फूलों और लताओं संग,
ढक लेती, कुम्हलाती धरती।
बिखराती सुगंध,
लुटाती मकरंद,
मधुकर और खग,
आते और पाते आनंद
जब तल्लीन होकर
तुम करती कोई काम अभंग।
तुम दीदी, तुम मां,
तुम प्रकृति तरंग,
तुम बांसुरी, तुम मृदंग,
तुम तांडव,तुम बसंत,
तुम हवा और लहर।
तुम तुलसी, तुम मीरा,
तुम राम और रंग,
तुम हो विवेक तुम आनंद,
तुम धनंजय, तुम पार्थ,
तुम सिया की वाटिका,
तुम पंचवटी, तुम सत्संग,
तुम करती जब काम अभंग।
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