Wednesday 31 January 2024

कितना

कितना गाना है
एक साँस में,
कितना सोना है 
एक रात में,
कितना लिखना है 
एक कलम से,
कितना सोचना है 
एक नियत से,

कितना चलना है
की नींद अच्छी आए,
कितना बोलना है की 
बात बन जाए,
कितने का है हिसाब 
की भूख मिट जाएं?
कितने रखें हिजाब 
की पाक रह जाएं?

कितना सँवरना है
की उनका 
दिल नहीं भर जाए,
कितना पिघलना है
की उनका 
पारा न चढ़ जाए!

कितना बड़ा हो ख्वाब 
की जिसमें 
आसमान हो बंद,
कितना रहे ईमान 
जिसमे राम हो हरदम!

Tuesday 30 January 2024

वासना कहाँ है?

कहाँ टिकी हुई है 
किसे जरिया बनाया है,
ये धुआं जो उठ रहा है 
आग कहाँ लगाया है,

होठों पर तिलिस्म है 
या कपड़ों से रिस रही है,
बातों से बांधती है 
या पर्चों मे छपी है,

अख़बार खोलते है क्या 
पर्दों की हकीक़त,
टीवी पर आ रहे है 
नुमाइश के नसीहत,

बाज़ार में घूमती है 
बेवजह क्या वो,
बागों मे खेलती है 
सखियों के साथ जो,

शरीर के किस अंग के 
उभार मे दबी है,
ये वासना किस द्वार पर 
खिड़की पर टंगी है?

नाम न लो

इश्क करता हूँ 
इबादत तो नहीं,
इरादे जान जाओगे
ख़ुदावत तो नहीं,
नाम लेता नहीं हूँ मैं 
निगाहें बोल देती हैं,
तुम्हारी राह तकती हैं 
शिकायत तो नहीं,

कुछ कह दिया तो 
अब तलक नाराज बैठे हो,
विनोद ही किया है 
मोहब्बत तो नहीं,
आयी ये उल्फत है 
कि सुकूं ही नहीं,
सिज़दा मे होने को है
शहादत तो नहीं,

उसकी आरज़ू की है
जो औरों के हैं नसीब,
है बात छोटी-सी 
हिकायत तो नहीं,
अफ़सानों मे पिरोते हैं
तुम्हारे नाम के मोती,
दरकार है तमन्ना की
हिमाकत तो नहीं,

इन्तेज़ार करता हूँ 
बगावत तो नहीं,
मधुशाला में कह रहे हो
खामोश रहने को 
इशारा ही तो किया है 
शराफत तो नहीं,
ये धुएँ की बदलियाँ
तुम्हारे लफ्ज़ है बाखूब
इन्हें पढ़ता ही तो हूँ 
झूठलाया तो नहीं,

कुछ किरणें काफ़ी हैं 
मेरी शब की रौशनी को,
चाँदनी ही तो माँगी है 
आसमाँ तो नहीं,
और हमको ही कर 
रहे हो याद हर बखत,
बदनाम करके जीतने की 
है बड़ी कुव्वत,
अपील ही तो की है 
मुकदमा तो नहीं!

Monday 22 January 2024

एक किरण

बिखर कर मेरे शब्दों से 
इन्द्रधनुष हो गई है,
7 रंग में विकीर्ण 
निष्ठुर- निह: अंकुश हो गई है,
बम गिरा रही है 
George Bush हो गई है,
भाव छोड़कर अहम मे 
पुरुष हो गई है,
पहुँच से है दूर 
महापुरुष हो गई है,

लाल रंग तमतमाइ
केसरी फन उठाई,
पीत धारण किया है 
सुदर्शन सहित,
आँख की पुतलियों मे
प्रदर्शी हरित,
बिश- बुझी नील जिह्वा 
हुई काल का प्रतीक,
रक्त-सिंचित ग्रीवा 
खट-लसित जामुनी 
तीव्र-आवृत्त तपित
कांत से बैंगनी,

निर्झर सी रसित
वो तपिश हो गई है,
व्योम-कपाल पर 
तनी भृकुटी सी 
वो खिचित हो गई है,
ब्रह्मांड का केंद्र बन कर 
स्वयं उचित हो गई है,
एक छोटी-सी किरण 
इन्द्रधनुष हो गई है!








