Tuesday 9 April 2024

नवरात्र

भावनाओं की कलश 
हँसी की श्रोत,
अहम को घोल लेती 
तुम शीतल जल,

तुम रंगहीन निष्पाप 
मेरी घुला विचार,
मेरे सपनों के चित्रपट 
तुमसे बनते नीलकंठ,

अलग करती अनुराग 
जो सर्व-सुलभ अनुराग,
तुम्हारी बातों की शुरुआत 
मेरे लिए ही राम!

Saturday 6 April 2024

चाँद

बदला बादल 
रंग और स्वरूप,
नव-दर्पण
नया सहर,
नया तेवर 
नया कलेवर,
नवरात्र का इन्द्रधनुष 
समर्पण का भाव,
पुराने आँसू 
नयी मुस्कान,
ईद-सी ख़ुशी 
पूर्णिमा का चांद!

पाना

थोड़ा महत्व
थोड़ा समय,
थोड़ी बुद्धि 
थोड़ी वृद्धि,
थोड़ा ज्ञान
थोड़ा मान,
एक कुर्सी 
एक मेज,
एक कलम 
एक काग़ज़,
एक पहिया 
एक अर्दली,
एक रास्ता 
एक साथी,
मुट्ठी भर सन्तुष्टि!

Thursday 4 April 2024

दृश्यता

पहले एक दृश्य
फिर एक छोटा शब्द,
फिर इतिहास की बात 
फिर विचारों का मौन,
फिर सब विराम 
एकांत और लिप्सा,
और एक गलती,
और एक बंधन!

Tuesday 2 April 2024

क्या चाहिए आपको?

एक पोटली में भर कर 
कोई खुशियाँ आपकी दे दे,
मैं हर सुबह आपके 
दरवाज़े पर रख आऊँ,
कोई आपकी उल्लास मुझे 
गुब्बारों में भर के दे दे,
मैं हर असमान मे
अपने हाथों से उड़ाऊ,
कोई एक चम्मच आपका 
ज्ञान मुझे पहुँचा दे,
मैं हर रात अपनी 
आँखों में लगा सोऊं,
कोई आपकी गरिमा
एक मुकुट में जड़ के दे दे,
मै भारत माँ के सर पर
शान से सजाऊं,
कोई दे दे आपका मुझको
उन्मुक्त-सा व्यवहार,
मैं हर नदी-तालाब मे
थोड़ा-सा घोल आऊं,
कोई आपकी सरलता
मेरी हथेली मे थोड़ी रख दे,
मै गंगा माँ के हर घाट पर
आँचल जैसा बिछाऊं,
कोई जुगाड़ से चुरा ले
आप जैसा तेज,
मैं हर किरण में नभ की
मालिश कर चमकाऊं,
मैं क्या कहूं खुदा से की
कोई आप जैसा फिर से लाऊं?

Sunday 24 March 2024

संगम

कुछ उन्होंने मान ली 
कुछ मैंने बातें कही नहीं,
कुछ मेरी नर्म जुबां थी 
कुछ उनकी मंद मुस्कान थी,

कुछ उनके घर का आँगन था 
कुछ मेरी द्वार पर पूजा थी,
कुछ मेरे खुदा मुनासिब थे 
कुछ उनके घर की दिवाली थी,

कुछ कदम चले थे वो घर से 
कुछ मैंने फूल बिछाये थे,
कुछ हाथ हमारे पकड़े वो 
कुछ हमने नज़रे झुका ली थी,

हम मत से भले अलग ही थे 
पर दोनों बहुत अनोखे थे,
कुछ उनके दिल की ख्वाहिशें थी 
कुछ मेरे मन के धोखे थे,

कुछ थोड़े गंगाजल वो थे 
कुछ हम भी जमुना के पानी,
संगम भी हुआ प्रयाग में 
जब मिलीं सरस्वती-सी ज्ञानी!

Friday 22 March 2024

चादर

बिछाकर चांदनी चांद की 
ओढ़कर सितारों का दुकूल,
लगाकर झरोखे की दीवारें 
उठाकर नज़र पर आसमान,

पसारा हाथ, खुली मुट्ठी 
खिली शांति की बेला,
हमारे साथ खेलती हैं 
मिचौली दुग्ध-मेखला,

घूमता है देखकर 
खिलौनों का बड़ा नक्षत्र,
उँगलियों मिला रही बिंदु 
तारों से भरा कैनवस,

मैं मुस्कुराता हूँ 
मिला बचपन का बिछड़ा यार,
मंदिर की पगडण्डी से
चलता साथ आया चांद,

खुली किताब-सी फैली
मुझसे कह रही ईक राग,
कविता कोई लिखती
मेरी आँखों मे काजल रात!

भय

मोह से जनित 
यह भय है तुम्हारा,
भय से द्रवित 
यह मैं है हमारा,

मैं से है प्रश्न और 
अधिकार की है ख्वाहिश,
ख्वाहिशों से खिंचा 
इन्तेज़ार है हमारा,

इन्तेज़ार से प्रभावित 
यह मौन हुआ व्रत,
व्रत-खण्डित हुआ मन 
तलबगार है तुम्हारा,

तलब की मिटी नहीं 
यह प्यास अनवरत है,
पर मोहिनी बना हूं 
फिर भी गुनाहगार हूं तुम्हारा!

