दिल्ली झंडा लेकर,
लाल किले पर नारा
स्वतंत्रता का जमकर,
मै पैदल चलूं
तिरंगा धरकर
नई बात कुछ होगी,
पर साथ तुम नहीं होगी,
अब गुजरात के
टाउनहॉल मे
जानता खुलकर बोलेगी,
केजरीवाल से
आस लगाकर
अपना दुखड़ा रोएगी,
आयेंगी महिलाएं
आपबीती लेकर
महंगाई की,
जनजाति कुछ आयेंगे
PESA कानून
दुहाई भी,
मै खड़ा रहूंगा
झोला लेकर
पर पास तुम नहीं होगी!
मै इलाहाबाद मे
रूम किराए पर
लेकर रुक जाऊंगा,
मै पढ़ते–पढ़ते
थक जाऊंगा,
तुमको याद
कर रोऊंगा,
कोई हाथ मेरा
धर भी लेगा,
और मुझको
ढांढस देगा,
कोई बात मेरी
सुन भी लेगा,
और नाम
तुम्हारा लेगा,
देखकर उसको
दुख होगा,
पर मान भी जाऊंगा,
कोई और
किरण यह होगी
हर बार तुम नही होगी!
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