Sunday 31 October 2021

लाठी

लाठी एक है बहुत सहारा
लाठी लेकर चलता ग्वाला
लाठी लेकर आए बाभन
लाठी लेकर चलते ‘बापू’

लाठी बड़े है काम का
लाठी सबके नाम का
लाठी सबकी अलग–अलग
लाठी से ही कार्य– कलाप

पर लाठी लगे कुरूप
ना ही रंग न रूप
लाठी उसकी गंदी है
अपनी लाठी चंगी है

मै अपनी लाठी
क्यूं तोड़ ना दूं,
क्यूं कुरूप के
संग चलूं?

पर लाठी टूटे
टूटे गर्व,
लाठी टूटे
टूटे तन–मन,

अब लाठी जोड़ के
चलना है,
लाठी पकड़ के 
बढ़ना है,

अपनी लाठी
अपने हाथ,
अपनी लाठी
अपना साथ।



Thursday 28 October 2021

चाभी वाला बंदर

चाभी वाला बंदर
चाभी देने से चलता है,
अभिमानी वाला बंदर
गाली देने से चलता है,

चाभी वाला बंदर
कुछ देर चलता है
और बंद हो जाता है,
अभिमानी वाला बंदर
चलते हुए गाली देना
सीख जाता है,

और अब वो खुद को
गाली देकर आगे चलाता है!

कल

कल जो हुआ
वो भूल कर
आगे बढ़ो!

कल जुबान चली
बस मे न होकर
खुद–ब–खुद,
कल कह दिया
जो न सोचा
शब्द–ब–शब्द,
कल के शोक को
दफन कर आगे बढ़ो!

कल तुम थे अज्ञानी
और मै था अभिमानी
तुम चुप ही रहे 
अपने अभिमान मे
मै महटिया भी गया
अपने अज्ञान मे
कल का नंबर लगा
फिर से बातें करो!

कल तो डर था बहुत
हल्की–सी बात का,
कल तो थे तुम खफा
कुछ बड़ी बात का,
आज छोटी–सी
लगती है,
बात वहीं रह गई
साथ आई नहीं
कल को पर्दा लगाकर
रुखसत करो,
कल को भूल ज़रा
और आगे बढ़ो!

Wednesday 27 October 2021

राधा

मुरली की धुन से
राधा है थोड़ी नाराज़,

जो बजते ही वो
आ जाती थी
काम–काज सब छोड़ के,
जो बजते ही वह
खो जाती थी
सखियों से रुख मोड़ के,

आज उसी मुरली से डाह मे,
है मुरलीधर से दूर वही
उसकी धुन को शान्त करे
की मुरली है किस काम की?

मोहन फिर भी मुरली वाला
बजा रहा है मुरली को,
अपने चेतन को संवारता
और पुकारता राधा को!


Saturday 23 October 2021

Princess

तुम कहती हो तो
सच लगता है,
तुम कहती हो तो
लगता है असर होगा,

तुम बैठी हो तो
सब शांति–से
अपने ही घर पर
कुर्सी के बिना
जमीन पर बैठ जाते है,

तुम चुप हो आज तो
सब मौन हैं और
शांत–चित्त हैं,
बिना कहे भी 
बोल सकते हैं
ये आज समझ आया,

तुम आगे आई हो तो
पीछे वाला मुस्कुरा रहा है,
उसकी लाठी अब आगे
खींचने वाली
खुद किसी की लाठी
जो बन गई है,

तुम मुस्कुराती हो तो
लोग अपना गम भुला
कर भूल जाते हैं
खुद को भी और
गम को भी,
कब शोर मे खुद की
चर्चा सुनने को
बेताब नही हैं,

तुम चलती हो तो
वो बेटी, बहन और
मां का झरोखा देखने 
आ जाते हैं,
विदा करने और लियवाने,
पर बस विदा करने,
इस बात की चिंता बगैर
की घर ठीक से पहुंच जाओगी,

तुम्हारी आवाज़ मे
रज़िया सुल्तान की
झिझक नही है,
दिद्दा की छुपन
अहिल्या की तपन नही है,
नही आखिरी दांव है
झांसी की कोई,
नेहरू के वारिस का
टशन नही है,

तुम आराम से आई हो
और आराम से चलोगी,
उन सब की पहचान बनकर,
जो अब तक
गुमशुदा थीं अनजान बन
और घूम रही थी
आज़ाद बनकर,
और समझ नही पा रही थीं
क्यूं लोग कर नही रहे वो 
बहुत आसान है जो
बस एक झाड़ू उठाने
और लगाने जैसा?
दूध खौलने और
पौधा लगाने जैसा?
घर को सजाने जैसा
झड़पने और मुस्कुराने जैसा?
राम के वन जाने जैसा !

