Wednesday 31 August 2022

प्रकृति

मै अब गुनगुना लेता हूं
छत पर जाकर,
ब्रश करते पेड़ों पर
झूलती हुई चिड़ियों पर
डाल देता हूं एक नज़र,

मुस्कुरा कर गाता
हूं कोई गीत,
झूम जाता देवानंद की तरह
मै राजेश खन्ना बनकर
सिर घुमाता, मुस्कुराता,
वाह वाह करके मै
चिल्लाता, लोगों को
दिखाता और हंसाता,

मै रूसो के कहने पर
प्रकृति के पास जाता
मै खुद को
बेड़ियों से मुक्त करता
और उड़ जाता,
उड़ता चिड़ियों के
संग दूर आसमान मे
चला जाता
हवाई जहाज को उड़ाता
शरीर की
मन की लहरों मे
गोते लगाता
मै प्रकृति मे
ॐ कहकर उतर जाता,
मै ॐ बोलकर रुक जाता😁🥳

Thursday 25 August 2022

दो बातें

कर लेती तुम दो बातें
कुछ इस पल की
कुछ उस पल की,
आने वाले कुछ
कुछ बीते कल की,

मेरा मुकम्मल होता दिन
मुस्कान मेरी लटका देती
होंठों पर मधुर बोल होते
क्रिएटिविटी बढ़ा देती,
वक्त निकाल के
जो तुम भी
कुछ मेरे संग बिता देती!

तुम नहीं होगी

अबकी बार मै आऊंगा
दिल्ली झंडा लेकर,
लाल किले पर नारा
स्वतंत्रता का जमकर,
मै पैदल चलूं
तिरंगा धरकर
नई बात कुछ होगी,
पर साथ तुम नहीं होगी,

अब गुजरात के
टाउनहॉल मे
जानता खुलकर बोलेगी,
केजरीवाल से
आस लगाकर
अपना दुखड़ा रोएगी,
आयेंगी महिलाएं
आपबीती लेकर
महंगाई की,
जनजाति कुछ आयेंगे
PESA कानून
दुहाई भी,
मै खड़ा रहूंगा
झोला लेकर
पर पास तुम नहीं होगी!

मै इलाहाबाद मे
रूम किराए पर
लेकर रुक जाऊंगा,
मै पढ़ते–पढ़ते
थक जाऊंगा,
तुमको याद
कर रोऊंगा,
कोई हाथ मेरा
धर भी लेगा,
और मुझको 
ढांढस देगा,
कोई बात मेरी
सुन भी लेगा,
और नाम
तुम्हारा लेगा,
देखकर उसको 
दुख होगा,
पर मान भी जाऊंगा,
कोई और
किरण यह होगी
हर बार तुम नही होगी!

Sunday 21 August 2022

इस दशा के राम

आज मै कमजोर हूं
और मै मेरा मजबूत है
हैं मुझे दर्शन दिखाते
नाम रूपी राम,

फिर न सोया रात मै
करता नहीं कुछ काम
मन जरा विचलित रहा
धरता रहा कुछ काम
आ गए मद्धिम हवा मे
सांस वाले राम,

कुछ वीभत्स–सा
देखा जो मैने
नाक मुंह सिकोड़ कर,
दूर जाकर मै कराहा
मुख मे आए राम
दिख गए सब धाम,

आ गया आवेश मे
बहियां सिकोड़ ली,
आज मैंने हाथ उठाने
की ही मन मे सोच ली,
कातर नयन से देखकर
हाथ उसने जोड़कर
मुझको ही हरा दिया
दुश्मन के मुख के राम,

जब डरा मै प्रश्न से
कलम भी थम–सी गई,
धनुष–सा टूटे परस्पर
Exam वाले राम!



Saturday 13 August 2022

आराम

अब क्या ठहरें
और कहां रुकें
किस छत के नीचे
लेटें हम?
किस बहन की
उंगली थाम चलें
और किस मां के हों
बेटे हम?
किस बिस्तर
हम पलट गिरे
और किस पंखे को 
on करें?
हम कितना खाना
दबा के खाएं
किसकी बात
लपेटे हम?
इक वनवासी की
बात सुने 
जब चल निकले हैं
राम के धाम,
तब किसे अयोध्या 
बोले हम?

