Sunday 29 May 2022

असमंजस

मै चाहता
बाजा बजाना,
पर सो रहा
परिवार मेरा,
और चाहता
खाना भी खाना
पर व्रत हुआ
परिवार मेरा,

मै चाहता की
छोड़ आऊ,
नौकरी अंग्रेज वाली,
मै आके
अपने देश खोलूँ
चाय की टपरी ही छोटी,
सबको पिलाऊं
शक्कर मिलाकर
साथ दूं मठरी मलाई,
और क्या पता
मै बन भी जाऊं
मै देश का प्रधामंत्री,
पर गरीब है
परिवार मेरा,

मै सोचता हू
ब्याह लाऊ
छोकरी बेजात वाली,
आंख जिसकी
भूरी–सी हो,
रंग की वो
निखत काली,
वो जो नहीं है
अप्सरा और जो
नहीं सबसे निराली,
पर मौन है
परिवार मेरा,

मुझको लगता
है की भीगूं
बरसात की
पहले पड़े पर,
साइकिल उठा कर
घूम आऊ
सारनाथ और
यूपी कॉलेज,
मै गंगा मैया की
ठंड लेकर
दिन बिता दून
घाट पर ही,
शाम को लौटू
खाकर मलाईयो
दूध वाली,
पर चिंतित बहुत
परिवार मेरा!


नसीहत

पंचायत ३ मे
किरदार कर लो,
किसी और से
शादी भी कर लो,

कुछ और पढ़ते
हो ही क्यूं?
तुम PhD उसमे
तो ही कर लो!

मेरी नसीहत मान लो
पछताओगे वरना बहुत,
”मै” जानता सर्वश्व मेरा
मर जाओगे वरना फखत!

अकेला चना!


अकेला चना भाड़
फोड़ सकता है क्या?
क्या कर लेगा वो अकेले
जो नहीं हुआ?

कितना ढूलकेगा अकेला
कितना बाजेगा घणा?
कितना सोच लेगा वो
जो नहीं कोई सोच सका?


क्या फूल जायेगा इतना
की जैसे सागर समेटेगा?
या पैदल ही चलकर
नाप देगा डांडी की गंगा?

जन का कर आह्वान
वो किसको बुला लेगा?
कर के सबसे काम बेहतर
अंबर झुका लेगा?

कर corruption को अलग
मंत्री हटा देगा,
या स्कूल की करके मरम्मत
सबको रिझा लेगा,

अकेला चना क्या गांधी है
जो सूरज डूबा देगा?
या हनुमान सा आंधी है
जो लंका लगा देगा?
क्या अकेला चना
मोदी कोई है
जो चाय बेचेगा?
या कोई शादी है
वंश बढ़ा देगा?

अकेला चना क्या
मदर टेरेसा है
जो सफेद रंग देगा
या इंदिरा गांधी है
जो बंगला बना देगा?

अकेला चना भाड़ को
फोड़े बिना कैसे सजा देगा?

Sunday 22 May 2022

पंचायत


महलों की मीनारों से
झांककर लोग–बाग
पञ्चायत देख रहे हैं,
उन्हें भी देश की
उतनी ही फिकर है,
जितना हंसते हुए
अभिषेक त्रिपाठी को है,

इनको वनराकश पर गुस्सा है
और प्रधान जी से प्रेम है,
वो विधायक को
बदतमीज समझते हैं,
और उसके खिलाफ 
अभिषेक को
चुनाव लड़ाना चाहते हैं,
वो अब अपने केजरीवाल को
अच्छे से पहचानते हैं,
वो आम आदमी की
सरकार चाहते हैं,
वो राकेश की शहादत पर
रुआंसे हो गए हैं,
और मोदी जी के साथ
2 मिनट का मौन रख रहे हैं,
वो S जय शंकर की
Videos को वायरल
कर रहे है,
चीन के शहरों के नाम
ट्विटर पर बदल रहे हैं,
वो कश्मीर files की असलियत
महसूस कर रहे है,
उन्हें प्रहलाद जी का
3 दिन गायब होना 
खल रहा है,

वो रिंकिया से टंकी पर
मिल चुके हैं,
और प्रेम का इजहार भी
कर चुके हैं,
वो फुलेरा के थानाध्यक्ष के
नोएडा फोन करने पर
हंस के टाल रहे हैं,
उन्हें भट्ठे वाले पर गुस्सा है
पर उन्हे माना लेते हैं
एक ही एपिसोड मे,

