को मानकर,
लक्ष्य भेदा अचूक ख़ुद ही
पर गुरु-कृपा ही जानकर,

मै भी मानूँ द्रोण तुमको
मुस्कुराता अंत मे,
मेरा सत्य मुझको लुभाता
भव-सागर अनंत मे,

पर अँगूठा दान लेकर
छोड़ देना व्यर्थ मे,
'द्रोण' करते हैं युगों से
गुरु-महिमा कलंकित स्वार्थ मे।

टूटी चप्पल

एक पल आवेग मे
दौड़ भागा वेग से,
हाथ आया कुछ ना मेरे
टूट गयी चप्पल !

एक बाजु टूँट गयी
दाहिने पाँव की,
पैर उठता भी नहीं था
घिसटती थी चाल ही।

मन मे कसक थी छूट की
आँख गीली हो गयी,
मन मे फिर आक्रोश आया
पर बाँह ढीली हो गयी।

पक्की सड़क को छोड़कर
गाँव की कच्ची धरी,
धूल-सज्जित हो गयी
चप्पल नवेली खेत की।

पर तो चप्पल था सहारा
एक अकेला, राह मे,
छोड़ पाता फिर भला क्यूँ
काँटे-कंकड़ झाड़ मे।

थी गनीमत भी ना इतनी
कीचड़ भी आया राह मे,
दौड़कर छलाँग मारूँ
अब कैसे अनुपात मे ?

इस तरफ़ भी, उस तरफ़ भी
कंकड़ पड़े थे चोख से,
सोच भी सकता नहीं था
चप्पल बिना मै कूद भी !

अब विकट गंभीर उलझन
किस तरह लाँघूँ समंदर,
क्षुद्र भी ना धर सकूँ मै
रूप सुरसा के विवर पर।

पर किरण की एक बिंदु
चमकती उस ओर से,
मानो मुझको दी दिलासा
जब तम घिरा घनघोर से।

उसने कहा कीचड़ नहीं ये
मिट्टी-पानी ही तो है,
धूल जाएगा एक बारी
जान पहले तो बचे।

मै निडर, संकोच लेकर
पैर मिट्टी मे रखा,
टूटे चप्पल को बचाना
ध्यान मन मे ना रखा।

चिपक गयी चप्पल
हो गयी अटल,
मैंने बायाँ पैर झटका
पार किया दलदल।

मै तो चल आया निकलकर
छूट गयी चप्पल,
अंत मुझको काम आयी
टूटी हुयी चप्पल।

Passenger

सबको पहले राह देती,
ख़ुद खड़ी वो wait करती
जिस मील को देखा कहीं भी,
वहीं ज़रा विश्राम करती

हर राही लेती
सबको सीट देती,
सस्ती, अंजान
देर अबेर चलती,
नि:स्वार्थ passenger

Thursday 6 June 2019

Facebook की photo

 तुम्हारी facebook की फोटो
अब खिल गई है
आंखों की चमक
बिल्कुल नई है ।

किसे देखकर
तुम मुस्कुरा रही हो ?
किसे सोचकर कैमरे से
नजर मिला रही हो ?

तुम्हारी रूखी रंगत
अकेले की संगत
छुपी बैठी आदत
मायूसी वाली सीरत

इन्हें छोड़कर
तुम बिखर जा रही हो।

बाल तुमने अपने
सलीके से बांधे
चटख रंग कुर्ता
चुने खुद से जाके

तुम aroma लगाकर
गमक जा रही हो।

तुम्हारी तरफ है
खुशी वाला कोना,
Chilli Restaurant मे
दोस्तों संग रोना।

भीड़ मे अलग-सी
नजर आ रही हो,
किसे सोचकर
तुम सवंर जा रही हो ?

किरन

न चेहरा, न पहचान
कुछ दिनों की दुआ-सलाम
संभली-समझदार
हर स्थिति में तैयार।

बिगड़ने न दे
कोई भी बात,
समझाए मुझे
मिनटों मे जज्बात।

नाजुक से मसले पर
धीरे से बोले,
अगर टूटे हिम्मत
तो बाजू पकड़ ले।

इतिहास की जानकारी
नेहरू-इंदिरा संवाद,
जाने देश-दुनिया
Thehindu के साथ।

झूठ और सच,
समन्वय के  मध्य,
हल्के से रक्खे
अहिंसा से सत्य।

Left और Right,
दोनो को टटोलती
अटारी और बाघा के
अंतर उधेड़ती।

समय को समझकर,
करती है vote.
गंगा-सी निर्मल
करता मै note.

मेरे धैर्य से मेरा
परिचय कराती,
आशा की किरन
तुम खुदाई, खुदा की।

Respect

Respect me,

As a blade of grass,
which you tread barefoot
in the morning.

As cat or dog,
whom you share food
without mocking.

As a fly or an ant,
which you stalk
creeping and blocking.

