ऊपर जाता आवेग,
अधोगति जब होती
बिलख रहे सम्वेद,
कामनाएँ उड़ के जाती
आसमान की ओर,
पीछे-पीछे करती घर्षण
चलती शोणित की डोर,
ऊर्जा की उष्मा उठती
तरल-तरल करती हिलोर,
राग-रंज अनमोल,
आसक्ति अति घोर
फिर आती ठंडी होकर
लेकर माटी के घोल,
टप- टप, कंपन का शोर
बैठा जाता मन
डर का माहौल,
इत ओर, उत और
सभी की नज़रों से चोर
ऊर्जा की आपा धाबी
यह कैसा व्यसन का मोर
नाचने को व्याकुल
ऊपर नीचे चारों ओर!