उन्हें अब अभिषेक से
हमदर्दी के साथ जलन भी है,
वो दया नहीं दिखाते
अभिषेक सर पर,
उन्हें नाज़ है इसके काम पर
और किस्मत वाला समझ कर
उसे दुआ भेजते हैं!🌻😊


Friday 20 May 2022

इज्जत

मै इज्जत
कमाने की खातिर
लगा हुआ था,
तन मन से,
मै इज्जत
बचाने की खातिर
छुपा हुआ था,
बचपन से,

मै संगत से भी
बचा बहुत,
पर संग ने
साथ नहीं छोड़ा,
वो साथ मेरे
चलते ही रहे,
मै बना race का
था घोड़ा,

मै सरपट दौड़ के
आगे–आगे
निकल गया
औरों से कुछ,
मै train से रेस
लगा बैठा,
मै कहां कहा
औरों से कुछ?

सब इज्जत
बचा रहे भी थे,
मेरी इज्जत से
कम लेकिन,
सब झुलस तपिश से
निकल गए,
मै ही फंसा
रहा लेकिन,

जब राम नाम से
भेंट हुई,
तो संभल गया
मै संभल गया,
राम की इज्जत 
जान गया,
मै बदल गया,
मै बदल गया!

Saturday 14 May 2022

नए पात्र

वही कहानी है
वही है तरीका,
बदली है बस जुबानी
और करने का सलीका,

वही तो मुद्दे हैं
जिसपे बात मन में थी,
वही देशहित था
जिसकी हिचक बैठी थी,
बदलें केवल लोग
उनके पीने का तरीका,

वही कहते हैं
जो हमने नाम रक्खे थे,
वही दर्जा है जो हमने
मिलके देखे थे,
बदला है केवल वक्त
और चुप रहने का सलीका,

वही बातें थी रुहानी
गांव खेड़ों मे,
वही रास्ते थे
आम–पीपल के,
बदला है केवल वहां पर
जाने का तरीका!

महफूज़

पड़ गए तुम्हारी बाहों में
अपना सामान भुलकर,
एक अरसा हो गया ही
महफूज़ सोए हुए,

खुले आसमान की चादर
ओढ़ी बड़े दिनों पर,
ज़माना बीत गया 
दोस्तो के लिए रोए हुए,

तुम्हारी गाड़ी पर बैठकर
छोड़ा रेल को पीछे,
हम लड़ते रहे खुद से
ज़हर मन मे बोए हुए,

बेवफा की वफ़ा का
हमे इल्म कहां था,
कहां वक्त ही मिला
औरों के लिए रोए हुए,

किसी और पर हंसना हमे
Comedy लगती थी,
सुकून खुद पे हंसने का
हम यूं थे गोए हुए!

Friday 13 May 2022

unthanked

मैंने क्या–क्या कहा
क्या–क्या पूछ लिया,
क्या मन मे रखा दबाकर
क्या–कुछ बोल दिया,

क्या सीख लिया मै सुनकर
क्या मान लिया चुप होकर,
कहां–कहांहम घूम आए
कहां–कहां बतलाकर,

कब मिले और कब बिछड़ गए
हम कब रोए कब बिफर गए,
कब जोश मे आकर गले लगे
कब दूर हटाकर बिखर गए,

कब रुके की कब शुरुआत हुई
कब बिना कुछ बोले चले गए,
ये बिना कहे भी समझने वाले
दोस्त ज़ुबा मे कहे गए!

Tuesday 10 May 2022

मीना दीदी

मीना दीदी जल्दी
कहीं नहीं जाती थीं,
जाती भी थीं तो
ज्यादा दिन रुकती नहीं थीं,

लोगों से जल्दी
घुल–मिल जाती,
उन्हें अपना समझकर
बातें बताती,

शहरों के लोगों को
देखकर समझ जाती,
गांव के लोगों के 
हाल, चाल बताती,

पर जहां भी जाती
अपने बच्चे को
साथ ले जाती,
उसे सबसे मिलवाती,
उसकी उम्र यही कोई
१०–१२ साल बताती,

अपने बड़े से हो गए
बच्चे को ज्यादा दुलारती,
खाना अपने हाथ से खिलाती
नहलाती–धुलाती, पुचकारती,

उनका बच्चा गूंगा था
और दिमाग से पैदल

मीना दीदी
यह समझ नहीं पाती,
वह अपने बच्चे को भी
बच्चा ही समझती,
उसे बच्चा ही बुलाती,

