Monday 31 October 2022

किसके लिए

कर तो रहा हूं
करूंगा भी आगे,
किसका नाम लूं
और किसके लिए करूं,

किसको कहूं की
वो मुझे 
राह दिखाकर चली गई,
किसका हाथ 
पकड़कर बोलूं
यह मुझे साथ ले चली रही,

किसको गंगा मां की आरती
आज चढ़ा नाम लेकर,
किसको नाम लगाकर कूड़ा
फेंकूं आज उठा–उठाकर,
कौन है जिसके लिए ही मै
संसार छोड़ दूं एक पल मे,
किसकी आस लगाकर मै
लड़ जाऊं इस दुनिया से,

उसके लिए छोड़ दूं
और उसे हर जगह देखूं
या देख लूं सबमे उसको
तो करती है जो वो मै वही करूं!

Monday 24 October 2022

दिवाली

दिवाली दिए जलाने के
बधाई रब की देते हैं,
बधाई राम की सबको
घर आने कि देते हैं,

वो लगाकर फोटो
अपने चश्मे–ए –नूर का,
हमे पैगाम भेजे हैं
उत्सव के सुरूर का,

अपने व्हाट्सएप से आज
दिया जलता दिखाते हैं,
बधाई मुझको देते हैं
मेरे दिल को जलाते हैं!

Wednesday 19 October 2022

नई सुबह

नई सुबह
मेरे लिए
नए तरीके
ले आई,
छूट गए
कुछ रोग मेरे
ये नए सलीके
ले आई,
उम्मीद नई
संकल्प नया
ये नए वजीफे
ले आई,
कुछ साल 
बीच मे खत्म हुए
कुछ भ्रम जीवन के
निपट गए,
जब नींद खुली तो
पाया मैने 
2 ही घंटे सोया था,
कुछ देख रहा था
जिसे अधूरा रख के
मैने खोया था,
अब उठा 
बहुत ही उजला सा
मै पहले वाले पगला सा
ये नई सुबह मेरे दरवाजे
मेरी किस्मत
ले आई!

आग

एक आग
लगाकर आग एक
तुम चली गई,
बुझाकर प्यास
तुम अपनी,
मुझे बेबस बनाकर
तुम चली गई,
मुझे हथेली पर
दिखाया चांद
चमचमचम,
मेरी चांदनी 
को चुराकर
तुम चली गई,

मै जा रहा था
करने कुछ,
हो गया था
कुछ का कुछ,
पर राह मे
वापस घुमाकर
तुम चली गई,

तुम अपनी
सीमा लांघकर,
और निस्तेज
मुझको बोलकर,
आवारगी की
राह पर
कुछ एक कदम
बढ़ाकर मेरा
तुम चली गई,
बदली मेरे ज्ञान का
सिरे से हटाकर
तुम चली गई!

Saturday 8 October 2022

काबिल

क्या इस काबिल हो तुम
की मांग सको खुलकर
और ले सको दहेज
और ले सको कार,
आंखों मे देखकर
लगाओ खुद का दाम?

क्या इतना पढ़े–लिखे हो
की जानो खुद की value,
क्या इतना मंजे हुए हो 
की कर सको फजीहत
औरों की ले कमाई 
खुद की कब्र सजा सको?

कुछ काम और

थोड़ा ये भी
और थोड़ा वो भी
तुम कर लो
और सीख लो कुछ
और थोड़ा कर लो,
तुम बढ़ा लो दायरे
अपने काम के तरीके
और कुछ सजाओ,
तुम काम के तरीके
कुछ और ही लगाओ,
इतने दाम ही मे
कुछ देर और बैठो,
कुछ और बात कर लो,
कुछ और गुनगुनाओ!

हाथ का खाना

हाथ का खाना तुम्हारे
मै नहीं खाऊंगा,
मै भूख से बिलखकर
कुछ और लड़खड़ाऊंगा,

मै दही मे मिसरी
घोल के पिऊंगा,
मै ब्रेड मे दबाकर
ऑमलेट चबाऊंगा,
मै चाय भर ही पीकर
काम चलाऊंगा,

मै हूं नहीं कमाता
मै हूं नहीं कुछ करता,
मै आप की कमाई
अपने से ही जुटाऊँगा,

मै सो रहा हूं जमकर
मै रात भर हूं जगता
करता बहुत पढ़ाई
पर कुछ नहीं निकलता,
मै अपनी किस्मत फिर भी
कई बार आजमाऊंगा,

तुम साथ मेरे थी जबतक
तब तक तो मुस्कुराया,
तुम फोन करती मुझको
मै खूब ही इतराया,
उस बात की की कहानी
मै याद मे सजाऊंगा!

मेरी आवाज़

तुम घुल जाते हो
कुछ बचता ही कहां है?
कहां है तुम्हारी गाथा
कहां है तुम्हारी बातें,
कहां है तुम्हारी फितरत
कहां है तुम्हारी इज्जत? 
तुम हर किसी से मिलकर
कुछ और ही बने हो 
क्या है तुम्हारी उल्फत
क्या है तुम्हारी चाहत?
तुम किस लिए बने हो
क्या है तुम्हारा मकसद?
क्या हैं तुम्हारे राम
क्यूं राम से हो सहमत?

एक और बार

इस बार कुछ था बेहतर
अब और कुछ भी होगा,
मै कलम अगर पकड़ लूं
तो सबको फक्र होगा,
मै और कुछ जुटाकर
अब और कुछ करूंगा,
लिखता था तुमको चिट्ठी
अब और कुछ लिखूंगा,
इस बार मै अलग सा
कुछ तो अलग करूंगा!

जुड़ना

फिर से जुड़ गए
पुराने मेरे रिश्ते,
जुड़ गई टूटी हुई
रिश्तों की डोर,
देखने लगे हम
फिर से एक ही ओर,
हम साथ आ गए
घूमने के लिए,
और मना ली
फिर नौ रातें
नई–सुबह की तरह,
फिर राम के विजय की
शक्ति अराधना की,
फिर खाके हम पपीते
फांकों की श्रृंखला की,
हम फिर से जुड़ गए हैं
जब राहें नई पकड़ ली!

हंसी

ये सारे लोग 
हंसते नहीं हैं,
ये देखते हैं
आने वालों को
शक की नजर से
और बोलते हैं
हंसने वालों को
तीखी जुबान से,
इनका मजाक
उड़ जाता है
हंसी करने पर
इनको कोई
छल जाता है,
कुछ भी करने पर,
ये चिंता करते हैं
मेरी–तुम्हारी और
हर हंसने वालों की,
घूमने वालों की और
मजा करने वालों की,
घर बैठना और 
सुरक्षित रहना
इनका शौक है,
ये खुश हैं
दुःखी रहकर,
और वक्त नहीं 
गंवाते हंसकर
खिलखिलाकर!

Monday 3 October 2022

तारे

टिम–टिम करते
रातभर
सुबह सुबह अब
सारे चले गए,
आसमान की
चादर मे लिपटे
सितारे चले गए,
तारामंडल की लकीरें
ग्रहों की चमक,
क्षितिज के किनारे
अंधेरों की रौनक भी
सारे चले गए,
सुबह–सुबह आसमान 
की चमक मे
सितारे चले गए!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...