भूल सुबह की,
यह राम-रज कण
है कुम्हली-सी,
चादर की एक
परत पड़ी-सी,
जिसके बाहर
धुप खिली-सी,
यह धूल उड़ी-सी
कुछ राह चली-सी,
पगडंडी इक
बनी हुई-सी,
नही ऑंख पर
परत पड़ी-सी,
यह आने वाली
कली खिली-सी!
यह धूल नहीं है भूल सुबह की, यह राम-रज कण है कुम्हली-सी, चादर की एक परत पड़ी-सी, जिसके बाहर धुप खिली-सी, यह धूल उड़ी-सी कुछ राह चली-सी, पगड...