Sunday 30 June 2019

दोस्त

अंग्रेजी बोलता है
फर फर मेरा दोस्त
विदेश घूमता है
फर फर मेरा दोस्त
पैसे उड़ाता है
फर फर मेरा दोस्त
दारू पीता है
फर फर मेरा दोस्त।

मुझसे आगे चलता है
 हर पल मेरा दोस्त
फोटो फेसबुक पर डालता है
हर पल मेरा दोस्त

बहुत मजे करता है
हर पल मेरा दोस्त
कुछ भी ऐब नहीं है
बड़ा सही है मेरा दोस्त

मेहनत है सब करते
पसीना खूब बहाते
चुटकी में हल करता
हर वही है मेरा दोस्त।

मुझको जानता नहीं वह
पर प्यार से मिला था
पुचकार कर दो मिनट
मुझसे गले लगा था

अलविदा कहा था
मैंने नजर झुका कर
रुतबे और दया मे
बड़ा धनी है मेरा दोस्त।

2 मिनट नहीं
2 जिंदगी गुजारी
बीने थे मीठे अमले
बइरी कि धर मुँँडारी

उंगली पकड़ के जिसकी
लड़-भिड़ गई थी सबसे
मिल कर रखे थे दिये
दिवाली बना घरौंदे

रंग लगाकर गालो
जलाई साथ में लड़ियाँ
फोड़े नहीं पटाखे
पर मुस्कुराए बढ़िया।

सड़क पर गई
सब्जी का लेकर थैला
खाए गोलगप्पे
कलुआ के बाई का समोसा

उसकी न याद आई
किया भी नहीं फोन
जिस पर सितम बड़ा है
रो रही है मेरी दोस्त

वह छूट गई है पीछे
वह नहीं है मेरी दोस्त
जिससे मिली नहीं हूँँ
अब वही है मेरा दोस्त

जिस से मिली भी नहीं हूँँ
क्या वही है मेरा दोस्त ?

अरसे की याद

एक अरसा हुआ
तुमको देखे हुए।

की आंख का काजल
अभी भी फबता होगा
हर सुबह तुम जाती होगी
तो lab तुम्हारी खुशबू से
अभी भी महकता होगा।

तुम्हारे काले से चेहरे पर
काला-सा काजल,
काली नोटबुक
और काली सी पेन

कई wristband और
काला ही phone
काला चश्मा और
काली ही frame

नजरबट्टू बनकर
असर करती होगी।

एक अरसा हुआ
तुमको देखे हुए।

कि तुम्हारी हंसी से
माहौल खूब सजाता होगा,
चौड़ी आंखों से धीरज
अब भी डर जाता होगा।

तुम्हारे गुजरने से
खुशी अभी भी टपकती होगी
तुम्हारी झपकी पर
किसी की नजर रूकती होगी।

एक अरसा हुआ
तुमको देखे हुए।

अग्नि परीक्षा

सिन्हासनरूढ़, गर्वित-राम,
सिर मुकुट, तिलक चारू
चारक-सेवक, अनुज संगत
छप्पन-भोग,आहार

पीत-वसन आभूषित काया
तृप्त-नयन, कौशलचंद छाया
पर सीता हिय-बसत
न किंचित मन अकुलाया

क्या कर दे प्रमाण
कांता-प्रेम अपार का
बिरह-विच्छेद उर-संसार का

कैसे दे राम अग्नि परीक्षा ?

धनुष धर  स्पर्धा मे
आया कर्ण बिन न्यौता के
अनंत-प्रशंसा अर्जुन की
सुनकर आगंतुक जनता की

नहीं मन राज्य का लोग भरे
बस कौशल का भुज कोष लिए
लेने केवल खेल में भाग
मन में भरा सहोदर सम्मान

पर क्या कर दे प्रमाण
साहित्य-कला के कुल का
जाति के निर्मूल का,
क्या हेतु है प्रतिस्पर्धा का
जो प्रेम बढ़ाए मानव का

कैसे दे कर्ण अग्नि परीक्षा ?

