Saturday 16 March 2019

मंदबुद्धि

     कला चित्रण: श्वेता


फूँक कर बिखरा दिया,
उसने इंद्रधनुष ।
खुद के अंधेरों से निकाला 
उसने नवल रंग रूप ।
एक साथ पर कहा 
पति, बेटे और भाई ने,
'खराब कईलेस कागज ई !
एके कब अक्ल आई रे ?'

वह ठहर गई यह सुनकर
"क्या समझ गई तुम कुछ भर ?"

पूछा उसने,
क्या मंदबुद्धि है मेरी ?
होती क्यूँ उलाहना मेरी ?

सोचते क्यूँ हो
मुझसे हल न होंगे प्रश्न !
मैं निराकार ही हूं,
मेरा नहीं कोई भविष्य !
नहीं मेरी अंग्रेजी,
नहीं मेरा संघर्ष ।
क्यों नहीं करते तुम्हे
विह्वव  मेरे उत्कर्ष ?

क्यूँ कही तुमने,
हर बात मेरी झूठ ?
खेलना मुझसे ना होगा,
Badminton भी 1 टूक !
क्यों लगा तुमको कि मैंं
करती नहीं हूं काज ?
क्यूँ तुम्हें रिटायरमेंट मेरी
अखरती है आज ?

क्यूँ नहीं देखा किसी ने
मेरा पसीना, बूंद ?
क्यूँ मेरा उज्जवला कनेक्शन 
आज तक था दूर ?
क्यूँ हँसे जब शादी मेरी
लगती नहीं हर रोज ?
तंज़ तुमने क्यूँ कसे,
'करमजली है, बोझ !' ?

क्यूँ कहा तुमने,
'छोड़ दे ! तोसे ना हो पाई !'
slow learner  कहकर
तुमने मेरी क्लास लगाई ।
क्यूँ नहीं तुम रख ही पाए
आवाज पर काबू ?
क्यूँ हर गलती पर तुमने
कारण बताया 'तूँँ' !

एक स्वर हो कर के दे दी
फिर हर बेटी ने आवाज़,

गर सुनाती मैं सभी को
और न रखती राज,
रो रहे थे तुम फफक्कर
जो सवेरे आज।

आंसुओं की कीमत का 
तब पड़ता तुम्हें अंदाज,
और मेरी मंदबुद्धि
पर तुम न करते ना नाज़ ।

Sunday 3 March 2019

Out of syllabus

बच्चों की-सी mimicry,
राजेश खन्ना की  आवाज़।
ice-cream की तीन प्लेटें,
और चौथे का  परवाज़।

रात जागी आँखें,
दोपहर की उबास।
class मे हो देरी,
सहमा आशावाद।

साइकिल मे कम हवा,
पर lift ना लूँँ आज।
सबसे तुम छुपाती,
मन की खुराफात।

Google search करती,
India's top 10 Don.
दुबई की छोड़ी नौकरी,
डिंगो के चार हाथ।

भूख से  बिलखती
होकर जमींदोज,
घर के सर जुटाती
पढ़ने के वक्त रोज़।

नजरें चुरा के crush से
लंबी सड़क धरे,
चश्मा ही भूल जाती
जब उनको दिल गहे।

करके मेरी शिकायत
कहती नहीं खबर,
उल्टा मुझे डरा कर
चोरी करे नजर।

पम्मी मुझे बुलाती,
होंंठों को बंद कर।
तुम ढूंढती ठहाके
बुर्के को तंज़ कर।

तेरी आवारगी के जितने,
शर हैंं, उतने ही भेद।
out of syllabus ही जीती पलभर,
उस पर भी करती खेद ।

सुन्दरता की चौखट

तुम्हारे चेहरे पर मुहाँसे न आए,
आँँखों के नीचे की छाई न भाए,
fair&lovely की परत ओढ़ लेना,
गालों पे लाली के रंग पोत लेना ।

होंठों के रंग पर चमक होनी चाहिए,
पीकर के पानी नहीं तुम डुबोना ।
कमर की गोलाई, न 24 को लांघे,
cleavage को अचकन से मत ढा़क लेना ।

सुन्दरता की चौखट मत लांघ देना ।।

 फोन पर जोर से, ठहाके ना आएँँ,
देखो ना कोई तुमको, picture दिखाए ।
गाने कोई दिल के मत गुनगुनाना,
लोग डायन कहेंगे, उन्हें मत उकसाना ।

कविता और बातों  मे, मोहब्बत ना आए,
बेचैनी बस तुम को मन में डराए ।
उनको जमाने से शब्दों  मे कहकर,
राखी की कीमत को मत आंक लेना ।

सुन्दरता की चौखट मत लांघ देना ।।

अपने घरों की इज्जत बचाना,
कोई हिंसा करे तो मत चिल्लाना ।
उनके ही जैसे हैं, औरों के घर भी,
यह हकीकत नहीं है, यही दोहराना ।

जमाना है केवल background noise,
उसको बदलना नहीं काम wise,
ना हो सोच और शौच, घर की दहलीज मे तो
खुलकर जमाने में मत पाद देना ।

सुन्दरता की चौखट मत लांघ देना ।।

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...