Wednesday, 29 May 2024

सांत्वना

तुम कह देती तो 
मैं मान लेता,
मैं दिन के उजालों में 
आँख बंद कर सो लेता 
मैं रात के अंधेरों में 
दीपक जला लेता,

दूरी कितनी भी हो 
मैं पास ही समझता,
मैं अपनी बातों से 
हार मान लेता,
तुम घूमने जाती 
मीना बाजार, चाँदनी चौक 
मैं अपने हाथ 
मुट्ठीयों में बाँध लेता,

यह कैसी है तलब की 
अपनी बात तुमसे सुन लूँ,
कैसी है माया की 
कुछ ज़ज्बात तुमसे कह दूँ,
मैं खिड़कियों से 
रास्तों पर झाँक लेता,
तुम कह देती तो 
मैं मान लेता!

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...