Friday 25 June 2021

वधु चाहिए

करनी खोटा पानी बा
मन मे हेमा मालिनी बा,
सूरत चाहि चंदन के
रहे पढ़ाई लंदन के,

नोट गिने के काम रहे
सरकारी आराम रहे,
लाखन मिले दहेज मे
फूल गुलाब के सेज मे,

सास-ससुर के बिटिया हो 
रहे बराबर किटिया हो,
गुण हो छत्तीस परकारी
रकम-रकम के तरकारी,

इंजीनियर-डॉक्टर बनल रहे
बैंक अकाउंट भरल रहे,
दिनो-राते जगल रहे
ठाठ मे हमरे लगल रहे,

बाप के बंगला गाड़ी हो
१०० फुट के त केवाड़ी हो,
मोदी से पहचान रहे
गांव-घरे मे नाम रहे,

पूजा करे बिहान मे
राम रटा दे गाने मे,
छोट-बड़ा के लाज करे 
बोलत के भी लिहाज करे,

सास-ससुर से ढकल रहे,
पल्लू सर पर चढ़ल रहे
बहरिन से मुंह खोले,
हम से पहले बोले ना

जींस भी पहने आवत हो
पर साड़ी ओके भावत हो, 
खाना बनावे छप्पन भोग
दूर भगावे बहत्तर रोग,

जात-बिरादर ऊँचा हो
तनखों ऊँच न नीचा हो,
चाल-चलन मे ठीक रही
तो हमरे खातिर नीक रही।

Thursday 24 June 2021

काम

कामोदिप्ति,
कामोतृप्ति, 
काम कामना,
पुनरावृति।

काम भुलाए
कामकाज को,
काम छुपाए
रामराज को।

राम:शक्ति,
राम:भक्ति,
राम काम की
अंतिम मुक्ति।

Tuesday 22 June 2021

पागल

वह लड़ लेती अकेले 
दुनिया से, समाज से,
पर डरती है जब सोती,
कमरे के अंधकार से।

बत्ती जलाकर सोती 
अपने कमरे मे,
और दरवाजे को 
आधा खुला रखे वो।

वो डर जाती है
चिल्लाने वाली आवाज से,
वह सहम-सी जाती
कांपते कायाकल्प से।
वह डरती रही हमेशा
जब जान कुछ ना पाती,
वह डरती रही उसीके 
चेहरे कि देख लाली।

वो डरती रही 
‘शिबू’ के आने से,
अपनी गाड़ी जलाने से,
घर फूंकने से,
पर्दे जलाने से 
टीवी पटकने से,
थाली फेंकने से,
चाकू उठाने से,
कैंची उठाने से।

वह डर रही ‘शिबू’ से
शिबू’ को बचाने को,
वो डरती ‘शिबू’ के
डर को छुपाने से।

वो डर रही थी पल-पल,
‘शिबू’ के पागलपन से,
और ‘शिबू’ बना रहा पागल 
उसको डराने को।

‘शिबू’ डरा हुआ था
डर के चले जाने से,
‘शिबू’ पागल बना था
‘शिबू’ को बचाने को,
सब डरे रहे थे ‘शिबू’ से
‘शिबू’ को बचाने को।

Sunday 13 June 2021

रात की बात

कल रात तुमने
नहीं की बात,
उसके पहले वाली भी, और 
बहुत सी रात। 

कि तुम कहती रही, 
यही बात पर बात 
की तुम्हें करने नहीं आती बात।
 
उसे छोड़कर और बात,
उसके जैसी नहीं कोई बात,
की लाखों में है उसकी औकात।

खुद में हो तुम,
उसमें हो तुम,
वह जो कहे हैं,
वही हो तुम,
मै जो कहती हूं,
वही तो नहीं तुम।

तो क्यों करूं सांझा,
कोई भी जज्बात
कल नहीं करूंगी,
फिर से मै बात,
आज से ही, कल फिर,
और कल के बाद।

बापू

आज बापू होते तो
कहां होते?
क्या Facebook पर
post करते या
Youtube पर मंत्रणा, 
क्या अखबारो‌ं में चर्चा करते 
या चुनाव की घोषणा ? 