Friday 21 June 2019

हद

मुझे इंतज़ार है,
तुम्हारी बेक़रारी की हद तक।

तुमको हो फिर यकीन
मेरी कसक को सुकून,
मुहब्बत रिसे आँख से
बनके कतरा लहू,

मुझे है ऐतबार
मेरी ज़िद की वजह तक।

मुझे है इंतज़ार............

तुम ना ढूँढो कोई
हमसफ़र मेरे बाद,
घूमो कहीं रात भर
हाथ मे हाथ,साथ-साथ,

मुझको हो ना गिला,
तुम्हारी अधूरी नज़र पर।

मुझे है इंतज़ार,
तुम्हारी बेक़रारी की हद तक।






माँ का जगराता

भैया की आवाज़ है मीठी,
माँ के जगराते मे
भजन उसने गाया,

सबने सुना
हर मन भाया,
माता की उपासना कर
उनका आशीष पाया,
रात भर हर एक जगा
माता को जगाया।

सबका जगराता,
माता का जगराता।

घर पर भाई आया,
मम्मी को ख़ूब सुनाया
उनकी नज़र को झुकाया
उनको उनका काम सिखाया।

माँ डर गयी,
तिरस्कार से सहम गयी,
कल चला जाएगा भाई
यही सोचकर ठहर गयी,
पिता की दो बातें भी सुनी,
कुछ कड़वे घूँट पी गयी।


बेचैनी में रात भर जागी माँ
सब सोए, माँ जागी
यह हुआ बस
माँ का जगराता।






















शादी

जगराते में जागकर
रात भर नाचा,
दूसरों को देखकर,
ख़ुश होती बेटियाँ।

भैया ने गाया,
छोटे ने गाया,
माता की चौकी ने
सबको झूमाया,
तुम होते तो........
आँखों को सपना दिखाया
चौड़े मुँह हँसाती मौसियाँ।

नानी को सहारा दिया
आगे बढ़ाया
गठिया का दर्द भुलाया,
ना छूटा कोई,
सबको खाना खिलाया,
नज़र ना मिलायी
पर हाथ बटाया,
स्वागत करती मामियाँ।

किलकारियों से
आँगन गुंजाया,
सज-धज के
सबको रिझाया,
छोटे बच्चों से
Frog-race लगाया,
नन्हें क़दम बढ़ाती बच्चियाँ।



Thursday 20 June 2019

विच्छेद

चित्रण:श्वेता
मटकी भरे माखन
फूल गली उपवन
पगडंडी पर नज़र
अनसुना मुरलीधर

ये राधा किसी और की।

मायूस धरी मुरली
नयन बिन लावण्य
शून्य-स्तब्ध-चेतन
राधा भूली मोहन

ये राधा किसी और की।

हाथ प्रिय कंगन
माँग धारे परधन
देर भयी गिरीधर
मूरली धारे अधर

अब राधा बस नाम की।

Wednesday 12 June 2019

सब सामान्य

हमारा लड़ना सामान्य।
मेरा डरना सामान्य।
मेरा कहना,
तुम्हारा बिदकना सामान्य।

मेरा सत्य,
तुम्हारी हिंसा सामान्य।
मेरा ह्रदय,
तुम्हारा पैसा सामान्य।

मेरा cool,
तुम्हारा झूठ सामान्य।
दिन में सोना,
रात में पढ़ना सामान्य।

अब डर नहीं होगा,
क्योंकि हर शिकायत ,अब हो गयी सामान्य ।

बंगाल में चुनावी हिंसा,
दीदी का मांगना पैसा सामान्य।
मोदी का इंटरव्यू सामान्य।
रविश की बौखलाहट सामान्य।

कन्हैया के भाषण सामान्य।
अरविंद की झुंझलाहट सामान्य।
अब चिढ़ नहीं होगी, क्योंकि बर्दाश्त की राहत सामान्य।

लड़कियों की scooty,
हाफ पैंट मे बाहर सामान्य।
लाइब्रेरी की ठंडक और
लिंगानुपात सामान्य।