As a bird,
who always coo-s in shrubs
in garden you are passing

As an insect,
you did not tramp
trodding on your walking

Respect me,
as an idea,
you cherished
always thinking.

As a lesson learned,
remembering
last time ranting.

Respect me,
as a book,
you smelled and
kept without reading.

As a flower,
you found
in the book of sibling.

As a pen,
you chewed
while writing, contemplating.

Respect me,
Neither as an authority
Nor for seniority,
 Either obligation
or responsibility.

Respect me,
as one of His
Pristine creativity.

Sunday 26 May 2019

मैं

तुम्हे मुझ पर विश्वास नहीं
किंचित यह एहसास नहीं
मैं भी सत्य की साधक हूँ
सत्य की ही मैं प्रचारक हूँ

मैं हूं बोलती सत्य वचन
सत्य ही मेरे कर्म और मन
मैं भी सत्य जानती हूँ
कुछ कम है पर, मानती हूँ
पर सत्य को माथे धरती हूँ
उस पर मुखर हो लड़की हूँ।

जो सत्य ने मेरा जान सके
मेरी बात पर ना विश्वास रखे,
उस पर हो जाती वाणी प्रखर
आंखें चौड़ी और रक्त प्रबल,
गहरी सांसें और फैले विवर
रोष-विकार भौहें-अतल।

क्षमा क्षमा सर्वज्ञ-सबल
विश्वास न मांगे सत्या है,
बसता मैं मे कब ब्रह्म भला
मैं का तो मूल ही मिथ्या है।

द़ाग

तुम्हारे-मेरे मिलने पर
कुछ दाग लग गए हैं,

तुम्हारे कपड़े पर
आइसक्रीम के दाग
जो छीन कर खाए थे मुझसे।

अखबार पर खाने के दाग
जो खाना गिरने से बचाने
तुमने नीचे बिछाए थे।

दीवारों पर बिंदियों के दाग
जो तुमने सजते हुए
माथे से हटाये थे।

आस्तिन पर आंसुओं के दाग
जो तुमने जाते समय
पोछते हुए छुपाए थे।

हथेली पर स्याही के दाग
जो तुमने गुदगुदी करते समय
जबरन ख़चाये थे।

मेरे ख्वाबों में ख्वाहिशों के दाग
जो मैंने तुम को बाहों में भर के
बेखुदी कर लगाए थे।

कुछ दाग रहने दो
मेरे घर के कोनों मे
जो याद दिलायें वो लम्हे
जो मैंने तुम्हारे संग बिताए थे।

Tuesday 21 May 2019

Modi-Ravish

दो सपूत भारत माता के
दोनो चतुर प्रवीण
एक पंतप्रधान विशेष
एक पत्रकार प्राचीन

एक चूस कर खाए आम
एक गुठली से उगाए झाड़
एक non-political बात बनाए
एक फिर उसको ढोंग बताए

एक शांत गंभीर हंसमुख
एक चिल्लाए भरसक उन्मुख
 एक डरे बातें करने से
एक चले सबके कहने से

एक सोचें वह गाली देगा
एक बोले वह कह कर लेगा
एक करे राडार उपहास
एक दुहराए विकास की बात

एक खुशियों में दर्द भुलाए
एक दर्द को माथे लगाए
एक को गंगा घाट है गंदा
एक को पूरा बनारस अच्छा

एक सोचे क्यों 'मन की बात'
एक सोचे क्यों शोर अकाज
एक को द्वेष भरा चेहरे पर
एक नाम भी ना ले कहने पर

एक बच्चों को गले लगाए
एक बच्चों का दर्द बताए
एक मुस्लिम का डर समझाए
एक हिंदुत्व का परचम लहराए

एक विकास की बात करे
एक चुप्पी पर प्रश्न करे
एक गिनाए  शौच-मकान
एक पूछे क्यों नोटबंदी-अखलाख

एक सुन गाली बउराए
गाली को उस पर मढ़ गुर्राए
एक गाली सुनकर भी मुस्काए
आगे आगे बढ़ता जाए

दोनों चाहे भारत माता
दोनों 'मैं' से लड़ ना पाए
दिल चाहे दोनों मिल जाए
मिलजुलकर सरकार चलाएं

दोनों मिले, बात हो जाए
हंस मिल दोनों हृदय जुड़ाएं

कबहु मिलाए राम गुसाईं
दोनों राम-भरत सम भाई
कृपा करें देही आशीष
घुल-मिल जाए मोदी-रवीश

Friday 17 May 2019

झूठ

(ग़ुस्से में)
बातें झूठ !
वादे-इरादे
प्यार-प्रेमाचार
चिढ़ना-चिढ़ाना
ब्रह्म, गीता, कविता
रोज़ाना के calls
बहस, बवाल

 सारे झूठ !

