Sunday 30 April 2023

रास्ता

भूल गए वो रास्ता 
जिसपर चलकर 
तुम आये हो,
कितने कीचड़-कंकर थे 
जो पीछे 
छोड़ आए हो,

कितने दिन ही 
बैठ-बैठकर 
पाव की मिट्टी 
धोई है,
कितनी बातें 
हँसकर टाली,
कितनी रातें 
रोई हैं, 

कितनों का हाथ 
पकड़कर आगे,
चले हो साँसें 
चुन-चुनकर,
कितनों को ही 
भुला दिया,
जब आए वो 
तृष्णा बनकर,

कैसे सुबह-सुबह 
उठकर घंटों 
रहे विचारों मे,
सूर्य नमस्कार तो 
छोड़ ही दो,
करवट बदले
बड़े हज़ारों मे,

कैसे दूर किया 
उनको जो,
बोली पर ही 
भारी थे,
कैसे उनको 
पहचाना जो 
अन्दर से भी 
काले थे,

कैसे बड़े छलावे मे 
हमने सेंध लगाई थी,
कैसे दूर हटे थे खुद से 
कैसे बात बनाई थी,

क्यूँ उसको 
अब हो टटोलते,
जिसके बल 
जी पाए हो?
कैसे भूल गए वो रास्ते 
जिनपर चलकर 
तुम आए हो?



Saturday 29 April 2023

मलीन

जब खिलता गुलाब 
मन होता धवल,
ऊचाईयों से झांकता 
चाहता गहराई का गहन,

राम के दरबार से लौटकर
मिट्टी के सांचों मे बंधा सोचकर,
अपने मलीन उद्योग से 
प्रेरित कोई पद ढूंढ़कर 
देखता है, सोचता है 
चेहरा कोई मलीन,

तड़पता हुस्न,
काम का शैलाब
अधरों पर धरे मय बंध 
माया की प्रबलता चुन,
यह होता नित्य निर्बल
भूल जाता भूख 
तल्लीन हो निर्जल,
अपनी अबलता का 
ढूंढ़कर प्रतिबिंब,

राम-सा निर्मल
भुलाकर 
होता और खोजता मलीन !

दोराहे

आज उधर नहीं 
बस इधर चल मन,
आज छोड़ी हुयी 
राह एक बार धर,

उधर ही हैं 
राम वन गमन,
उधर ही 
बुद्ध के चरण,
कर ऐसा प्रयत्न
राम का कर आचमन 
धर ध्यान हो मगन,

यह अगन 
यह चुभन,
यह नित्य प्रलोभन,
कर के दमन 
धर धीरज,
उसको पहचान 
जैसा होगा 
पद दलन,
मान मर्दन 

क्यूँ नहीं रोकता 
यह चरित्र-चलन,
खल से बैठे हैं 
दोनों तरफ 
खर दुशन,
कर लेंगे हरण,
जाएंगे कई दिन बीत 
होगा फिर वक्त हनन,

उधर बढ़ चल जिधर 
कर सकता हवन,
शुद्ध वातावरण 
एक बार मन 
बढ़ा तो वहाँ चरण
राम के शरण 
कर राम पद धारण!

Friday 28 April 2023

भूख

है कोई जो 
एक जून की रोटी 
को मोहताज है,
है कोई जो 
रात सवेरे 
चिंतित है लाचार है,

है कोई जो 
दौड़ रहा है,
पाई एक जुटाने को,
है कोई रेंग रहा है 
अगले मोड़ पे 
जाने को,

है कोई जो 
नहीं है सोया 
तीन रात से लगातार,
है कोई जो 
झाँक रहा है 
खिड़की खोलकर 
बादल पार,

हैं ही सब ये 
आस- पास,
डूबते- उगते 
तारे साथ,

हमको देते 
तभी दिखाई 
जब हमे सताती 
असली भूख,
वर्ना हम भी 
हैं कोई जो 
दिन-रात मिटाते 
अपनी भूख!

Thursday 27 April 2023

तुम्हारा शहर

तुम तो नहीं 
पर तुम्हारा शहर है,
वही बोलियाँ हैं 
वही तो सफर है,
वही फेरियां हैं 
वही तो नज़र है,

उसी बस में बैठा 
वही से मैं गुजरा,
वही थे चौराहे 
वही था बसेरा,
वही खिड़कियाँ थी 
वही सीट भी थी

वही सारी बातें 
जेहन मे आयीं,
जुल्फों को लपेटे 
वही मुस्कराई,
वही फिर थी खुशबू
वही थी तमन्ना,
वही तुमसे मिलना 
वही फिर बिछड़ना,

अब तुम नहीं थी 
तुम्हारा शहर था,
अब कुछ नहीं था 
यादों का घर था!

