की मानते हैं कैसे,
चलते हैं कैसे
उनके पथ पर,
खोते नहीं कैसे धीरज
देखकर उनके
टूटते विचार,
आस पास के व्याभिचार,
मुस्कराते हार कर
देखकर अपनी हार?
बैठे हैं जो कुर्सियों
भूलकर बापू के आचरण?
करते हैं स्मरण
अब बस तब जब
होते कोई त्यौहार परब,
नहीं पाते खुद
मे झलक उनकी
खुद मे किसी तरह,
कैसे देते जवाब
खुद को और
बापू के प्रश्न पर उत्तर?
राम कैसे कहते होकर निडर?
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