व्यथा झूठ,
तड़पना, छटपटाना,
हँसाना, पटाना
बातों मे लड़खड़ाना
सहेली से बतियाना
डर जाना, घबराना
empathy, sympathy
चेहरा दिखाना
आवाज़ सुनना
रात भर जगना
साथ मे सोना
गांधी, माता

सारा झूठ !

(ठंड )
दीदी से आज
लड़ायी हुई है,
तुमपर झुँझलाना
ग़ुस्सा दिखाना
तुमको परखना
झूठ बताना

मेरा सच !

(मुस्कुराकर)

अच्छा चलो
मैंने माना,
तुम्हारा रोना
मेरा हँसना

हमारा सच !

प्रीती

e-mail तुम्हारे नाम का
Gmail पर search किया
तुम्हारे आवाज़ का voicemail
archieve मे ढूँढ लिया

बहुत कुछ नहीं था, ख़ामोशी थी
background noise मे,
तुम कुछ unclear बोली थी,

यूँ तो तुम्हारी बातें
कभी घण्टों तक सुनी
पर ध्यान कभी नहीं रही

पर आज तुम्हारी
आवाज़ ही सुनकर,
मैं ख़ुद का ध्यान रख पाता हूँ।

और तुम कहती थी
"आवाज़ नहीं पहुँच रही,
शायद, network problem है !"








Thursday 16 May 2019

Feelings

बातें लगे झूठ, emotions बेमानी,
care करना मेरा, मतलब की ज़ुबानी।

मैंने बेची सस्ती ख़ुशियाँ,
ऐसा मुझको नहीं लगे,
सिसकना, डरना, रोना फिर से
आँसू से क़ीमत अदा करो।

चाँद, जान और kidney देकर
जाने कितनों ने चाहा है,
सच और सपने घुल-मिल जाए
ऐसी यादें दिया करो।

मेरे होंठों-गालों को
गुल और शबनम कहते हो
इनको चख कर बिना नमक के
जामुन-तुलसी-रस पिया करो।

मेरे ग़ुस्से-अइठन को
cute सी हरकत कहते हो,
मेरे yes, नो, may be को
झूठी उलझन कहते हो

इनको थोड़ा तेवर देकर,
पानी पीकर, हरा करो
फिर चुप रहकर, guilt feel कराकर
आड़े हाँथों लिया करो।

Feel नहीं आती है मुझको
इज़हार-ए-मुहब्बत नया करो।

Wednesday 24 April 2019

पशुता

क्यूँ दुर्भाव-अनर्गल को
हम किंचित रक्त प्रदान करें ?

हम पशुता का संधान करें ?

जब बात हमारी नहीं सुने
और करे मनमानी
हमें जानकर मूर्ख बड़ा
करे नाहक खिंचातानी

धमकाए रातों में आकर
त्राहि-त्राहि चिल्लाये
मिट्टी के मेरे महल गिराकर
उसपर डाले पानी

तब आवाज को ऊँची करके
व्यर्थ वाक्-संग्राम करें ?

हम क्यूँ पशुता संधान करें ?

जब चर्चा अपनी झूठ लगे
और बातें हों बेमानी
जब राम नाम मे ढोंग दिखे
और सीता मे नादानी

सत्य को सच मे नहीं जानकर
करे सुनी-सुनाई बातें
अपने अहं के मक़सद में
ख़ुद की रखे सानी

तब हम अपना फ़ोन काटकर
क्यूँ वाचन का अधिकार हने ?

हम क्यूँ पशुता संधान करें ?

जब तत्व ना देखे, देखे केवल
आडंबर के मूल
जब printer बेचने वाला हो
कुछ सिक्कों में मशगूल

जब विनाश का तांडव करते
अचमन जाए भूल
जब मानुष माखौल करे
संशय की उड़ाए धूल

तब अपनी सीमित क्षमता पर
हम थोड़ा सा विचार करें
जाँच परख कर मोल करें
यह आगे से ध्यान करें

हम बर्दाश्त करें, सौ बार करें
राम नाम का जाप करें
तत्व की ताक़त पर अपार
हम अडिग विश्वास धरें

हम ना पशुता संधान करें ।।



Monday 22 April 2019

अप्रैल

जंगल की आग-पलाश
स्कूल के बाद अवकाश
Auditing के बाद आराम
Result के बाद लघु-विराम

गुड़ी पड़वा, नवरोज़ बैसाखी
नौ दिन उपवास और रामनवमी
जन्मदिन के gift, किताबें नयी
नम्बर-percentage की बातें गयी

छोटे-त्यौहारों पकवानों का महीना ।

कमसिन धूप, उघरते पेड़
कटते गेहूँ, उखड़ते मेढ़
सिमटते बिस्तर, पसीने ढेर
ठंडा पानी, टपकता बेल

Ice-cream, क़ुल्फ़ी, हिर्माना, खीरा
पन्ना, पुदीना, टिकोरा, जलजीरा
छाता, फुहार, नीम का झूला
बच्चों की मस्ती, अम्बेडकर-जलियाँवाला

