पीने के बाद गालियों मे
सनम दिखते हैं,
ज़िंदगी की तन्हाइयों मे
कोई मरहम दिखते हैं,
उनकी मोहब्बत काइम्तिहान क्या लें,
आईनों मे भी जिनके
अब हम दिखते हैं,
मुर्ख कहकर बुलाते हैं मुझे,
हम उनको बड़े बेरहम दिखते है,
मधुशाला के झरोखों-से
तफ़तीश करते हैं,
जो हवेलियों पर औरों के
हरदम दिखते हैं,
बदहवासी मे रिश्तों के
गिरह खोलते हैं,
हम उनको बड़े
बेशरम दिखते हैं,
आशिकी मे डूबने को
हम तैयार बड़े थे,
क्यूँ उनको दिलों मे
भरम दिखते हैं,
किसको कहेंगे वो
अपना हमसफ़र,
जहां पैमानों के फैले
आलम दिखते हैं,
बड़े शोर सुनकर आए थे
जिनके आशियाने पर,
वो आमने-सामने
कितने नम दिखते हैं,
उनको कैसे बताये की
लोग छुपते बहुत हैं,
होते हैं बहुत
फिर भी कम दिखते हैं,
हम तो रोक लें दिल को
किसी कैद खाने मे,
पर ये बहके हुए
कुछ कदम दिखते हैं,
जान भी हम लुटा दें
इक नजर भर को जिसकी,
गौर से और को वो
एकदम देखते हैं!
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