Friday 22 October 2021

गांधी–युग

यह गांधी–युग नही है,

अब atom bomb है
सबके पास,
चलाने वाला नही
बनाने वाला ही डरा है,

अब पढ़ने वाले पढ़ सकते है
डर कर नहीं, ना छुप कर,
सलमा का सपना अब
बदल कर आता है,
अब बस गोलियों की
बदलनी है दिशा,
बाज़ार जा सकते है
बस उंगली ही पकड़कर
लड़कर नहीं।

अब दलित की 
थाली ही है अलग
स्कूल एक है
और खाना बनाने वाली भी
कुछ स्कूलों मे
पाखाने भी साफ
करने को सरकार चाहती है
उठाकर झाड़ू पहुंचना,
जल लेकर
और पेड़ के नीचे पढ़ाना
मंदिरों को उठाना
फैलाना और जताना
धर्म को खुलकर अपना
और सबका

अब विश्व–युद्ध से
पहले है कई युद्ध
कोरोना, वन और समुद्र
बात है घड़ी–दर–घड़ी,
कभी यहां कभी वहां
और कहां और कहां !

अब लोग गांधी की
राह ही पर
निकल चले हैं
आगे बहुत बढ़कर,
गांधी को भूलकर।
अब गांधी आम हो चले हैं
गांधी को सब जान 
और मान चले हैं,

गांधी का युग
चला गया है,
गांधी–युग
अभी आया नही है,
पर जो भी है,
पहले से है बेहतर

बापू ने सब बदल दिया है।


मोहसिन

वो कौन सी दरख़्त का
फूल हो तुम
जिसकी महक से
गुलिस्तान सारे
उमड़े हुए हैं,

कुछ चिराग की–सी
रोशन हो
किस चौखट से तुम
की नूर के 
सहर से फैले हुए हैं,

तुम होती तो
कब का ही अवसाद
पिघल जाता,
कोई कविता नई लिखता
मैं गीत गुनगुनाता,
मैं बात और रात
को अलग कर नहीं
देख पाता, मैं सुबह
ओस की बूंद से उठाता,

मै कहता और सुनती तुम
कुछ उड़ती तितलियों की
कुछ चिड़ियों की गीतों
की बातें,
और कुछ यूं हुआ,
और कुछ यूं की
कुछ उधर था सही और
कुछ इसका गलत,
वही जो चल रहा है
देखते हुए हो जाता,

मोहसिन थी तुम
रमजान की रात चांद,
सब शांत है तुम्हारे साथ
और गुदबुदाहट–सी
तुम्हारे जाने के बाद।

Wednesday 20 October 2021

कल फिर

कल फिर मुलाकात होगी
तुमने कह दिया फिर
जैसे कहा था कल
बहुत पहले,
और आज आई हो मिलने।

और मै हो गया खुश
कुछ जानकर तुम्हे,
और कुछ जानकर
तुम्हारी फितरत को
और सोचकर
उस कल को
जब आओगी तुम 
मुझसे फिर मिलने!

कान्हा


थोड़ा–थोड़ा देकर सबको
कोई देश बचाने निकला है,
थोड़ी इसकी थोड़ी उसकी
करता बहुत फिकर,

अब दुर्योधन की नाव की
लेकर हाथ पतवार,
कान्हा आया है बीच भंवर,
झेलने को बवंडर
बड़ी PhD कर
निकला नई डगर

कान्हा करता नया समर
कान्हा करता महासमर।


महात्मा

बापू ने कहा –"सरदार !
आओ तुम भी बैठो,
धरने पर,
और तुम भी जवाहर !"
कोई आगे तो ले जाए
यह अनशन,
मेरे ऊपर जाने पर!

कही उन्होंने 
गंभीर–सी बात,
पर हँसकर,
और टाल भी गए
सभी हँसकर।

सरदार और जवाहर
ने कहा एक स्वर–
“बापू ! आप तो ठहरे महात्मा,
आप की है राष्ट्र को फिकर
हमें कौन है सुनता,
हम रहें या ना भी कल।"

बापू कैसे बने महात्मा,
पैदा हुए थे या
कर्म बहुत किए
चुना था उन्होंने क्या सत्य?
या फिर सत्य ने उनको?