सबको जगाता आलस का महीना ।

शादी, दावत, करनी, ननिहाल
वार्षिकोत्सव,नाटक,गीत, farewell
Endsem,prelims, JEE-mains
Kota, NEET, unacademy games

Business, लूडो, कैरमबोर्ड
कुआँ-बग़ीचा, इमली का पेड़
Cycle, badminton, चोर-पुलिस का खेल
लकड़सूँगवा, नींबू व चीनी का मेल

मिलाता-सिमटता अप्रैल का महीना ।



Wednesday 17 April 2019

मेरे जीवन की कविता

जब हँसता हूँ,
             तो रुला देती है,
जब ग़ुस्सा हूँ,
             तो डरा देती है,
जब रोता हूँ,
             तो महटिया देती है,
जब गाता हूँ,
             तो सुर मिला देती है,
जब जाता हूँ,
             तो भगा देती है,
जब आता हूँ,
             तो लुभा लेती है,
जब कहता हूँ,
             तो भुला देती है,
जब सुनता हूँ,
             तो गुर्रा देती है,

मुझे सारे रंग दिखा देती है,
मेरे अहम् को छूकर मिटा देती है,

मै लिखता हूँ,
        वो पढ़कर सुना देती है,

मेरे जीवन की कविता।

Sunday 14 April 2019

ना करूँ ?

मै करती हूँ प्यार, ना करूँ ?
जैसे करती हूँ इज़हार, ना करूँ ?

तुम्हारे secrets जानूँ,
पर थोड़ा-सा मज़ाक,  ना करूँ ?

तुम्हें चाहने का अन्दाज़ है मेरा,
जैसे करती हूँ बात,  ना करूँ ?

जलन है मुझे, पिघले मोम के मानिंद,
उसपे थोड़ा सा बवाल,  ना करूँ ?

मुझे करना है ऐतबार, ज़िंदगी भर के लिए,
उसकी थोड़ी-सी पड़ताल,  ना करूँ ?

तुम करते हो phone, वक़्त-बेवक़्त,
होकर थोड़ी-सी परेशान,कुछ सवाल,  ना करूँ ?

तुम्हारी फ़रमाइशे, मेरे चेहरे का नूर,
हम दोनो को बेक़रार,  ना करूँ ?

Thursday 11 April 2019

आशिक़ी

हर तरफ़, हर जगह, बेशुमार आशिक़ी
फिर भी इक नाम की है, बीमार आशिक़ी।

रात दिन, सुबहों-शाम, नाम लेते हुए,
ज़र्रे में ढूँढ ले भगवान, आशिक़ी।

नाम के साथ में देह जोड़ा हुआ,
अपने हर इल्म से, बेकरार आशिक़ी।

उनसे करके बयाँ, हाल-ए-दिल, बेनक़ाब
उनकी रहमत की है, तलबग़ार आशिक़ी।

बातें कर ना सके, video call से,
Phone से ही रहे गुलबहार आशिक़ी।

उनके जलने पे कविता, पढ़ कर मेरी
अपने सत्य को रखे, पेशकार आशिक़ी।

Tuesday 9 April 2019

मिलन

मुझको बीता कल मानकर
उनको अपना सच जानकर
सर्वस्व निछावर, दानकर
अपनी ख़ुशियों को बाँधकर

तुम ख़ुश रहना।

नापाक चौखटें लाँघकर
कुछ हँसकर और कुछ नाचकर
गोलगप्पे मुँह में ठूँसकर
चटकारी ऊँगली चूसकर

तुम ख़ुश रहना।

अब पढ़ना ख़ुदगर्ज़ इरादों से
अब रटना नही किताबों से
अब ज्ञान सोखना, सोच-सोच
और कुछ पढ़ना, अख़बारों से

उन्हें पिलाना बच्चों को
परीक्षा और निगाहों से,
टीचर की कुर्सी सजाना,
श्यामपट्ट खचाना, हाथों से

अब btc, B. Ed छोड़कर
तुम ख़ुश रहना।

Tuition आँगन की चौकी पर
पैसे भाई की मुट्ठी भर
बैठ किनारे खिड़की पर
धर आँख gate की सिटकिन पर

यह सारी चिंता छोड़कर
तुम जो निकली हो छुट्टी पर
धन और जोड़कर काम, समय
 तुम ख़ूब सजाना, नईका घर