Wednesday 26 April 2023

अंकुश

अंकुश की बात 
आज कर रहा है प्रेम,
आज जलता है प्रेम से 
मुस्कराकर प्रेम,

आज देता है ओरहना
आज देता इल्ज़ाम,
आज है तिरस्कार 
आज है दुत्कार,

आज मेरा प्रेम करता
मुझको अस्वीकार,
आज अंकुश है लगाता
बांधता संसार,

अंकुश के बाहर प्रेम 
आज जाता है,
कर रहा यलगार 
प्रेम मेरा भुलाता है,

खुल रहा पर्दा 
झूमता झूमका,
आज गैरों से परस्पर 
उतरता सदका,

अब हुआ बेतार 
दुनिया मे कहीं जाना,
अब हुआ गुलज़ार 
गुसलखाने मे रोशनदान,

अंकुश के हैं बंधन नहीं 
अब निपट संस्कार,
निरव लाएंगे मिट्टी मे
रघुवीर की पुकार!



सुलगन

कुछ सूखी पत्तियाँ 
कुछ माचिस की तिलियाँ,
एक हल्की सी फूँक 
कुछ click and enter,

कुछ रगों की सुगबुगाहट 
कुछ सुने कल्लोल,
कुछ परत की अंगड़ाई 
कुछ सखा के बोल,

सुलगना है आज 
आख़िर कुछ तो करना है,
राम मे है देर-सवेर
अब तो खुद ही जलना है!

Thursday 20 April 2023

shape memory

उधर से गुजर रहे हैं 
फिर रक्त के बेड़े,
आज विचारों के लगे हैं 
रोड पर मेले,

इधर-उधर 
ढुलक रहे हैं
साँस के ठेले,
काम मे क्रोधित हुए 
काम मे खेले,
काम से बाधित हुए हैं 
बेकाम के फैले,
राम के विमुख 
मिट्टी ये मैले,

आदतों की सह से फैले 
मेरी ये बेलें,
अब आप मे 
उलझ गए ये 
आप ही झेले,
राम से अलग हुयी 
ये राम की बेलें !

unsettled

झील मे विचार 
धूल के बौछार,
इधर-उधर 
गये बिखर,
कुछ लेकर संस्कार 
कुछ तलब से बेकार,

नीचे से जाते ऊपर 
भाव के फुहार,
ऊपर से नीचे आते 
पत्थरों मे भार,
राम से बेतार
राम की दरकार 
राम की पतवार 
राम की सरकार
राम राम पुकार!

Tuesday 18 April 2023

भोजन

कुछ बचा हुआ 
कल रात का,
कुछ छूटा हुआ 
थाली मे,
कुछ सड़े-गले 
कुछ कच्चे-से,
कुछ बिन सब्जी 
कुछ दाल बिना,

मन करता 
रहता है भोजन,
अपनी थाली को छोड़ 
और के दया से मांग,
राम नाम को भूल 
मन करता भोजन
कुछ का कुछ!

logical शोर

बनी हुयी स्मृति,
जुटाए हुए ज्ञान,
के उलझाने वाले धागे,
हाथों मे बहाव,
पैरों मे अंगार,
बनकर घुमाने वाले धागे,

हम जागे-जागे 
भाग रहे हैं पीछे, आगे,
शोर के संसार मे 
सत्य की गुंजाईश लागे,

इस धागे को निकालते 
उसे बाँधते,
हर आवाज को समझकर 
उसका चेहरा ढूंढ़ते,
तर्क-वितर्क के प्रसंगों से 
मुस्कराते और गुर्राते,

ये logical शोर 
मन की दीवारों पर 
लटकते चारो ओर,
बिना ओर और छोर,
सुलझाने वाले 
engineers को 
करते भाव विभोर,
ये छोटे-छोटे समय के चोर,
ये घूम-घूम इधर-उधर 
बनते logical शोर,

राम बाण से आगे चलते 
स्वर्ण मृग के 
चंचल और किशोर,
राम ठौर के पुष्प छोड़ 
उड़ते गगन की ओर,
जाना है जिस ओर 
उसको भुला दिए विभोर,

अब राम ही इनके उत्तर 
राम के ही ये पोर!



Saturday 15 April 2023

ज्वाल

उठता बढ़ता ज्वाल 
ये फैली लपट विकल 
सकल लता जलती 
रस विष के घुलते प्याल,

कर-पद होते आधीन 
करतल करते आसीन 
नभ भुला हुए जमीन 
आज ज्वर में सब तल्लीन,

ज्वाल है काल कपाल 
राम नाम वरदान,
जल बनकर बनते ढाल 
राम ज्वाल पर काल!

Sunday 9 April 2023

अंधकार

तुम मेरी अंधकार हो

तुम छुपी हुयी हो 
जो नहीं जानते सब,
तुम अंदर मे समायी 
कहाँ और कब?

तुमको बताऊँ किसको 
तुमको जानेगा कौन?
तुमको छुपाऊं कितना 
कितना रहूँगा मौन?
तुम्हारी किरनें फैल जाती 
जब होता सब शांत,
तुम अब साथ मेरे 
हर कहीं, हर बार हो 
तुम ही अंधकार हो!

