जुटाए हुए ज्ञान,
के उलझाने वाले धागे,
हाथों मे बहाव,
पैरों मे अंगार,
बनकर घुमाने वाले धागे,
हम जागे-जागे
भाग रहे हैं पीछे, आगे,
शोर के संसार मे
सत्य की गुंजाईश लागे,
इस धागे को निकालते
उसे बाँधते,
हर आवाज को समझकर
उसका चेहरा ढूंढ़ते,
तर्क-वितर्क के प्रसंगों से
मुस्कराते और गुर्राते,
ये logical शोर
मन की दीवारों पर
लटकते चारो ओर,
बिना ओर और छोर,
सुलझाने वाले
engineers को
करते भाव विभोर,
ये छोटे-छोटे समय के चोर,
ये घूम-घूम इधर-उधर
बनते logical शोर,
राम बाण से आगे चलते
स्वर्ण मृग के
चंचल और किशोर,
राम ठौर के पुष्प छोड़
उड़ते गगन की ओर,
जाना है जिस ओर
उसको भुला दिए विभोर,
अब राम ही इनके उत्तर
राम के ही ये पोर!
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