अब अपने आँसू, ख़ुद ही पोंछकर
तुम ख़ुश रहना।

तानो की किलकारी
और चिल्लाहट के बीन,
हँसने की पाबंदी
और गानों पर शमशीर,

पीछे छूटा बचपन
यौवन की दहलीज़,
प्यार की परिभाषा
और समाज की तस्वीर

अब गुज़रा वक़्त समझकर
तुम ख़ुश रहना।

अब अनमोल मृग-शावक
और नहीं अनुज के तंज,
शिवि-शिवम् के मध्य
अब नहीं धैर्य के बंध।

चंदन सुधा गमककर
होए विभोर अनंत,
श्याम-कांता निर्वसन
आलिंगित, अभिमंत्रित, वसंत।

अब निर्बाध बिखरकर
तुम ख़ुश रहना।

विच्छेदित भग-युग्म, पटल
मय-तृप्त, लिप्त, महीन अधर
दो नासिका तिल, सरल-अविरल
मिश्रित, द्विज वायु-विवर

अविचल-उष्मित-तीव्र, श्वसन
उद्वेलित-छिन्न-विकल मन
नि:अंगद-कंपित-तपित, तन
भय-तंद्राधीन-द्रवित, नयन

उभरित ढाल सघन,कंटक-सम स्तन
ध्वनि, ख़चित-आकूल-अवज्ञ
निशा,तम-घोर अभेद, अलभ्य
आनंद-मद-बेसुध, अतल-अगम्य

अब निर्ग्लानी उघरकर
तुम ख़ुश रहना।

अब बापू की जीवनी
रामायण का episode,
Coaching class की उपस्थिति
PhD English का course

Scooty की ride
गाँव-गली का छोर,
IAS की तैयारी
स्कूल भी अपना खोल

गोलगप्पे का ठेला
और fb के post,
पोशम्पा के लेख
Aur मेरी कविता के core

अगले जन्म से पहले,
तुमको पढ़कर-जीकर-मिलकर
मैं ख़ुश रहूँगा।

Saturday 16 March 2019

मंदबुद्धि

     कला चित्रण: श्वेता


फूँक कर बिखरा दिया,
उसने इंद्रधनुष ।
खुद के अंधेरों से निकाला 
उसने नवल रंग रूप ।
एक साथ पर कहा 
पति, बेटे और भाई ने,
'खराब कईलेस कागज ई !
एके कब अक्ल आई रे ?'

वह ठहर गई यह सुनकर
"क्या समझ गई तुम कुछ भर ?"

पूछा उसने,
क्या मंदबुद्धि है मेरी ?
होती क्यूँ उलाहना मेरी ?

सोचते क्यूँ हो
मुझसे हल न होंगे प्रश्न !
मैं निराकार ही हूं,
मेरा नहीं कोई भविष्य !
नहीं मेरी अंग्रेजी,
नहीं मेरा संघर्ष ।
क्यों नहीं करते तुम्हे
विह्वव  मेरे उत्कर्ष ?

क्यूँ कही तुमने,
हर बात मेरी झूठ ?
खेलना मुझसे ना होगा,
Badminton भी 1 टूक !
क्यों लगा तुमको कि मैंं
करती नहीं हूं काज ?
क्यूँ तुम्हें रिटायरमेंट मेरी
अखरती है आज ?

क्यूँ नहीं देखा किसी ने
मेरा पसीना, बूंद ?
क्यूँ मेरा उज्जवला कनेक्शन 
आज तक था दूर ?
क्यूँ हँसे जब शादी मेरी
लगती नहीं हर रोज ?
तंज़ तुमने क्यूँ कसे,
'करमजली है, बोझ !' ?

क्यूँ कहा तुमने,
'छोड़ दे ! तोसे ना हो पाई !'
slow learner  कहकर
तुमने मेरी क्लास लगाई ।
क्यूँ नहीं तुम रख ही पाए
आवाज पर काबू ?
क्यूँ हर गलती पर तुमने
कारण बताया 'तूँँ' !

एक स्वर हो कर के दे दी
फिर हर बेटी ने आवाज़,

गर सुनाती मैं सभी को
और न रखती राज,
रो रहे थे तुम फफक्कर
जो सवेरे आज।

आंसुओं की कीमत का 
तब पड़ता तुम्हें अंदाज,
और मेरी मंदबुद्धि
पर तुम न करते ना नाज़ ।

Sunday 3 March 2019

Out of syllabus

बच्चों की-सी mimicry,
राजेश खन्ना की  आवाज़।
ice-cream की तीन प्लेटें,
और चौथे का  परवाज़।

रात जागी आँखें,
दोपहर की उबास।
class मे हो देरी,
सहमा आशावाद।

साइकिल मे कम हवा,
पर lift ना लूँँ आज।
सबसे तुम छुपाती,
मन की खुराफात।

Google search करती,
India's top 10 Don.
दुबई की छोड़ी नौकरी,
डिंगो के चार हाथ।

भूख से  बिलखती
होकर जमींदोज,
घर के सर जुटाती
पढ़ने के वक्त रोज़।

नजरें चुरा के crush से
लंबी सड़क धरे,
चश्मा ही भूल जाती
जब उनको दिल गहे।

करके मेरी शिकायत
कहती नहीं खबर,
उल्टा मुझे डरा कर
चोरी करे नजर।

पम्मी मुझे बुलाती,
होंंठों को बंद कर।
तुम ढूंढती ठहाके
बुर्के को तंज़ कर।

तेरी आवारगी के जितने,
शर हैंं, उतने ही भेद।
out of syllabus ही जीती पलभर,
उस पर भी करती खेद ।