जहा सूर्य नहीं उगा 
जहा कभी सूर्यास्त है,
जहा दीपक बुझ गया 
जहा तम साम्राज्य है,
वही तुम मुझपर 
असीमित विस्तार हो,
जहा है नहीं कोई, 
जहा सब उजाले बंद 
तुम वहाँ भी बरकरार हो,
तुम आदि अंधकार हो!

तुमको मूंद लूँ मुट्ठी मे
तुमको खोल दूँ असमान मे
तुमको लिख लूँ डायरी मे
तुमको रख लूँ जेबों मे 
तुम मेरी हकीकतों मे
हर समय ही गुलज़ार हो

समझेगा ये ज़माना तुम 
तुम कोई फनकार हो,
मुझे बाँध लेती हो 
तुम मेरी अहंकार हो,
तुम राम की नकाब धरे 
मेरा तिरस्कार हो,
चकाचौंध करने वाली 
तुम मेरी अंधकार हो!

Tuesday 4 April 2023

रामगंगा

राम गंगा बहत सतत 
अविचल, अनवरत
श्वास संग लहर उठत
आवत-जात निरत चलत,

करकट मिलत, राह जुटत
रंग बिगड़त, खल जमत
अंधकार बढ़त, गंग छुपत
मन धुन्ध मे होत क्रुद्ध 
और भी जात बिगड़त,

राम गंगा बहत चलत
चलत रहत बहत रहत 
राम गंगा बहत रहत !





Sunday 2 April 2023

कुछ और भी थे

कुछ और भी थे 
उस कमरे मे,
जो पढ़ने-लिखने 
आए थे,
कुछ और भी थे 
जो अपनी गंगा 
अस्सी छोड़ के 
आये थे,
वो भी साथ मे 
देख रहे थे,
खिड़कियों से 
गिरती हुयी 
बारिशें,
वो भी साथ 
मुस्काये थे 
याद किए 
उनकी शरारतें,

कुछ और भी थे 
जो टेबल कुर्सी 
मिट्टी छोड़ के बैठे थे, 
कुछ और भी थे 
जो लिट्टी-चोखा
पेड़ के नीचे खाते थे,
कुछ बच्चे थे जो 
मंदिर जाकर 
नदी कूद के डूबे थे,
कुछ और भी थे 
छोड़ मसखरी
अंग्रेजी में बतियाते थे,

उस कमरे वाले चले गए 
अपने पीछे छोड़ गए 
कुछ खाली कुर्सी 
खाली कमरे,
खाली वीरान 
अब सजते होंगे 
गंगा तीरे 
घाटों पर गुलज़ार,
कभी हमारी छुट्टी होगी 
हम भी होंगे उस पार!


रामवृक्ष

उड़ गया पंक्षी
चला उड़ दूर,
उड़ा-उड़ा 
फुर्र-फुर्र,

छोड़ उड़ गया 
रामवृक्ष, 
मन के होते जो 
अधर तृप्त, 
कोलाहल से 
डाली झंकृत,
भव के होते 
पल्लव सुदीप्त,
भय से विस्मृत 
कातर दो दीप,
सिरहन करते 
मय सरीसृप,

उड़ते पाखी 
अब नए ठौर,
जहां राम का 
सदा दौर,
होता मलिन
अब रामवृक्ष! 


Saturday 1 April 2023

क्रांति

अब नयी क्रांति क्या होगी 
अब नयी परवरिश क्या होगी,
कैसी होगी नयी पैदावार 
कैसा होगा नया जोतेदार?

मोतिहारी वाला खेलेगा 
क्या पूरे नंबर लाएगा?
हँसी-हँसी मे कुर्सी छोड़ 
क्या पैरा लिखकर आएगा?

कौन समस्तीपुर से उठकर 
सर से बात करेगा सब?
कौन मुजफ्फरपूर से पढ़कर 
कलम घिसेगा चाहे जब?

गुड़िया

वो बात करेगी 
फिर क्या होगा?
वो हाँ कह देगी 
फिर क्या होगा?

कुछ बातें होंगी 
इधर उधर की,
घटनाएं होंगी 
नयी पुरानी,
अपने ऑफिस की 
और उसके की,
फ़िल्मों किस्सों 
आने जाने की,
खरीदारी कुछ 
आधे-पौने की,
दुखिया अपने कि 
और उनके की?

होंगी कुछ 
खाने पीने की,
आगे पीछे 
उठने सोने की,
उनके कहने 
उसके सुनने की,
इसके बंगले 
उसके सोने की,
बातें कुछ 
लिखने-पढ़ने की,
तस्वीरें कुछ 
गढ़ने-रंगने की,
आगे कुछ 
आगे बढ़ने की!

जैसा है कुछ वैसा होगा,
नए खिलौने जैसा होगा!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...