नौमी दिवस है,
शुक्लपक्ष पावन
अप्रैल का महीना
न धूप न सावन,
खुला साफ़ अंबर
चँहकता सा उपवन
नहीं जान पड़ता
सुबह, शाम, दुपहर,
नीम के पेड़ की
घनी छांव तपकर
गन्ने के रस से
पिरो कर निकल कर,
बनी थी पिघल कर
और फिर जमकर
मीठे गुड़ की बेटी
बनारस की मिशरी ।
चमक जैसे दर्पण
खनक जैसे बर्तन
जॉनी जॉनी के मुंह में
दुलार करती प्रतिक्षण,
मां के किचन की
छोटा-सा फाँका
पापा के चाय की
चम्मच भर की थिरकन,
दादा जी की चोरी
दादी जी की उलझन
मधुर-सी मधुमेह
बनारस की मिशरी ।
सफेद बर्फ-सी
रुई नरम-सी
बेदाग, चौकोर,
चांदी की परत भी,
फटा दुध अव्वल
दही ना खटाई,
बरेली का खोवा
बनारस की मिशरी,
बड़े घर की बिंदी
बरेली की बर्फी ।
शिवालिक का आंगन
गंगा का उद्गम
रोहिलखंड में शिव के
सीने की धड़कन,
दशरथ की संजीवनी
कौशल्या का मरहम
लक्ष्मण की सीता
उर्मिल की अर्पण,
नए घर की तुलसी,
बरेली की बर्फी ।
शुक्लपक्ष पावन
अप्रैल का महीना
न धूप न सावन,
खुला साफ़ अंबर
चँहकता सा उपवन
नहीं जान पड़ता
सुबह, शाम, दुपहर,
नीम के पेड़ की
घनी छांव तपकर
गन्ने के रस से
पिरो कर निकल कर,
बनी थी पिघल कर
और फिर जमकर
मीठे गुड़ की बेटी
बनारस की मिशरी ।
चमक जैसे दर्पण
खनक जैसे बर्तन
जॉनी जॉनी के मुंह में
दुलार करती प्रतिक्षण,
मां के किचन की
छोटा-सा फाँका
पापा के चाय की
चम्मच भर की थिरकन,
दादा जी की चोरी
दादी जी की उलझन
मधुर-सी मधुमेह
बनारस की मिशरी ।
सफेद बर्फ-सी
रुई नरम-सी
बेदाग, चौकोर,
चांदी की परत भी,
फटा दुध अव्वल
दही ना खटाई,
बरेली का खोवा
बनारस की मिशरी,
बड़े घर की बिंदी
बरेली की बर्फी ।
शिवालिक का आंगन
गंगा का उद्गम
रोहिलखंड में शिव के
सीने की धड़कन,
दशरथ की संजीवनी
कौशल्या का मरहम
लक्ष्मण की सीता
उर्मिल की अर्पण,
नए घर की तुलसी,
बरेली की बर्फी ।