CBSE की topper और
non-medical की चाहत सामान्य।
मुहल्ले की दीदी की
मुस्कुराहट सामान्य।

दोस्ती की ad,
नए चेहरों का स्वागत सामान्य।
item-song के परे,
एहसान की मुहब्बत सामान्य।

अब झिझक नहीं होगी,
क्योंकि लड़कियों की आहट सामान्य।

मुस्कुराहटों पर राहत,
ठहाकों की बगावत सामान्य।
तुम्हारी थकावट,
मेरी गर्माहट सामान्य।
तुम्हारे होठों की झुकावट,
मेरी सांसो की हिमाकत सामान्य।

अब कसक नहीं होगी,
क्योंकि पाँचों इंद्रियों की लगावट सामान्य।

चलने में राहत,
खाने में बेस्वाद सामान्य।
खाना बनाना
और दूध पीना
फिर मुझको बताना सामान्य।

नजर चुरा कर,
खुद की नजर से
इंतजार सामान्य।
गुस्से की चासनी मे,
फटे हुए दूध का
छेना-सा उबार, प्यार सामान्य।

अब तकलीफ नहीं होगी
क्योंकि छुपा इजहार सामान्य।

द्रोणाचार्य

मेरे मन मे बसी है एक मूरत
तुम्हारे से मिलती है एक सूरत
वही मेरे दिल का द्रोणाचार्य है,
'एकलव्य' के समझ का वही ज्ञान है।

एकलव्य तो बना था, बड़ा ही धनुर्धर
गुरु को समझ कर पत्थर की मूरत
किया उसने आप ही अभ्यास निरंतर
मेरे बहस मे की वही बिंदु हो तुम
हर पल मुझे बस यही ध्यान है।

एक आँख बंद कर,
साँस भीतर बाँध कर,
मन मे उनको ध्यानकर,
लक्ष्य अव्वल जानकर

मै भी आँखें संकुचित कर
बातें तुम्हारी सोचकर,
तर्क रखता हूँ परस्पर
अपने सच को मानकर,

वाम मे धरकर धनुष
वज्र बाहु तानकर,
शर और मिलाकर प्रत्यंचा
सीधे से संधान कर,

मै हूँ फिर करता प्रकट
प्रश्न, प्रत्युत्तर जानकर,
चेहरे पर देखे विजय के
भाव या मुस्कान भर,

चरण भूमि रोपकर
कान तक ले खींचकर,
छोड़ देता वह अंगूष्ठा
एक बारी भींचकर,

विचरोत्तेजक, भावतिरेक
भावना में डूबकर,
मै तुम्हारा हाथ धरता,
तिरता हूँ सच ढूँढकर

मुस्कुराकर नमन करता
गुरु प्रतिमा को मानकर,
लक्ष्य भेदा अचूक ख़ुद ही
पर गुरु-कृपा ही जानकर,

मै भी मानूँ द्रोण तुमको
मुस्कुराता अंत मे,
मेरा सत्य मुझको लुभाता
भव-सागर अनंत मे,

पर अँगूठा दान लेकर
छोड़ देना व्यर्थ मे,
'द्रोण' करते हैं युगों से
गुरु-महिमा कलंकित स्वार्थ मे।

टूटी चप्पल

एक पल आवेग मे
दौड़ भागा वेग से,
हाथ आया कुछ ना मेरे
टूट गयी चप्पल !

एक बाजु टूँट गयी
दाहिने पाँव की,
पैर उठता भी नहीं था
घिसटती थी चाल ही।

मन मे कसक थी छूट की
आँख गीली हो गयी,
मन मे फिर आक्रोश आया
पर बाँह ढीली हो गयी।

पक्की सड़क को छोड़कर
गाँव की कच्ची धरी,
धूल-सज्जित हो गयी
चप्पल नवेली खेत की।

पर तो चप्पल था सहारा
एक अकेला, राह मे,
छोड़ पाता फिर भला क्यूँ
काँटे-कंकड़ झाड़ मे।

थी गनीमत भी ना इतनी
कीचड़ भी आया राह मे,
दौड़कर छलाँग मारूँ
अब कैसे अनुपात मे ?

