मैं मान लेता,
मैं दिन के उजालों में 
आँख बंद कर सो लेता 
मैं रात के अंधेरों में 
दीपक जला लेता,
दूरी कितनी भी हो 
मैं पास ही समझता,
मैं अपनी बातों से 
हार मान लेता,
तुम घूमने जाती 
मीना बाजार, चाँदनी चौक 
मैं अपने हाथ 
मुट्ठीयों में बाँध लेता,
यह कैसी है तलब की 
अपनी बात तुमसे सुन लूँ,
कैसी है माया की 
कुछ ज़ज्बात तुमसे कह दूँ,
मैं खिड़कियों से 
रास्तों पर झाँक लेता,
तुम कह देती तो 
मैं मान लेता!
 
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