चीं चीं करती सोन चिरईया,
मेरी प्यारी सोन चिरईया,
हर दम गाती सोन चिरईया ।
बड़ा बहेलिया जंगल आया,
उसने अपना जाल बिछाया,
थोड़ा सा तुमको धमकाया,
आँख दिखाया, रौब जताया ।
तुम्हारे गाने को fake बताया,
और मंशा पर प्रश्न उठाया,
कई जतन कर तुम्हे घुमाया,
कातर करके तुम्हे भगाया,
फिर भी उसका दाना खाकर,
तुम फुर्र-फुर्र उड़ जाती हो,
सोन चिरईया,सोन चिरईया
तुम हँस कर बात उड़ाती हो।
चीं चीं ऽ ऽ ऽ करके गाती हो।
बड़ा-सा जब stage सजाया,
गाने को तुमको बुलवाया,
और भीड़ की जंगल को,
न्यौता देकर भी कहलाया।
पर तुम तो दिन भर सोयी थी,
देर रात तक अलसायी थी,
Performance के लिए तुम्हारी,
तैयारी ना हो पायी थी,
सुबह हुआ जब मंज़र आया,
नहीं तुम्हारा मन घबराया,
इक बंदर का मस्त-कलंदर,
तुमने सबको नाच दिखाया,
पीछे की कुर्सी पर बैठी,
कैसा रास रचाती हो ।
सोन चिरईया,सोन चिरईया,
तुम सबके मन को भाती हो।
सोन चिरईया,सोन चिरईया,
मैंने नहीं समझा था अबतक,
तुम झुर्मठ से इठलाती हो,
छुपकर तुम गाना गाती हो,
सबका मन तुम बहलाती हो,
मुझसे ही बस शर्माती हो।
क्यूँ तुमने मुझको भरमाया,
अपना गाना नहीं सुनाया,
क्यूँ अपनी किस्सों का तुमने,
मुझको हिस्सा नहीं बनाया ?
यही सोचकर ग़ुस्सा था मै,
पर ग़ुस्सा भी टिक ना पाया,
अपने अंत:चक्षु खोलकर,
मैंने तुमको अपना पाया।
सबको धर्म का बोध कराके,
तुम 'शृजाम्यहम्' दर्शाती हो,
सोन चिरईया,सोन चिरईया,
मेरी कविता में घुल जाती हो।।
सोन चिरईया,सोन चिरईया,
सबसे प्यारा तुम गाती हो।।