लंका कौन जलाएगा?
एक उदंड बानर
पूंछ की आग लेकर
भागता–पराता जान
लेकर हथेली पर
छलांग लगाकर भागता
चिल्लाता, चीखता,
हाहाकार मचाता
किसी की परवाह न करता
अपनी जान की खातिर
बेचैन, बेसुध, राम–राम
की लगाता गुहार
घरों के परदे–दीवारों पर
खिड़कियों से घुसकर
दरवाजों से निकलकर
लटककर, झपटकर
मेजों पर, पलंग पर
बगीचे मे, किचन मे
रानीवास मे, दरबार मे
मंत्रियों, संतरियो, सेनानायक
मेघनाथ, रावण, अक्षय कुमार
सबको धकेलकर
पेड़ उखाड़कर,
कुछ गुंबद गिराकर
कुछ खंभे गिराकर
फर्श की चटाइयों को
उधेड़कर,
रंग रोगन बिगाड़कर,
मंदिरों के भगवान
धराशयी कर,
हर सुरमा को पछाड़कर,
मारकर और लज्जित कर
चकमा देकर,
समुद्र की ओर जाता बंदर,
राम–राम चिल्लाता बंदर,
कैसा अजीब बंदर,
ये है बंदर कैसा मस्त–कलंदर
एक पूंछ की खातिर
डर गया,
जान का लाला पड़ गया,
जल गई पूरी लंका,
बंदर था या कोई देव था?
डरा था या मजे कर रहा था?
जान बचा रहा था या
लीला कर रहा था?
ये किसे उसने
बानर समझ कर
छोड़ दिया?
लंका जलाकर गया
या जल गई लंका
रावण की रावण के हाथों ही !
अब कौन रावण को मारना
चाहेगा,
रावण तो मर गया,
अब बस लंका–दहन ही
याद रह जायेगा?
रावण तो फिर भी मरेगा,
पर गांधी लंका जलाकर
बानर बनकर ही मस्त रहेंगे!