उन्हें अपने बच्चे को
पढ़ा–लिखाकर
Collector तो नहीं
बनाना था,
इसलिए वो ज्यादा
नहीं डर जाती
समाज से और खुद से,
वो खुद ही कमाती
उसे और खुद को खिलाती,

सरकार से कोई गुहार नही
नही कोई ज्यादा उम्मीद,
वो अपने बच्चे अपने जीवन का
हिस्सा समझकर अपना जीवन चलाती,

भविष्य को देखा तो था नहीं
तो भविष्य का क्या गम मनाती,
Special care वाले child की
बातें उनके पल्ले नहीं आती,
वह अपने बच्चे को भी
बच्चा ही समझती,
उसे बच्चा ही बुलाती!




दोस्त

थोड़ा–थोड़ा करके
दोस्त बनते हैं,
कुछ मांगते हैं मुझसे
कुछ दान करते हैं,

कुछ सोचते हैं मेरा
कुछ अपनी कहते हैं,
मुझे परख–परख के
वो नाम धरते हैं,

छीन कर नहीं
ना पीछा करने से,
मांगकर नहीं
नहीं संग्राम करने से
दोस्त मिलते हैं
निःस्वार्थ सम्मान करने से!

drama

हमने अपने पात्र
खुद लिखे,
पहनाया
अपना जामा,

रंग–रोगन
चेहरे पर डाला,
भाव गढ़ा
बहुत निराला,

आंखों मे
सूरमा लगाया,
होंठों पे
गहरी लाली,

वाद लिखे
संवाद लिखे,
कुछ मौन धरा
कुछ विराम लिखे,

पर मंच पर हो गई
थोड़ी–सी गड़बड़,
रामायण के मंच पर
Crime Patrol वाले
आ गए,
राम का role निभाने वाले
Thriller की lines pa गए

अब परेशान है
मंचन करने वाले,
फिट करते हैं
Character सारे,
समय गवाते मंचों पर ही,
राम बने फिरते हैं मारे,

राम की महिमा
कोई न जाने,
राम परे हैं
राम के जाये!




Monday 9 May 2022

फोन वाली दोस्त

मेरे फोन वाली दोस्ती
बात–बात पर बिगड़ जाती
जो नहीं कहता,
वही तो वो समझ जाती,

मेरे दोस्ती वाले फोन
मुझे बहुत हंसाते
याद करते बीते दिन
रूठने पर मनाते,

फोन तो था दोस्तों से
मिल भर जाने को
पर जीवन था सामने
दोस्त और बनाने को,

फोन वाली दोस्त से
मै पत्थर और किताब के
सवाल पूछता था,
मै अखबारों
और कविताओं के
उन्मान पूछता था,

फोन वाली दोस्त बस
किताब तक ही सीमित थी,
दोस्ती भी उसकी
कुछ बात तक ही सीमित थी,

दोस्त जो बने कभी
वो फोन से नहीं बने,
फोन तो था चाहता
की दोस्ती रही बने!

Saturday 7 May 2022

गिरगिट

रंगा हुआ नही था गिरगिट
मेरे बाग बगीचों मे
लाल नहीं उसका कपार था
घर की लगी दीवारों पर,

रंग बदल लेता था वो
मुझे देख छुपाता था वो
गिरगिट बड़ा निराला था
कूद–फांदने वाला था,

हंसता और मुसकाता था
गिरगिट हमे चिढ़ाता था
हम पढ़ने बैठते कमरों मे
वो खेल मदाड़ी दिखाता था

जब हम परीक्षा देते थे
तो गिरगिट मौज मनाता था,
गिरगिट जब छत से गिर जाता
तो पलट खड़ा हो जाता था

फिर रंग बदल
माहौल के जैसा
और मगन हो जाता था,
गिरगिट जीने मरने मे
मौज बहुत उठाता था
जीना कैसे है हंसी खुशी
यह गिरगिट हमे सिखाता था।


भौजी के रिक्शा

जौनपुर के भौजी
करे मनमौजी,
रिक्शा समझ के
मोटर के आगे,
बैठिन जाके
Bonut पे आगे,

भैया बेचारू
रहीन परेशान,
खींचे फोटो
नोचे कपार,

कहेके सबै गुन
भौजी मनावे,
उतरे ऊ मोटर से
त आगे बढ़ावे,
"गर्मी बहुत बा
उतर जयतु रानी,
अंदर बैठतू
पी लेतू पानी"

चलतु बजारे
त लुग्गा दिययिती,
खाना खियायिति,
नैया घुमयिति,

निरहुआ के नयिका
लगिल बा सिलेमा,
लेके टिकट तोके
पिक्चर देखायिति

उतर जयतु रानी
बयिल बा फजीहत,
रुकल बाड़े रास्ता
तु माना नसीहत,
मोहल्ला मे हमके
जाने ले दस लोग,
हमे बड़का भैया
बोलावेले दस लोग,

सबके सामने का
तु भयीलू नराज़ी,
उहां देखा तोके
घोरावत थे आजी!"