Sunday 21 January 2024

इन्द्रधनुष

मेरी कविता में 
तुम मुझसे 
हर बात करती हो,
तुम गुस्सा हुआ करती 
अभिमान करती हो,
तुम चिल्ला लेती हो 
और मान जाती हो,

मुझसे बहस करती हो 
और जीत जाती हो,
तुम भूल जाती हो 
संग मेरे गीत गाती हो,
तुम समझ से अपने 
मुझे क्या-क्या सिखाती हो,
पीती हो थोड़ा कम 
और उलट जाती हो,

कहता नहीं तुमसे 
तुम समझ जाती हो,
तुम देखकर मुझको भी 
थोड़ा पलट जाती हो,
जो चाहिए तुमको 
आकर माँग लेती हो,
मेरे हँसी करके 
खुशी को बांट देती हो,

कभी-कभी तेवर मे
जब तुम तिलमिलाती हो,
कुछ सुनाती हो 
कुछ घोंट जाती हो,
कैसे तुम्हारे रंग
मेरे शब्द बूँदों पर,
किरण से उठकर 
इन्द्रधनुष हो जाती हो!

माया

इसकी बात और उसकी 
उसके मुख से सबकी,
उसके लिए एक शब्द 
मेरा पूरा जीवन 
उसका अपना अनुभव
मेरी अपनी मर्यादा,
उसकी आज की छुट्टी 
मेरे 14 वर्ष,
उसकी प्यार की हद 
मेरी आखिरी जिज्ञासा,
उसके समय की दौड़ 
मेरी पल भर अभिलाषा,
उसका टूटा फोन 
मेरी छोटी जेब,
उसके भूख का गुस्सा 
मेरा लंबा उपवास,
उसकी गूंजती हँसी 
मेरा विकीर्ण अट्टहास,
हम दोनों के राम 
हम दोनों की माया!

काज

बात क्या करूँ 
तुम्हारी बात सुन लूँ,

काम क्या करूँ 
तुम्हें याद कर लूं,

नाम क्या लूँ 
तुम्हें पुकार लूँ,

गीत क्या सुनूँ 
तुम्हारी आवाज सुन लूँ,

नमन क्या करूँ 
सिया राम कह दूँ!


रेशे

कौन-सा रेशा 
यह मन उठा लेगा आज,
किस ज़ख्म को 
ताज़ा करेगा 
कौन से ज़ज्बात,

किन पहलुओं को 
आज वो बढ़कर सजायेगा,
कौन से नाते बनाकर 
किसको मिलाएगा,

कौन-सा है रंग जो 
खिल रहा है,
किस फूल पर 
बैठा ये तितलियों से
मिल रहा है,

कौन- सा चरखा 
कौन- सी पूनी 
लगाएगा,
आज ये मन 
कौन सा खादी बनाएगा?

Monday 15 January 2024

सेतु

सेतु पर खड़ा 
देखता हूँ नदी 
निर्झर,
खग-मृग
शहर-बियाबान,
बहार, बगान 
बागबां,

वो आने वाला मंजिल 
वो बीता हुआ रास्ता,
नीचे मिलों तक चली 
और फिर आगे चलती नदी,

दोनों पर समदृष्टि 
दोनों से समान दूरी,
दोनों की आशंका 
दोनों मे दिलचस्पी,

हाथ पकड़ते फूल 
पैर खींचते कर्म,
रस- निरस की व्याकुलता 
और किम-कर्त्तव्य सधर्म?

यहाँ के राम 
वहाँ के राम,
यह जीवन का सेतु 
मोह-मर्म, अज्ञान!


