सिन्हासनरूढ़, गर्वित-राम,
सिर मुकुट, तिलक चारू
चारक-सेवक, अनुज संगत
छप्पन-भोग,आहार
पीत-वसन आभूषित काया
तृप्त-नयन, कौशलचंद छाया
पर सीता हिय-बसत
न किंचित मन अकुलाया
क्या कर दे प्रमाण
कांता-प्रेम अपार का
बिरह-विच्छेद उर-संसार का
कैसे दे राम अग्नि परीक्षा ?
धनुष धर स्पर्धा मे
आया कर्ण बिन न्यौता के
अनंत-प्रशंसा अर्जुन की
सुनकर आगंतुक जनता की
नहीं मन राज्य का लोग भरे
बस कौशल का भुज कोष लिए
लेने केवल खेल में भाग
मन में भरा सहोदर सम्मान
पर क्या कर दे प्रमाण
साहित्य-कला के कुल का
जाति के निर्मूल का,
क्या हेतु है प्रतिस्पर्धा का
जो प्रेम बढ़ाए मानव का
कैसे दे कर्ण अग्नि परीक्षा ?
सिर मुकुट, तिलक चारू
चारक-सेवक, अनुज संगत
छप्पन-भोग,आहार
पीत-वसन आभूषित काया
तृप्त-नयन, कौशलचंद छाया
पर सीता हिय-बसत
न किंचित मन अकुलाया
क्या कर दे प्रमाण
कांता-प्रेम अपार का
बिरह-विच्छेद उर-संसार का
कैसे दे राम अग्नि परीक्षा ?
धनुष धर स्पर्धा मे
आया कर्ण बिन न्यौता के
अनंत-प्रशंसा अर्जुन की
सुनकर आगंतुक जनता की
नहीं मन राज्य का लोग भरे
बस कौशल का भुज कोष लिए
लेने केवल खेल में भाग
मन में भरा सहोदर सम्मान
पर क्या कर दे प्रमाण
साहित्य-कला के कुल का
जाति के निर्मूल का,
क्या हेतु है प्रतिस्पर्धा का
जो प्रेम बढ़ाए मानव का
कैसे दे कर्ण अग्नि परीक्षा ?
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