Wednesday 31 July 2019

गुमराह

मै फिर ख़ुद से
भटक गया था,
तुमने देखकर
बदल गया था।

मैंने सोचा
जिसको चाहा,
मैंने पाया
जिसको त्यागा,
कुछ और सोच
मै पिघल गया था।

मैंने तुमको
हँसते देखा,
हरकत करते
तुमको देखा

चंचल चितवन
रूप देखकर
मई भी नाचने
निकल गया था

मै फिर ख़ुद से
भटक गया था।

Saturday 27 July 2019

मन

मन करता है
खुद से बातें।

प्रश्न कई
नाना-विधि करके
खुद को रक्खे आगे।

 मन करता है खुद से बातें।

सत्य को देके
नई सी उलझन
झूठ गढ़े
क्यों बिन बातें?

मन करता है खुद से बातें।

अट्टहास, शोक, विलाप
एक ही बात पर करे आघात
बैठे निजी हित पाके।

मन करता है खुद से बातें।

Tuesday 23 July 2019

Just a call away

I am just a call away

Call me when
you are happy and gay
call me when
you have a sad day
call me when
you are in distress
call me even
for a de-stress

I will never 
leave you dismay

I am just a call away

Call me to ask
things of past
call me to know 
my religion and caste

Call me if you 
need to debate
call me if you
are irate

Call me to know
Konark and Ratha
call me to know
cyclones are tough

Let us have some
words for play
you propose 
and I dismay
Let's catch up
in another affray

I am just a call away.

Monday 15 July 2019

Penance

आज फिर वही ठंड,
हल्के बारिश वाली
रोम-रोम उत्तेजित

सतह के नीचे,
प्रवाहित मंद तरंग
घर्षण से उन्मादित
तन स्थिर मन तंग।

आलिंगन को व्याकुल
ऊष्मित अंग समग्र,
निथर जाती टपक-टपक
मेरी सतही तरंग।

तलवे ठोस झंकृत
भीतर विद्युत अनंत,
स्मृति पर आक्षादित
छुअन, चुभन, सुगंध।

विश्वामित्र बिन मेनका
मनोवृत्ति का आलस्य,
मेरी अग्निपरीक्षा
बारिश मे तपस्या।

Thursday 4 July 2019

Article 377

चित्रण:श्वेता
फिर कमसिन
पूनम की रात,
रोशनी की बरसात
फलक का चाँद।

रोशनी उतरती
परत दर परत,
हवा की सतह पर
क़दम रखती।

छन से बिखरती
कोई एक चंचल,
हवा की चुभन पर
गिरती-लुढ़कती,
मदमस्त छलकती।

सघन सी फ़िजा के
कई बिंदुओं पर,
चूमे सरल सी,
कई गाँठ खुलती।

कोई जाके बैठी
फूलों की नाज़ुकी पर
चौपाल है यह
गुलाबी सफ़ेदी।

डालियों की अँगड़ायी
हल्की जम्हाई,
बाज़ुओं से लटकती
अंधेरों में छुपकर
बत्ती जलाती,
फिर छुप जाती, सताती।

रात थक के बैठी
नहाकर सँवरती,
रोशनी की गिरह मे
सृंगार उघरती।

आज बिन परीक्षा
कोई चित्र रंगती,
प्रकृति वसंत का
नया गीत लिखती।

नज़र से निहारा
अधूरा ही पाया,
सुना राग दीपक
नहीं मन सुहाया।

फूलों की ख़ुशबू
थी मुँह चिढ़ाती,
हवा बाँह छूकर
ना सुलाती, जगाती।

तुम्हारे अधर के
भीगे सतह पर,
रात और रोशनी
मिलकर चमकती।

तुम्हारे और मेरे 
अधर के मिलन पर,
घूलती-फिसलती,
एक हो जाती
रात और रोशनी।







नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...