सुन्दरता की चौखट

तुम्हारे चेहरे पर मुहाँसे न आए,
आँँखों के नीचे की छाई न भाए,
fair&lovely की परत ओढ़ लेना,
गालों पे लाली के रंग पोत लेना ।

होंठों के रंग पर चमक होनी चाहिए,
पीकर के पानी नहीं तुम डुबोना ।
कमर की गोलाई, न 24 को लांघे,
cleavage को अचकन से मत ढा़क लेना ।

सुन्दरता की चौखट मत लांघ देना ।।

 फोन पर जोर से, ठहाके ना आएँँ,
देखो ना कोई तुमको, picture दिखाए ।
गाने कोई दिल के मत गुनगुनाना,
लोग डायन कहेंगे, उन्हें मत उकसाना ।

कविता और बातों  मे, मोहब्बत ना आए,
बेचैनी बस तुम को मन में डराए ।
उनको जमाने से शब्दों  मे कहकर,
राखी की कीमत को मत आंक लेना ।

सुन्दरता की चौखट मत लांघ देना ।।

अपने घरों की इज्जत बचाना,
कोई हिंसा करे तो मत चिल्लाना ।
उनके ही जैसे हैं, औरों के घर भी,
यह हकीकत नहीं है, यही दोहराना ।

जमाना है केवल background noise,
उसको बदलना नहीं काम wise,
ना हो सोच और शौच, घर की दहलीज मे तो
खुलकर जमाने में मत पाद देना ।

सुन्दरता की चौखट मत लांघ देना ।।

Monday 25 February 2019

रूठना

तुम यूँही रूठ जाया करो,
मै तुमको मनाने तराने लिखूँगा।

तुम ग़ुस्सा भी होना,
बिना बात, बेवक्त,
मै क्षमा माँगने के बहाने कहूँगा।

तुम यूँही रूठ जाया करो.......

तुम कहना मुझे
एक पत्थर की मूरत,
बन जाए मेरी भी
छोटी-सी सूरत।

तुम ख़ामोश रहकर
मेरी मसखरी पर,
देना मुझे
कोई दर्द बेमुरौव्वत,
मै उन्हें चूमकर,फिर सिरहाने धरूँगा।

तुम यूँही रूठ जाया करो.......

वजह ना कोई
तुम मुझको बताना,
मुझे ही पड़े
एकैक लम्हा उलटना।

गर मै जो बता दूँ
तुम्हारे मन की मुसीबत,
आँखें घूमाना,
कुछ मुस्कुराना।

तुम्हारे होंठों से पीकर
मै उस ख़ुशी को,
अपने नशे पर किताबें लिखूँगा।

तुम यूँही रूठ जाया करो.......

डायन

एक डायन पकड़ी गयी है,
सिखचों में जकड़ी गयी है।
बाल खुले हैं,
रूखे घने हैं।
आँखें बड़ी हैं,
ग़ुस्से में चौड़ी हैं।
पलकें मोटी हैं,
काली हैं,
रातभर रोकर,
थकान से फूली हैं।
नहायी नहीं है,
महक भी रही है,
दो दिन से कोने के,
कमरे मे जो पड़ी है।

पर आश्चर्य,

दाँत छोटे ही है, ख़ूँख़ार नहीं है।
होंठ सूखे है, lipstick नहीं है।
बच्चों को खाने की मंशा नही है,
बड़ों को पछाड़े, वो हिम्मत नही है।
नहीं ख़ून पीती, वो पानी गटकती।
खाने को छोटी कटोरी, तरसती।

लगता है वो, पहले स्त्री रही है !
बड़ी मेहनत से डायन बनायी गयी है।

ममता दिखाती तो,
माँ रहती,
पत्नी या बेटी ही रहती।
रसोई, गोशालों मे
महफ़ूज़ रहती।

लगता है जीने का हक माँग बैठी !

