हर तरफ एक
जश्न-ए-गुल है,
इस तरफ क्यूँ
हर कोई
दबे पाँव चलता?
उस तरफ
हर शख्स की
पैनी निगाहें,
इस तरफ
हर आदमी
छुप लूटता है,
उस तरफ
सब मिलके
सारे घेरते हैं,
इस तरफ
अकेले मे
बंधन जोड़ते हैं,
उस तरफ
रातों को
पहरा तोड़ते हैं,
इस तरफ
दिन-रात
सबको तोलते हैं!
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