Saturday 16 October 2021

होनी

जब तक होता नहीं
तो लगता है होगा नहीं

जब हो जाता है,
सब हो जाता है
सब मिल जाता है
सब खो जाता है

पहले से करके पहल
जब रोक सको कुछ 
होने से,
तो कर लो कुछ तो
प्रयास तुम भी
तो बच जाओगे रोने से।

मेला

मेला लगा है
देख लो।

कोई बंदर नाचेगा,
कोई खेल दिखायेगा
चढ़ कर रस्सी के ऊपर,
कोई गुब्बारे की डोर पकड़
ऊपर बहुत उड़ाएगा,
कोई ढोल बजा, कोई सीटी
कोई चरखी नचा,
कोई नाव उड़ा
करतब खूब दिखायेगा
दंग कर देगा,
तरह–तरह के खेल दिखा

मेला घूमके तुम
थक लो।

कोई बेचेगा गोलगप्पे
कोई रसगुल्ले, कोई जामुन
कोई चना कुरमुरा भूनेगा,
कोई झालमुड़ी मे नींबू निचोड़
तीखा जरा बनाएगा,

मेले मे आए हो,
चख लो।

कोई भक्त विचित्र बड़ा होगा
जो खुलके–झुमके नाचेगा,
आरती होगी थाल सजा
सब उसमे पैसा डालेगा,
कोई गाय तो कोई कुत्ते को
घास और रोटी डालेगा,
मंदिर की पहली सीढ़ी पर
सौ बार ही शीश नवायेगा,

मेला बहुत अनोखा है,
सर माथे लगाकर
अपना लो।



Wednesday 6 October 2021

चिड़ियां का घोंसला

चिड़ियां अपना घोंसला
खुद बनाएगी,

तुम ना दो धागे
तुम ना दो टहनियां
घास के तिनके दबाकर,
चिड़ियां रोशनदान पर
चढ़ जायेगी,
रोशनी मे पिरो देगी
कुछ सीधे कुछ उल्टे
और ची–ची कर
जताएगी.....

चिड़ियां अपना घोंसला
खुद बनाएगी,
बार–बार उसी जगह
पुराने मे नही
वह रहेगी,
वह नया बनाएगी,
खुद बनाएगी।

लंका–दहन

लंका कौन जलाएगा?

एक उदंड बानर
पूंछ की आग लेकर
भागता–पराता जान
लेकर हथेली पर

छलांग लगाकर भागता
चिल्लाता, चीखता,
हाहाकार मचाता
किसी की परवाह न करता
अपनी जान की खातिर 
बेचैन, बेसुध, राम–राम
की लगाता गुहार

घरों के परदे–दीवारों पर
खिड़कियों से घुसकर
दरवाजों से निकलकर
लटककर, झपटकर
मेजों पर, पलंग पर
बगीचे मे, किचन मे
रानीवास मे, दरबार मे
मंत्रियों, संतरियो, सेनानायक
मेघनाथ, रावण, अक्षय कुमार
सबको धकेलकर
पेड़ उखाड़कर, 
कुछ गुंबद गिराकर
कुछ खंभे गिराकर
फर्श की चटाइयों को
उधेड़कर, 
रंग रोगन बिगाड़कर,
मंदिरों के भगवान
धराशयी कर, 
हर सुरमा को पछाड़कर,
मारकर और लज्जित कर
चकमा देकर,

समुद्र की ओर जाता बंदर,
राम–राम चिल्लाता बंदर,
कैसा अजीब बंदर,
ये है बंदर कैसा मस्त–कलंदर
एक पूंछ की खातिर 
डर गया, 
जान का लाला पड़ गया,
जल गई पूरी लंका,

बंदर था या कोई देव था?
डरा था या मजे कर रहा था?
जान बचा रहा था या
लीला कर रहा था?

ये किसे उसने
बानर समझ कर
छोड़ दिया?

लंका जलाकर गया
या जल गई लंका
रावण की रावण के हाथों ही !
अब कौन रावण को मारना
चाहेगा, 
रावण तो मर गया,
अब बस लंका–दहन ही
याद रह जायेगा?