Hug

आज मै तुमसे गले जो लगा तो,

जाना की

मेरी भी बाहें लम्बी है,
इसमे तुम समा जाती हो,
बच्चों की तरह।
मेरे कंधे भी मज़बूत हैं,
इसमें तुम ठहर जाती हो,
बादलों की तरह।

जिस्म की धीमी आँच,
मेरे कपड़े के बाहर भी उफनती है,
इसमे तुम पिघल जाती हो,
चूड़ियों की तरह।

जाना की,

जब  बैठ जाती हैं
उभरी हुई शिराएँ,
और सो जाते हैं
खड़े हुए रोंगटे,

की कलेजे की ठंडक क्या होती है,
तुम जो बता जाती हो,
शायरों की तरह।

वो तकिया पकड़ के सोना,
या ठंडे पानी से नहाना,
आग की लपटों को
कम्बल से बुझाना,
बड़ा निर्मम होता है
राख को बुझा हुआ,
पर गर्म छोड़ जाना।
इसे तुम बुझाती हो,
पानी की तरह।

तुम्हारे पसीने की अर्क
और बालों की ख़ुशबू,
मेरी साँसें सोखती हैं,
अपनी साँसों की ख़ुशबू।

समाधि भी मुझको नहीं जोड़ती है,
तुम जो जोड़ती है,
रहनूमा की तरह।

तुमने पलकें उठाकर
आँखों में झाँका,
Facebook की photo-सी
तुम्हें मैंने आँका।
तुम्हारी ज़ुल्फें उड़कर,
होंठों पे आयी
मैंने कान के पीछे
सलीके से रक्खा।

मुझे देखकर मन में क्या सोचती हो,
मै मुझे जान पाया,
तुम्हारी तरह।

Monday 4 February 2019

बिरजु की माँ

मुझे फिर से आज
बृजेश की माँ दिखी

वही लाल रेशों वाली
फैली आँखें,
जो सुख गयी थी,
कितनी रात जागे।

आँखों से टपकता
वही ममत्व,
दर्द की चायछन्नी से छना
समान घनत्व।

वही छरहरी
कुपोषित काया,
मिलों तक रोज़
चली हुयी काया,
नटनी की तरह
बचपन से चली,
बीच-बीच मे
थोड़ा खाया।

बिरजु की माँ
कबसे डटी थी,
आज दिनभर वो
Aadhar की line में खड़ी थी।

लघु-विचार

दूसरा गाल

मुझे दूसरा गाल पसंद है,
क्यूँकी उसपर पड़ा तमाचा
बापू को लगता है,
और हम दोनो सुधार जाते हैं।


Agent vinod

मै agent विनोद हूँ,
मै लोगों के गंदे काम मे,
आगे आ जाता हूँ,
क्यूँकि मुझे कोई पहचानता नहीं,
और ना ही मै किसीको।

दूध

मैंने देखा दूध
खौल रहा था,
उफान मार रहा था,
कुछ बुलबुले एकजूट होकर
ऊपर की मलाई को,
फाड़कर बाहर निकल रहे थे,
निकल रहे थे,
निकल रहे थे,
निकल ही रहे थे,
मैंने देखा वो निकले नही,
दूध बस धीमी आँच पर पक रहा था।


चुम्बन


तुमने काँटों की डाली देखी,
मख़मल सुर्ख़ गुलाब ना देखा।
तुमने घटाएँ काली देखी,
बादल का उन्माद ना देखा।

तुमने देखी हँसी-ठिठोली,
अंदर का अवसाद ना देखा।
तुमने आँखें सूखी देखी,
सूखे आँसू की धार ना देखा।

तुमने देखी भाषा मेरी,
पर मेरा व्यवहार ना देखा।
तुमने देखा वक़्त लगा है,
पर मेरा इक़रार ना देखा।

तुमने देखा जिरह बड़ी है,
अपनेपन का एहसास ना देखा।
तुमने देखा पत्थर-मूरत,
उसपर गहरा घाव ना देखा।

तुमने अपना बचपन देखा,
उसमें मुझको पास ना देखा।
तुमने अग्निपरीक्षा देखी,
सीता का विश्वास ना देखा।

तुमने मेरा होंठ टटोला,
बंद आँखों का भेद ना देखा।
चुम्बन तुमने फीका पाया,
रोम-रोम उल्लास ना देखा।

तुमने Aadhar connection देखा,
ठिठुरा, कुम्हला हाथ ना देखा,
तुमको मैंने कितना देखा,
पर तुमने इक बार ना देखा।

Monday 21 January 2019

अबकी उसको माफ़ ना करना......

वो फिर आएगा,
रोएगा, मिमियाएगा,
सौ बार दुहाई देगा,
हर नाम खुदा का लेगा ।

बिछड़े प्यार के परदे मे,
Sympathy ढूँढेगा,
दर्द तुम्हारा नहीं गुनेगा,
तुमने blame कर देगा।

उसके बिखेर टुकड़ों मे
तुम Fevicol ना बनना ।

अबकी उसको माफ़ ना करना......

गांधी के क़िस्से गाएगा,
कविता कोई सुनाएगा,
गुजरी माँ की बात तुम्हारी,
बार बार दुहराएगा ।

पीर कोई भारत का बनकर
सत्य-सत्य चिल्लाएगा,
डरकर शांत का ढोंग करेगा,
'अहिंसा' धर्म बताएगा ।

उसके बहकाने में आकर,
'भारत की जय' मत कहना ।

अबकी उसको माफ़ ना करना......