इस तरफ़ भी, उस तरफ़ भी
कंकड़ पड़े थे चोख से,
सोच भी सकता नहीं था
चप्पल बिना मै कूद भी !

अब विकट गंभीर उलझन
किस तरह लाँघूँ समंदर,
क्षुद्र भी ना धर सकूँ मै
रूप सुरसा के विवर पर।

पर किरण की एक बिंदु
चमकती उस ओर से,
मानो मुझको दी दिलासा
जब तम घिरा घनघोर से।

उसने कहा कीचड़ नहीं ये
मिट्टी-पानी ही तो है,
धूल जाएगा एक बारी
जान पहले तो बचे।

मै निडर, संकोच लेकर
पैर मिट्टी मे रखा,
टूटे चप्पल को बचाना
ध्यान मन मे ना रखा।

चिपक गयी चप्पल
हो गयी अटल,
मैंने बायाँ पैर झटका
पार किया दलदल।

मै तो चल आया निकलकर
छूट गयी चप्पल,
अंत मुझको काम आयी
टूटी हुयी चप्पल।

Passenger

सबको पहले राह देती,
ख़ुद खड़ी वो wait करती
जिस मील को देखा कहीं भी,
वहीं ज़रा विश्राम करती

हर राही लेती
सबको सीट देती,
सस्ती, अंजान
देर अबेर चलती,
नि:स्वार्थ passenger

Thursday 6 June 2019

Facebook की photo

 तुम्हारी facebook की फोटो
अब खिल गई है
आंखों की चमक
बिल्कुल नई है ।

किसे देखकर
तुम मुस्कुरा रही हो ?
किसे सोचकर कैमरे से
नजर मिला रही हो ?

तुम्हारी रूखी रंगत
अकेले की संगत
छुपी बैठी आदत
मायूसी वाली सीरत

इन्हें छोड़कर
तुम बिखर जा रही हो।

बाल तुमने अपने
सलीके से बांधे
चटख रंग कुर्ता
चुने खुद से जाके

तुम aroma लगाकर
गमक जा रही हो।

तुम्हारी तरफ है
खुशी वाला कोना,
Chilli Restaurant मे
दोस्तों संग रोना।

भीड़ मे अलग-सी
नजर आ रही हो,
किसे सोचकर
तुम सवंर जा रही हो ?

किरन

न चेहरा, न पहचान
कुछ दिनों की दुआ-सलाम
संभली-समझदार
हर स्थिति में तैयार।

बिगड़ने न दे
कोई भी बात,
समझाए मुझे
मिनटों मे जज्बात।

नाजुक से मसले पर
धीरे से बोले,
अगर टूटे हिम्मत
तो बाजू पकड़ ले।

इतिहास की जानकारी
नेहरू-इंदिरा संवाद,
जाने देश-दुनिया
Thehindu के साथ।

झूठ और सच,
समन्वय के  मध्य,
हल्के से रक्खे
अहिंसा से सत्य।

Left और Right,
दोनो को टटोलती
अटारी और बाघा के
अंतर उधेड़ती।

समय को समझकर,
करती है vote.
गंगा-सी निर्मल
करता मै note.

मेरे धैर्य से मेरा
परिचय कराती,
आशा की किरन
तुम खुदाई, खुदा की।

Respect

Respect me,

As a blade of grass,
which you tread barefoot
in the morning.

As cat or dog,
whom you share food
without mocking.

As a fly or an ant,
which you stalk
creeping and blocking.

As a bird,
who always coo-s in shrubs
in garden you are passing

As an insect,
you did not tramp
trodding on your walking

Respect me,
as an idea,
you cherished
always thinking.

As a lesson learned,
remembering
last time ranting.

Respect me,
as a book,
you smelled and
kept without reading.

As a flower,
you found
in the book of sibling.

As a pen,
you chewed
while writing, contemplating.

Respect me,
Neither as an authority
Nor for seniority,
 Either obligation
or responsibility.

Respect me,
as one of His
Pristine creativity.

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...