Saturday 7 May 2022

गिरगिट

रंगा हुआ नही था गिरगिट
मेरे बाग बगीचों मे
लाल नहीं उसका कपार था
घर की लगी दीवारों पर,

रंग बदल लेता था वो
मुझे देख छुपाता था वो
गिरगिट बड़ा निराला था
कूद–फांदने वाला था,

हंसता और मुसकाता था
गिरगिट हमे चिढ़ाता था
हम पढ़ने बैठते कमरों मे
वो खेल मदाड़ी दिखाता था

जब हम परीक्षा देते थे
तो गिरगिट मौज मनाता था,
गिरगिट जब छत से गिर जाता
तो पलट खड़ा हो जाता था

फिर रंग बदल
माहौल के जैसा
और मगन हो जाता था,
गिरगिट जीने मरने मे
मौज बहुत उठाता था
जीना कैसे है हंसी खुशी
यह गिरगिट हमे सिखाता था।


No comments:

Post a Comment

जो है नही

ऐसी चमक, ऐसी खनक  जो है नही, देखने से ढ़ल जाती है सुनी हुई धुन सादी है, मनोहर गढ़ी, भेरी कही योगी की तंद्रा, भोगी की रंभा  कवि की नजर मे सुम...