धन्यवाद

धन्यवाद आज आने के लिए 
जीवन मे सौगात लाने के लिए,
इस दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए 
मानव सभ्यता को जगाने के लिए,

ना होती तुम तो 
दिल की आशिकी न होती 
मेरे ख्वाबों की मे रोशनी न होती 
ये मुस्कान न होती
ये अल्फाज़ न होते,
कोई जुनून की हद 
मालूम न होती,
हर पहलू की शरहद
मापी न होती,
हमें यकीं खुद पर होगा 
ये यकीं कहाँ था,
तुमने अगर ये दामन 
थामी न होती?
धन्यवाद इस तरह मुझे 
मनाने के लिए!

कॉलेज मे चलती 
साथ पैदल हमारे,
चिलम मे भरते 
नर्म रेशों के धागे,
लेक-साइड मे बैठे
दी चिंगारी हल्की-फुल्की,
अँधेरों मे चमकी 
हँसी-खिलखिलाई,
फ़िल्मों मे पर्दा
चिल्ला के जलाया,
तुमने सृजन कर 
हर दिशा को हँसाया,
शुक्रिया ओस की बूँद 
बन जाने के लिए,

गलियारों मे तुमने 
की गलबहियाँ,
बिगड़ने की नौबत तक 
जोड़ ली हमने कड़ियां,
मुरव्वत रखी ही नहीं 
जब मिली तुम,
संग फोटो मे कैद 
कर ली हमने सदियाँ,
कहे उसके किस्से 
और उसके तराने,
टांग खींचे सभी के 
लगे जो निशाने,
शुक्रिया रंगमंच ये 
सजाने के लिए!

गालों की लाली 
आंखों की हसरत,
जुबां की खनक
इशारों की उल्फत,
किस्सागोई मे बीती 
सितारों की रातें,
तारीफों की चाशनी मे
घुली-सी कोई शर्बत,
शिफाॅन मे लाल 
महलों की रानी,
अधूरे लिबासों मे
पूरी कहानी,
अप्सरा बन ज़मी को खिलाने के लिए 
शुक्रिया हर महफ़िल सजाने के लिए!




Tuesday 9 January 2024

उजाला

तुमने अभी तक ये 
जलवा हमारा नहीं देखा,
जिससे फ़ेर लिया मुँह 
उसे दोबारा नहीं देखा,

और चाहतें मैंने बड़ी 
सिद्दत से निभाई हैं,
पर मुझको किसी दोस्त ने 
नाकारा नहीं देखा,

मैं भूल भी जाऊँ 
तुम्हारे भूल जाने को,
पर याद से बढ़कर 
कोई सहारा नहीं देखा,

ग़म करूँ की नहीं 
इस दिल की नादानी का,
पर डुबने का सस्ता कोई 
पैमाना नहीं देखा,

वक्त लगता है बहुत 
यूँ डुबने मे भी,
मैंने जानकर कोई अभी 
किनारा नहीं देखा,

और शाम होने तक 
कोई मंजिल नहीं मिलती,
बनावट की किरणों से 
फकत उजालों नहीं मिलता!



मुराद

आज अगर 
मंदिर गया तो,
होंगी वही पुरानी बातें 

कुछ मांग की अर्जी 
कुछ चढ़ावे की किस्त,
कुछ संकल्पों के वादे 
कुछ ख्वाहिशों की फेहरिस्त,

कुछ आँसू लेकर जाऊँगा 
जरा हाथ जोड़कर कर बैठूंगा,
और किसी की झोली मे
मैं कनखियों से झाँकूंगा,
मै अपने और उनके बीच के 
फ़ासले कैसे पाटुंगा?

