Friday 6 October 2017

शहर की हवा

ये जो तुम्हारा, नया-सा शहर है,
ये जो तुम्हारा, बड़ा-सा शहर है,
तुम्हारी दुआ को, रवा मिल गयी है,
तुमको शहर की, हवा लग गयी है।


तुम्हारे lipstick पे बुर्क़ा नहीं है,
आरज़ू मे तुम्हारी, गिला भी नहीं है,
तुम अपनी अदा से चिढ़ाने लगी हो,
तुममे कोई 'कंगना' बस गयी है,

तुमको शहर की हवा लग गयी है।

वक़्त-बेवक्त भी खाने लगी हो,
काँटे औ' चम्मच चलाने लगी हो,
अपने से खाना बनाने लगी हो,
तुमको liberating सज़ा मिल गयी है,

तुमको शहर की हवा लग गयी है।

यूँ ही घूमने को निकल जाती हो,
खेलती भी हो तुम और लड़के पटाती हो,
तुम्हारी घुटन ख़ुदख़ुशी कर रही है,
तुमको तो ख़ुद मे वजह मिल गयी है,

जैसे हसरत को मेरी, दुआ लग गयी है।
तुमको शहर की हवा लग गयी है।।

Tuesday 3 October 2017

मुक्ति की आकांक्षा

चिड़िया को लाख समझाओ,
की पिंजरे के बाहर आओ,

पर वो कहेगी, 'नहीं!'
मैं यहीं पर हूँ सही।

मेरा पिंजरा, 'सोने का है !'
फिर काहे को रोने का है ?
यहाँ सभी सुख-चैन है,
AC, fridge, Cooler-fan है

यहाँ बैठे बिठाए खाना है,
बस एक चोंच ही हिलाना है,
हर बख़त पानी कटोरा है भरा,
मीठा स्वाद है उसका, बहुत ही सुनहरा!

पर बाहर तो ताज़े फल हैं
और 'सुमन' के दाने है,
पानी के झरनो मे घुलते
तुम्हारे कलरव-गाने हैं!

और खुली हवा की साँस है,
आज़ादी का अहसास है।
'नहीं ! बाहर ज़िंदगी बकवास है,
परीक्षा है हर घड़ी, हर दिन एक class है।

यहाँ छोटा-सा मेरा झूला है,
वो मेरा ख़ुद का अकेला है,
सीख़चो का पहरा कड़ा है,
नहीं जान का ख़तरा बड़ा है!

बाहर पेड़ की ऊँची फुलगियाँ है,
जहाँ से दिखती सारी दुनिया है,
डालियों पर फुदकना है,
सभी के संग चहकना है!

और तुम्हारा मन था उड़ने का,
किसी के साथ उड़ने का,
हाँ ! पर मेरे पिता का नहीं है,
और वो जो भी हैं, सही हैं।

उन्होंने ही तो उड़ना सिखाया था,
पंखों को खुलना सिखाया था,
आँधी-से, थपेड़ों-से जब डगमगायी,
थामकर ऊँगली, सम्भलना सिखाया था।

हाँ................! सिखाया तो था !

सीख नहीं पायी मै, उड़ने की कला
जो कुछ भी सीखा, बड़े धीमे से सीखा,
गा नहीं सकती कोई 'रामकली',
अदनी-सी चिड़ियाँ मै, नहीं 'श्यामकली !'

और.........
मेरा भाई भी तो है,
वो उड़ना जानता है,
वो उड़ेगा मेरी तरफ़ से.......

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...