अब है चलना किधर को?
यह हमारा है चुनाव
पांव रखना है किधर को?
रस्सियाँ हैं, रोशनी है
आधार है, सेतु भी है,
कम समय में परिणाम भी
कर्म का कुछ हेतु भी है,
बस उठाकर कदम मुझको
चलना है उस ओर,
अंधकारमय है निशा पर
सुबह है चित्चोर,
राम का अवलंब
राम का ही शोर,
राम की माया,
राम का ही तौर,
राम की बंशी
राम का ही ठौर!
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