था

मैं भी 
चलता था पैदल 
मैं दौड़ लगाता था,
मै रोज सवेरे उठता था 
ताज़ी हवा नहाता था,
मै साइकिल एक खरीदा था 
मै चला के ऑफिस जाता था,

मैं चालीसा पढ़ता था 
मैं नमन सूर्य को करता था,
मैं हाथ जोड़कर मिलता था 
मैं खुद-ब-खुद मुस्काता था,
मै अपने सीट से उठकर जाता 
सबका स्वागत करता था,

मेरे भी भीतर सपने थे 
मै उनसे नजर मिलाता था,
मैं पर्वत पर चढ़ जाता 
मैं नदियों मे बहुत उतर जाता,
मैं चिडियों की किलकारी 
सुनकर मग्न हो जाता था,

मै अभी हूँ तो सही 
पर मैं था भी!

सच

उसको बता दूँ 
उसका सच,
मैं कहाँ जानता 
खुद का सच,
अपने कर्म का भारीपन 
मैं उड़ेल दूँ 
उसके ऊपर,

कह दूँ उसे 
जो जानती है,
जिससे छुपकर 
मुस्काती है,
कुछ पल उसकी 
मुस्कान मिटा,
मैं कालिख पोत लूँ 
जीवन पर,

कुछ कहूँ की 
वो चिंघाड़ उठे,
या मौन ही हो 
जल राख बुझे,
उसका देकर 
आदर्श उसे,
मैं चढ़ बैठूं 
सीने पर !

Wednesday 3 January 2024

वापस

मैं वापस आऊंगा 
मोह की देहलीज छूकर 
राम के दरबार में,
राम के मुंडेर पर 
जहां से दिखे जहान 
कुछ दूर होकर,
काम के अकाज मे,
राम के आलेख पर,
राम हैं पूर्ण 
राम ही संपूर्ण,
अंत से करें शुरू
राम ही मंजिल 
राम ही गुरु,
राम से ही मांगता 
राम का स्वरूप 
राम का हाथ 
राम का ही रूप!

वापस वहीँ जहां 
शरीर भी साथ घूमे,
हवा न डराया करे,
जहां बाँसुरी पर 
उँगलियाँ और फुंक
एक ताल में हों,
जहां हाथ धरना न पड़े,
साथ चलना न पड़े,
करना भी ना हो इन्तेज़ार,
देने की हो खुशी 
लेने की नहीं दरकार,
वह राम का दरबार,
वापस वही सरकार
राम को आभार!

Tuesday 2 January 2024

ख्वाहिश

तुम्हारा है या नशा है 
तुम्हारे ना होने का?
कशिश है तुमसे मिलने की 
या देखने भर की,
तलब है तुमको सुनने की 
या बहस करने की?
रंजिश है तुम्हारी जिद से 
या जिद्दीपन से,
जुस्तजू है तुमको जानने की 
या जायज बनाने की,
ख्वाहिश है तुम्हारी या 
तुम्हारे कुछ और होने की?

अगला साल

अगला साल आएगा 
और फिर अगला साल,
जो नहीं किया अब तक 
वो एक और साल तक 
बचा रहेगा,

बचा रहेगा सब कुछ 
जैसे अब तक था,
और डर का सैलाब 
थमा रहेगा 
अनजाने खतरे से,
उस अनहोनी से 
जो दाग देने वाली है,
जो बेदाग को 
छूकर कर देगी गंदा,

धीरे-धीरे बीतेगा अगला दिन 
फिर अगला महीना 
और फिर अगला साल!

Monday 1 January 2024

सही

मैं सही कर लूंगा 
जो गडबड़ी है,
उस परिस्थिति को 
उस समस्या को 
उस परेशानी को 
सुलझा लूँगा,
उसको भी मना लूँगा,

उससे बात करूंगा 
उससे हाल कहूँगा 
उसको देकर एक मिठाई 
उसको कहकर कोई किस्सा 
मैं उसको फुसला लूँगा,

अब तक 
खुद के मन को,
दिए हैं कई बहाने 
आगे भी और बहाने देकर 
उलझा लूँगा,
मैं सही को सही मे सुलझा लूँगा!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...