लाठी लेकर चलता ग्वाला
लाठी लेकर आए बाभन
लाठी लेकर चलते ‘बापू’
लाठी बड़े है काम का
लाठी सबके नाम का
लाठी सबकी अलग–अलग
लाठी से ही कार्य– कलाप
पर लाठी लगे कुरूप
ना ही रंग न रूप
लाठी उसकी गंदी है
अपनी लाठी चंगी है
मै अपनी लाठी
क्यूं तोड़ ना दूं,
क्यूं कुरूप के
संग चलूं?
पर लाठी टूटे
टूटे गर्व,
लाठी टूटे
टूटे तन–मन,
अब लाठी जोड़ के
चलना है,
लाठी पकड़ के
बढ़ना है,
अपनी लाठी
अपने हाथ,
अपनी लाठी
अपना साथ।
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