रावण तो फिर भी मरेगा,
पर गांधी लंका जलाकर
बानर बनकर ही मस्त रहेंगे!



Tuesday 5 October 2021

Who is thinking about you?

लोग क्या कहेंगे?
समाज क्या कहेगा?
कौन मेरी अस्मत
कब, कहां लूट लेगा !

सब वक्त का हिसाब
सब इल्म की किताब
सब अनुभवों के नुस्खे
सब आंखों के जवाब
पूछ मुझसे लेंगे!
लोग क्या कहेंगे?

यही जानने को
टटोला मैने मन को
कल्पना के पटल पर
पाया सभी जन को
देखते मेरी तरफ
रख रहे मेरी सनद।

मै वक्त जरा ढूंढ के
सोचा राम से मिलूं जरा,
लोगों की कहानियां
आराम से सुनूं जरा,

चलते–चलते रास्ते मे
मिल गए मामा जी,
दवा लेने आए थे
गिर गए थे नाना जी,

खाने को मिठाई मै
मौसी जी के घर गया,
वो शोक मे थी व्याकुल
की प्रमोशन कैसे रुक गया,

चाचाजी के घर गया मै
चीनी मांगने के लिए,
वो लड़ रहे थे चाची से
तरकारी रोटी के लिए,

अब छुपा न जा रहा था
जब मैं नहीं था सामने,
मै साइकिल उठा निकल
मित्र मेरे ढूंढने,

एक मिला चौराहे पर
वह ताड़ रहा लड़कियां,
एक पढ़ रहा था डूब के
गणित समझ न लिया,

एक मित्र के घर गया
वो लड़ रहा था भाई से,
उसको जामुन नहीं मिला
तो ऊब गया मिठाई से,

कुछ और सोचकर के मै
नदी तरफ चल गया,
नाव का ही सैर करूं
चिड़ियां बना उड़ गया,

वहां देखा बैरिकेड
मोदी जी का आगमन,
सब selfi लेने के लिए
फोन मे ही हैं मगन,

फिर सोचा घाट पर
या मंदिरों की थाह लूं,
वहां देखा कोई couple बैठा
सोचे कब की मै चलता बनूं।

वहां से गया मै फिल्म
देख लूं कोई,
पर नाक–मूंह बंद कर
कोई क्या ही मजा ले सके?

फिर आया घर पे मै
किसी दोस्त को ही फोन करूं,
Weekend पर हों घर कोई
उसको थोड़ा disturb करूं,

एक को जो फोन किया
उसका पेट गड़बड़ था हुआ,
दवा लेकर गैस की
आराम से पड़ा हुआ,

एक मित्र बोला
छुट्टी दो दिन ही क्यों है
Weekend पर,
पांच दिन होती अगर
दारु पीता और घर पर,

अब ना सब्र ही रहा
तो फोन किया ex को,
उनको मेरी थी क्या पड़ी
जो हुई नही Phd,

सब लगे थे जीवन मे
समस्या लिए छोटी–बड़ी,
और मै पड़ा था भ्रम मे
लोग क्या हैं सोचते,

कोई न सोचता है मुझे
ना मैं ही किसी और को,
पर भरम मेरा बहुत बड़ा
जो ढक लिया है मुझी को।

कल न होगे तुम तो
दुनिया चलेगी रफ्तार से
कोरोना से ही क्या रुकी!
जो रुकेगी तुम्हारे बाद से?

कुछ करो और करो
Busy रहो काम से,
राम–राम नाम लो
बच चलो संताप से !



Sunday 3 October 2021

लीलाधर

लीला करने वाले
करते लीला जानकर,
खेलते–खाते, खेल रचाते
खेल को खेल भी जानकर,

कर्म को करते
पर आशक्त न होकर,
पर कर्म करे तो
सर्वज्ञ न होकर,

कर्म करें,
फल–विमुख न होकर
फल भोगें
कामातुर होकर,

ना कर्म बड़ा,
ना फल अंतिम
जीवन भाव मे
जीवन अंतिम

जीवन जाने को चाहे मन,
पर जीवन नहीं
मन मे बंधित,

मन तो जीवन का
मन–रंजन,
जीवन का है बस
अंश महज़,

वह किधर–किधर
भी घूम तो ले,
पर लीलाधर को
क्या बुझे?

कर लीला और धर मुरली
वो समझ बिना भी
मिले–मिले!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...