एक दिन का घर

सुबह आया 
फिर चला गया
राखी बंधवाकर
निकल गया,

आया भाई
बड़ा कहने पर
रहा रुका बस
घंटे भर,
हमारे एक दिन का घर!

Friday 12 August 2022

कच्ची सड़क

ये गांव की कच्ची सड़क
जाती है क्या मेरे स्कूल तक,
लद के आते हैं क्या इसपर
बच्चे दुपहियों पर,

क्या बातें करते हैं इसकी
कुछ बच्चे स्कूल जाते वक्त,
इसपर साइकिल चलाती हैं
बच्चियां खिलखिलाकर?

क्या यही वो घंटा होता 
जब बच्चे खुश होते
दिन मे इक बार,
जब टीचर और मां बाप से
कुछ पाते समय वो बचकर,
आम तोड़ने जाते हैं
नहाने नहर की डंडी धर?

ये कच्ची सड़क न होती तंग
और फूल बिछाती राहों पर,
बरसात इसे आ ढक लेती
और खुल जाती यह आने पर,
यह पतली–सी कच्ची डगर
आज ट्रेन से जो आ गई नज़र!

Thursday 11 August 2022

रक्षाबंधन

उलाहना देती बहन 
आ गया रक्षाबंधन,
आ नहीं सकते हो अब
आओगे तुम और कब?
जब हो बगल मे घर के
या जब होगे स्वर्ग मे,

जब थी दीवाली आ गए
जब था दशहरा चल दिए
नवरात्र मे व्रत रह लिए
राम जन्म पर गा लिए
और जन्माष्टमी दही खा लिए
होली को तुम मुंह रंगे और
बकरीद पर तुम मर मिटे,

आते नहीं हो घर की जब
मै भूख मे बैठी रही,
मैने सजाई थाल और
घी के दिए पकड़ी रही,
तो क्या रहा बंधन
और क्या रहा वह मन
जब आए नही हो तुम
आओगे कब फिर तुम?

Wednesday 10 August 2022

मन का

मन का हो तो खाओ
या भूखे रह जाओ,
मन का हो तो जाओ
या घर पर जाके सोओ,
मन करे खेलो खेल
मन करे तो गाना गाओ,
मन करे तो प्रेम करो
मन करे बात करो,
मन करे तो झूम के नाचो
मन करे चुप बैठो,
मन करे तो मच्छर मारो
मन करे तो शेर सुनाओ,
मन करे तो मन की बोओ
मन करे तो मन से काटो,

मन की सुन लो
मन खुश कर लो,
मन जो बोले वो देखो
पर कुछ देर ठहर कर
मन को भी तो देखो!

Tuesday 9 August 2022

जहां से आया था!

मै वहीं जा रहा हूं 
जहां से आया था,
वही पेड़ है, वही फर्श है
जिसपर मां ने सुबह
पोछा लगाया था,

वही पढ़ाई कर रहा हूं
जो समझता था धीरे–धीरे,
वही लोट कर पढ़ता हूं
सो जाता धीरे–धीरे,
मां आकार खाना देती
मै खा लेता कुछ देखते हुए
मै थाली रख आता आंगन मे
पानी पीता बात करते हुए,
मै आज फिर से वही खा रहा हूं,

मै वही पेड़ों के झुंड
मे सामान्य–सा 
दौड़ जाता हूं,
आसमान की ओर देखता
सो जाता हूं,
मै ऊपर की झुरमुट मे
खो जाता हूं,
मै आज फिर सांसें मे
राम बसाता हूं!

मै बबिता के साथ
कहानियां 
अंधेरा देखकर बनाता हूं
मै लाइट आने पर 
जोर से चिल्लाता हूं,
लाइट चले जाने पर
बबिता के घर दौड़ जाता हूं
मै पापा की चारदीवारी
को फिर से लांघ जाता हूं
मै चाचा और चाची के घर
खाना खाता हूं,
विक्रम के साथ 
होमवर्क करता हूं,
दादाजी के साथ नहाता हूं,

हां मैं फिर से बच्चा बन जाता हूं!

कौन है?

मैं हूं या राम हैं?
जो बोलते हैं
करते हैं,
रखते हैं इच्छाएं,

जो रोक लेते मन
करते यत्न कितने सारे
मांग कर खा लेते
और मांगते उधार,
बंधे हुए हैं सबसे
और सबके ही आकार!
मै हूं या राम हैं?

