यह धूल नहीं है भूल सुबह की, यह राम-रज कण है कुम्हली-सी, चादर की एक परत पड़ी-सी, जिसके बाहर धुप खिली-सी, यह धूल उड़ी-सी कुछ राह चली-सी, पगड...
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