बापू शायद
अस्पताल मे होते
अपनी लाठी, घड़ी 
और मुस्कान लेकर,
दास्तानें और मास्क लगाकर, 
किसी मरीज की सेवा करते।

वो ऑक्सीजन के लिए 
लड़ते नहीं,
जीवन के लिए अड़ जाते,
वो दिल्ली मे नहीं
नोवाखली मे पड़ जाते।

वह राम कहते,राम गाते,
अपना कर्म करते, 
कर्मों से समझाते,
वो अस्पताल मे 
अपनाते लोगों को, 
और अपने local कर्म से 
vocal बन जाते।
 
बापू लोगों से और
Virus से जुड़ जाते,
वो  Virus की आजादी को 
साजो-सामान जुटाते,
वह पेड़ लगाते,
बकरी पालते 
आश्रम को अस्पताल और 
अस्पताल को आश्रम बनाते।

चरित्र

जब कहा था तो,
तुम थी नहीं वो, 
जो मै था।

मै था जो,
होने के लिए मजबूर 
अपनी समझ से नासमझ 
नासमझी से मगरूर।

अब बना लिया है वह 
की जो थी तुम,
समझ की सीमा में रहकर,
तो तुम हो गई हो वही 
जो मै था।

वही कर रही
जो मै करा,
वही पाने के लिए
जो मै चाहता था,
वह बेचकर, 
जिसे मैं ढूंढता था।

वह मिल जाए मुझे तो, 
मै ना ढूंढूं तुम्हे, 
वही तुम अपना लोगी,
एक बार,
मिल जाए तो तुम्हें, 
जो तुम ढूंढती हो।

रोना

तुम गिराती टेसुओं को,
खूब समझकर-जानकर,
तुम अंधेरों में गिनाती, 
प्यार का एहसान कर,
पर क्या समझती कीमतें भी 
आंसुओं की गाल पर ?

बांट देती प्रेमियों को
कला और विज्ञान पर,
वह कलह से दूर हटते,
दोष देती ज्ञान पर।

पर जानती हो राहते हैं,
प्रेम पर संसार पर।

lifestyle diseases

यह लो बैठो,
और सोचो,
कुछ ना करो, 
तुमको नई व्याधि,
तुम खुद चुनो। 

मधुमेह है, गठिया है,
अस्थमा है और अनिद्रा है।

कुछ ना करो, चिल्लाओ,
तुनक-मिजाजी बन जाओ,
दवा खाओ, दवा खाओ।

योगाभ्यास मत करो,
मत खेलो, बस खाओ,
Bibimbap, मांस-मछली,
खूब-खूब चिचोरो।

पैसे लुटाओ, 
भर्ती हो जाओ,
खून चढ़ाओ, 
एक IV चढाओ, 
फिर भाग जाओ, 
फिर आओ।

थक जाओ,लेट जाओ, 
बीमार रहो और फैलाओ, 
नए दौर की नई बीमारियां, 
तुम इच्छानुसार अपनाओ।

मधुलता

मधु की बेली,
फूलों और लताओं संग,
ढक लेती, कुम्हलाती धरती।

बिखराती सुगंध,
लुटाती मकरंद,
मधुकर और खग, 
आते और पाते आनंद 
जब तल्लीन होकर 
तुम करती कोई काम अभंग।

तुम दीदी, तुम मां,
तुम प्रकृति तरंग,
तुम बांसुरी, तुम मृदंग,
तुम तांडव,तुम बसंत,
तुम हवा और लहर।

तुम तुलसी, तुम मीरा,
तुम राम और रंग,
तुम हो विवेक तुम आनंद,
तुम धनंजय, तुम पार्थ, 
तुम सिया की वाटिका,
तुम पंचवटी, तुम सत्संग,
तुम करती जब काम अभंग।

अहम् से आत्म

अहम्  मुझमे है,
अहम् उसमे हैं,
अहम् बना है,
अहम् रहेगा।

अहम् बचायेगा,
अहम् से अहम् को,
उगम से अगम तक।

पर आत्म हम हैं 
उसका आत्म नहीं,
नहीं मेरा,
नहीं किसी का,
वह था, है और रहेगा 
वह न जीया है न मरेगा !

वह बचेगा क्यूं?
जब नहीं बचेगा,
तो बचाएगा क्यूं?
 
अहम् की लाठी
और आत्म का लक्ष्य,
साथ चलते रहो,
अहम् से आत्म की ओर!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...