तारीफ़ करेगा बार-बार,
हर बात, ठहाके मार-मार,
तुम ऐसी पहले ना थी,
यही दिखाएगा, बेकार ।

और तुम्हारी हर हरकत पर
कविता कोई लिखेगा,
निजी जिरह की छुपी-सी बात
Blog पे सनाम कह देगा,

उसकी कविता में तरस देख,
तुम दिल को साफ़ ना करना ।

अबकी उसको माफ़ ना करना......

माँ

चाय-पराठे की मिठास मे
नमक की चुटकी जैसी माँ,

याद आती है दरी-कटोरी
बड़की-रोटी जैसी माँ ।।

भूखे पेट ही ऑफ़िस जाते
टूक्की-रोटी जैसी माँ,

आँटे की छोटी लोई से,
राजा मुझे बनाती माँ ।।

हमें नहलाने एक भगोना
तड़के पानी गरम किए,
ठंडे पानी, भीगे बैठी
पत्थर खुज्जे जैसी माँ ।

गरम दुपहरी जाग-जाग कर
और थकावट बढ़ा लिया,
लू और प्यास को सबक़ सिखाती
ठंडी गगरी जैसी माँ ।

कपड़े छोटे,थोड़े खाने
सबको बाँट खपा देती,
अंदर जूने बसन समेटे
सिलती कथरी जैसी माँ ।

दिन की धूल, शाम की सुस्ती,
शरबत देकर मिटा दिया,
रात अन्धेरे, रगड़ गाल पर
कडुआ-तेल के जैसी माँ ।

मेरी कविता मे बसी हुयी,
राम-भजन के जैसी माँ ।

राधा

मुरली सुनकर, छत पर छुपकर
धीरे से चढ़ जाती वो,

मम्मी की पुकार सुनकर,
धीमी आवाज लगाती वो,

मन मसोसकर, phone काटकर
मन ही मन पछताती वो,

बात में गुम हो, दूध खौलता
छोड़ के आती वो,

मम्मी की डाँट का हुबहू,
नक़ल बनाती वो,

राम नाम का ध्यान धरे,
सीता-सी अघाती वो,

स्कूल से आकर अंतर मन से,
मुझे बुलाती वो,

बातें करती, सपने बुनती,
ख़ुश हो जाती वो,

तिनकों के घरौंदो से चुन-चुन कर,
मुझे भुलाती वो,

उधौ की बात को सच मानकर,
कृष्ण मिटाती वो।

Friday 11 January 2019

सोन चिरईया

चीं चीं करती सोन चिरईया,
मेरी प्यारी सोन चिरईया,
हर दम गाती सोन चिरईया ।

बड़ा बहेलिया जंगल आया,
उसने अपना जाल बिछाया,
थोड़ा सा तुमको धमकाया,
आँख दिखाया, रौब जताया ।

तुम्हारे गाने को fake बताया,
और मंशा पर प्रश्न उठाया,
कई जतन कर तुम्हे घुमाया,
कातर करके तुम्हे भगाया,

फिर भी उसका दाना खाकर,
तुम फुर्र-फुर्र उड़ जाती हो,

सोन चिरईया,सोन चिरईया
तुम हँस कर बात उड़ाती हो।

चीं चीं ऽ ऽ ऽ करके गाती हो।

बड़ा-सा जब stage सजाया,
गाने को तुमको बुलवाया,
और भीड़ की जंगल को,
न्यौता देकर भी कहलाया।

पर तुम तो दिन भर सोयी थी,
देर रात तक अलसायी थी,
Performance के लिए तुम्हारी,
तैयारी ना हो पायी थी,

सुबह हुआ जब मंज़र आया,
नहीं तुम्हारा मन घबराया,
इक बंदर का मस्त-कलंदर,
तुमने सबको नाच दिखाया,

पीछे की कुर्सी पर बैठी,
कैसा रास रचाती हो ।

सोन चिरईया,सोन चिरईया,
तुम सबके मन को भाती हो।

सोन चिरईया,सोन चिरईया,
मैंने नहीं समझा था अबतक,

तुम झुर्मठ से इठलाती हो,
छुपकर तुम गाना गाती हो,
सबका मन तुम बहलाती हो,
मुझसे ही बस शर्माती हो।

क्यूँ तुमने मुझको भरमाया,
अपना गाना नहीं सुनाया,
क्यूँ अपनी किस्सों का तुमने,
मुझको हिस्सा नहीं बनाया ?

यही सोचकर ग़ुस्सा था मै,
पर ग़ुस्सा भी टिक ना पाया,
अपने अंत:चक्षु खोलकर,
मैंने तुमको अपना पाया।

सबको धर्म का बोध कराके,
तुम 'शृजाम्यहम्' दर्शाती हो,

सोन चिरईया,सोन चिरईया,
मेरी कविता में घुल जाती हो।।
सोन चिरईया,सोन चिरईया,
सबसे प्यारा तुम गाती हो।।

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...