आते–जाते, खाते–पीते
रूठते–मनाते,
मन मे ख्वाब सजाते
मिलते–बिछड़ते,
पांव छुते और
नम्र शीश झुकाते
मैं हूं या राम हैं?

घूमते टहलते
गंगा मां का दर्शन करते
घाटों पर लेट जाते
और करवट बदलते
धोती कुर्ता पहनते उतरते
तृप्त और तृष्णा को ढोते
मैं हूं या राम हैं?

मै कर रहा हूं
कैसे कहूं
जब करने वाले राम हैं
मै सोच रहा हूं 
क्या सोचूं
जब भरने वाले राम हैं?
मै मुस्कुराऊं 
और टाल जाऊं कैसे
जब हंसने वाले राम हैं?
मै खुद को जान पाऊं कैसे
जब समझ का मतलब राम हैं?
मै राम धाम जाऊं कैसे
जब चलने वाले राम हैं?
मै ढूंढूं कैसे किसको पूछुँ
जब ढूंढने वाले राम हैं?
मन पर काबू पाऊं कैसे
जब चिल्लाने वाले राम है?
मै शब्दों को पिरोऊ कैसे
जब पढ़ने वाले राम हैं!
मै राम नाम धाऊं कैसे
जब धरने वाले राम हैं!


Sunday 7 August 2022

6 अगस्त

अब तो 6 अगस्त
और 9 अगस्त भी
एक तारीख की तरह
आते और जाते हैं,

इतवार और सोमवार
एक जैसे है सब,
सब सिलेबस 
खत्म करने के 
कुछ और घंटे 
बन जाते हैं,
और लगी रहती है
एक रेस वक्त के साथ
बस राम की पतवार
साथ मे है साथ,
राम का नाम है साथ!

Friday 5 August 2022

communication

मै तुम्हे सबकुछ
बताना चाहता हूं,
उंगलियों को रख
तुम्हारी उंगलियों मे
हर हर्फ को छूकर
पढ़ाना चाहता हूं,

तुम देखती होगी
कई episode
किस्से और तजुर्बे 
मै दिव्यकीर्ति को
सुनाना चाहता हूं,

आज लल्लनटॉप पर
वो कह रहे हैं,
DU मे बहसों के
दीवारें ढह रहें हैं
मै हाथ धर कर
अब तुम्हारे
उन गली मे
बिखरे टुकड़ों को
उठाना चाहता हूं,

मै फिर से फूलों को
तुम्हारे साथ चलकर,
देखकर बातें 
बनाना चाहता हूं,
तुम सो गई
मै सो गया हूं,
बातें करते
अब नींद मे 
तुमको बुलाना चाहता हूं!

Monday 1 August 2022

किष्किंधा

हम किष्किंधा के ध्यानी
हम पंचवटी के वासी,
हम उड़ने वाले के पुत्र
हम जंगल के पथगामी,

हम रघुनाथ के सेवक
हम सिया राम के चातक,
हम पूंछ जलाने वाले
हम मंगल नाम के वाचक,

हम कंद मूल खाते हैं
हम नीचे सो जाते हैं,
हम खाकर हवा जी लेते
हम पानी के पूजक,

हम नम्र सदा विनीत
हम गाते भ्रमण मे गीत
हम चूस लेते मकरंद
हम किष्किंधा के मीत!

छलिया

ये मिट्टी की पुट्टी
इधर उधर ढुल जाती
कुछ ले आती
सागर मे गोते खाकर
खर–पतवार, शैवाल,

बार–बार कुछ खाकर
उल्टा–सीधा झंखाड़,
उल्टी कर देता कहीं भी
और रहता उसे निहार,

ये छलिया
60 किलो का भार,
इसके नखरे अपार
ये छलिया
खुद का ही मझधार!

बयार

मेरे नथुनों को छूकर 
हल्के से भीतर जाती,
हर मोड़ पर थोड़ा
रुकती, ठहर जाती,

ये ठंडी–सी बयार
बड़ी मद्धिम–सी धार,
सुर मे गुनगुनाती
गले से उतर जाती,

ये राम नाम की बयार
जीवन को तार
हमे झूला झुलाती
गोद मे उठाती और
जीवन है जब तक
आती और जाती
ये राम नाम की बयार!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...