उतर गयिली भौजी
मनावत–मनावत,
भईया सुधर गयिलन
देखावत–देखावत!



Tuesday 3 May 2022

गर्मी की छुट्टी

नानी बुला लेती थीं
हफ्ते–दस–दिन के लिए,
हम भुला देते थे पढ़ाई–लिखाई
महीने दो महीने के लिए,

खेलने–कूदने–खाने के लिए
बाज़ार नाना जी के संग 
जाने के लिए,
हंसने के लिए,
मुस्कुराने के लिए,
झगड़ने के लिए
भगाए जाने के लिए,
अगली छुट्टी मे
फिर आने के लिए,

दो पैसे की ice–cream
खाने के लिए,
हिचऊआँ खींचने के लिए,
गुल्लर के नीचे सोने के लिए,
टंकी मे हल के नहाने के लिए
पानी हीड़ने के लिए
और डांट खाने के लिए,

कभी कुओं पर जाकर
बैठने के लिए,
थूंककर गहराई नापने के लिए,
Carom–board खेलने
और Mario खेलने के लिए,

हम मशीनी हकीकत से
दूर होते थे,
असली चीज देखने के लिए,
जिंदगी को तरोताजा करते
नई सांस भरते
हौंसला भरते आगे बढ़ने के लिए।



कबूतर

ये गांव है गांव
यहाँ लोग नहीं रहते
कबूतरों की तरह
झुंड दर झुंड
दड़बों के भीतर

यहां लोग उड़ते हैं
झुंड दर झुंड
गुटर गूं करते हैं
झुंड के झुंड,
दाना चुगते हैं
झुंड दर झुंड
और गाना गाते हैं
मिलकर
झुंड दर झुंड

और फिर उड़ जाते हैं
शाम को अपने–अपने
घोषलों की ओर अकेले।

Monday 2 May 2022

भोर का सपना

कुछ ओझल नही हुआ होगा
जब रात देर से सोए थे,
कल रात तुम्हारी तकिए मे
तस्वीर दबा के सोए थे,

कुछ याद तुम्हारी ले लेकर
हम रात देर तक रोए थे,
कुछ और भी बाकी रखा था
जब सुबह देर तक सोए थे,

तुम आकार पास मे बैठी थी
थे केश तुम्हारे खुले हुए,
Vasmol का था कमाल
थे होश हमारे उड़े हुए,

वो खुशबू इतने खुमार की थी
हम चाहकर भी कुछ कह न सके,
जीवन मे तुम्हे कहां पाया
सपनों में भी तुम रह न सके,

सपनों मे साथ तुम आ बैठे
तो साथ तुम्हारा क्या छूटे,
तुम जाने लगे भोर में जब
तो हाथ तुम्हारा क्या छूटे,

पापा से नज़र बचाकर हम
फिर छत पर जाकर लेट गए,
तुमको नसीब मे देख लिया
तो फिर से आज हम देर उठे!


Sunday 1 May 2022

समर्पण

किसके सामने समर्पण होगा?
जो है नहीं जेहन मे
जिसे जानता नहीं हूं,
जो देखा भी नहीं है
जिसे पहचानता नहीं हूं,

कब समर्पण होगा?
जब मोह भी न होगा
जब चैन से रहूंगा?
जब वो मना भी नही करेगी
जब मैं डरा हुआ भी न हूंगा?

किसके प्रति समर्पण?
जो मन के विचार मे है
जो सत्य भी नहीं है?
जो भ्रम का मायाजाल है
जो अर्थहीन लस्य है?

किस चीज का समर्पण?
श्री राम के विश्वास का
या सत्य के निज धाम का?
वचन का, आदर्श का
वासना की भेदी पर
प्यार के ही नाम का?

है समर्पण सत्य वह जो
दुर्दशा मे कर सको
प्राण या माया का बंधन
प्राण रहते तज सको
राम के मिलने से पहले
राम का सब दे सको,
राम कहते राम सुनते
राम मे मय हो सको!


नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...