मज़ाक

मज़ाक बना रहे हैं 
मज़ाक उड़ा रहे हैं,
आप मेरे गुमान का 
सामान बना रहे हैं,

यह कैसी है बात 
यह कैसा है संबाद,
जिसे भगवान कहते हैं 
उसे शैतान बता रहे हैं?

मजाक उड़ाने की नहीं 
हमारी है दरकार,
हम करते हैं विनोद 
आप हैं मेरे सर्कार,

हम कहाँ महफ़िलों में 
कोई नाम ले रहे हैं?
कहां आपको कुछ 
सरेआम कह रहे हैं?

हम तो बस आपकी 
एक मुस्कान चाहते हैं,
कुछ तरल हो माहौल 
एक विराम चाहते हैं,
आपके डूबते 
चश्मे- नूर के लिए,
एक सूरज नया 
नया आसमान चाहते हैं!



Saturday 16 March 2024

बच्चा

तुमने हाथ से उठाया 
मुँह से चबाया,
गले से निगल कर 
आज खाना खाया,
यह कैसा मुझे दिखाया 
तुमने बच्चों वाला रूप?

सफेद झूठ

मुस्कान को तुम्हारी 
बोल दिए कुछ झूठ,
रो न देना तुम 
हम रो बैठे झूठ-मूठ,

तुम भूल जाओ वो याद 
हमने बात बनाई कुछ,
तुम रहो न फ़िक्र से त्रस्त 
हमने बात घुमा दी कुछ,

समाज न समझे कुछ 
हम बन जाते कुछ मुर्ख,
तुम खो न दो कुछ वक्त 
हम धारण कर बैठे मौन,

पर तुमने परख जुटा 
और पकड़ लिया ही 
सफ़ेद धवल झूठ!

नायाब

तुम हो की 
नायाब हो,
पूछती हो वो
जो सब नहीं सोचते,
चाहती उसको
जो बंधन से है परे,

तुम्हे है ईल्म भी
इस बात का,
है आजाद होना क्या?

तुम की वो सारे काम 
जिसमें है दफन 
इंसानियत के सारे राज,
तुम्हारी है यही हसरत 
की सब खुश रहें
हर वक्त,
तुम लड़ चुकी हो 
खुदा से कर के 
दो-दो हाथ,

तुम बुद्ध की हो प्रश्न 
तुम्हें महावीर का संकल्प,
माया के आईने में 
तुम रूप की विकल्प,

तुम्हारे लिए रची 
विज्ञान ने चौदहवी आयाम,
तुम हो बहुत नायाब!

Monday 11 March 2024

स से सुर

स से सोमवार
स से सुर भी,
स से तुम सरकार
स से हो सत्कार,
सात तुम्हारे साथ 
नाम के 'स' अक्षर के सत्य,
सात समुद्र का पानी 
सात समुद्र की गहराई,
सात द्वीप की विस्तृत विशालता 
सप्तर्षियों का ज्ञान 
सत्संगति, सतरंगी वाणी 
सात आदर्श संकल्प,
स्वदेश, स्वाभिमान,
सामर्थ्य, स्वास्थ्य,
स्वावलंबन
सत्य और संघर्ष,
स से सत्संग की वाणी 
स से सरस्वती 
तुम ही स्वर और सुरभि
स से सूरज 
स से तुम सिया जी 
तुम ही महारानी
सात रूप की शारदा 
तुम सात रंग की धानी!




Sunday 10 March 2024

उजाड़


चाँद नहीं, चाँदनी भी नहीं 
गलियारों में वहाँ रागिनी भी नहीं,
सितारें नहीं, बदली भी नहीं 
उन अँधेरों मे अब रात भी 
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!

सुर नहीं, साज भी नहीं 
बगीचों में बुलाती, आवाज भी नहीं,
दरवाज़ों पर पहचानी 
शख्सियत भी नहीं,
झुंड दोस्तों के,
हरकतें भी नहीं,
चुहलबाजी नहीं 
ऐतराज़ी नहीं,
शाम को आना कहां
इंतज़ार भी कहां,
ख़ामोशी मे देनी है आवाज़ भी
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!

पराठे नहीं, 
सब्जियाँ भी नहीं 
अचार का विचार,
गर्म खाना नहीं 
छत पर जाना नहीं,
बाल्कनी कुछ नहीं,
अखबारों के पन्ने 
उड़े हर तरफ,
उठाना नहीं,
फूल खिलते नहीं 
तोड़ना भी नहीं,
खिड़कियों से कभी 
झाँकना भी नहीं,
फ़िल्में भी नहीं 
साधना भी नहीं,
टोटके भी नहीं 
टोंकना भी नहीं,
किचन भी नही
रोटियाँ भी नहीं,
तोड़ने के लिए
ऊंगलियों भी नहीं,
निवाले से बड़ी भूख भी
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं

तथ्य नहीं
फिर प्रमाण भी नहीं,
तुम नहीं तो
जरूरत भी नहीं 
विकार है 
विषाद है,
कुछ है तो है 
कुछ और की 
दरकार है,
वक्त है, नज़र है 
सरकार ही नहीं,
हमार- तुम्हार नहीं,
आरज़ू नहीं, इन्तेज़ार भी नहीं 
विरान के चौमासे मे उजाड़ भी 
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...