हफ्ते–दस–दिन के लिए,
हम भुला देते थे पढ़ाई–लिखाई
महीने दो महीने के लिए,
खेलने–कूदने–खाने के लिए
बाज़ार नाना जी के संग
जाने के लिए,
हंसने के लिए,
मुस्कुराने के लिए,
झगड़ने के लिए
भगाए जाने के लिए,
अगली छुट्टी मे
फिर आने के लिए,
दो पैसे की ice–cream
खाने के लिए,
हिचऊआँ खींचने के लिए,
गुल्लर के नीचे सोने के लिए,
टंकी मे हल के नहाने के लिए
पानी हीड़ने के लिए
और डांट खाने के लिए,
कभी कुओं पर जाकर
बैठने के लिए,
थूंककर गहराई नापने के लिए,
Carom–board खेलने
और Mario खेलने के लिए,
हम मशीनी हकीकत से
दूर होते थे,
असली चीज देखने के लिए,
जिंदगी को तरोताजा करते
नई सांस भरते
हौंसला भरते आगे बढ़ने के लिए।
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