Friday, 22 October 2021

गांधी–युग

यह गांधी–युग नही है,

अब atom bomb है
सबके पास,
चलाने वाला नही
बनाने वाला ही डरा है,

अब पढ़ने वाले पढ़ सकते है
डर कर नहीं, ना छुप कर,
सलमा का सपना अब
बदल कर आता है,
अब बस गोलियों की
बदलनी है दिशा,
बाज़ार जा सकते है
बस उंगली ही पकड़कर
लड़कर नहीं।

अब दलित की 
थाली ही है अलग
स्कूल एक है
और खाना बनाने वाली भी
कुछ स्कूलों मे
पाखाने भी साफ
करने को सरकार चाहती है
उठाकर झाड़ू पहुंचना,
जल लेकर
और पेड़ के नीचे पढ़ाना
मंदिरों को उठाना
फैलाना और जताना
धर्म को खुलकर अपना
और सबका

अब विश्व–युद्ध से
पहले है कई युद्ध
कोरोना, वन और समुद्र
बात है घड़ी–दर–घड़ी,
कभी यहां कभी वहां
और कहां और कहां !

अब लोग गांधी की
राह ही पर
निकल चले हैं
आगे बहुत बढ़कर,
गांधी को भूलकर।
अब गांधी आम हो चले हैं
गांधी को सब जान 
और मान चले हैं,

गांधी का युग
चला गया है,
गांधी–युग
अभी आया नही है,
पर जो भी है,
पहले से है बेहतर

बापू ने सब बदल दिया है।


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