Thursday 28 December 2023

जुबां

बिना चोट खाए 
दिल को कहरते देखा,
मैंने आज उर्दू ज़बां को 
अंग्रेज़ी मे कहते देखा,

लाल मिर्च की चुटकी 
उनका तीखा तेवर,
उनकी प्यारी मुस्कान
जैसे देसी घि का घेवर,

खट्टे नींबू के रस 
जैसी उनकी बातें,
मीठे आम का शर्बत 
उल- जलूल हरकतें,

जेठ की गर्मी जैसी 
उनकी अकड़ी चाल,
चुप होकर वो बैठी 
तो सुर्ख कमल-सी लाल,

उनका आलस जैसे 
ठंडे मौसम का कुहरा,
उनकी अंगड़ाई जैसे 
इन्द्रधनुष लहराया,

सुबह की किरणों को 
गंगा उतरते देखा,
मछलियों को मैंने 
हवा मे संवरते देखा!

उनकी आगे की सीट 
जैसे शालीमार,
उनकी टक्कर ढीठ 
जैसे एक फुंकार,

उनका हेय धिक्कार 
पत्थर की लकीर,
उनका मेल-मिलाप 
माया भेष फ़कीर,

उनकी चोर नज़र
जैसे सीपी के मोती,
उनकी उड़ती ख़बर 
जैसे हाथों मे ज्योति,

उनका प्यार का चस्का 
जैसे चाय का शौक,
महफ़िल मे आना-जाना 
जैसे फ़िल्मों का दौर,

आसमाँ को मैंने 
कुछ छोटा लगते देखा,
उनकी मुट्ठी में मैंने 
आकाश सिमटते देखा!






Tuesday 26 December 2023

नाम

नाम दे दूँ इसे 
तुम्हारे न होने का,
इसे कह दूँ 
फकीरी के 
सुध खोने का,
इसे कहूँ 
किरदारों के 
हो जाने की 
खुदमुख्तार,
या साथ किसी के 
ना बैठने की,

इसे कहूँ की 
आवाज़ किसी की 
सुनना चाहता हूं,
दरकार किसी 
व्यस्तता की जो 
करना चाहता हूं,
ये झंझावात 
रक्त-प्रपात 
श्वास-चक्रावात,
मौसम का मिजाज़ 
या ठंड की बरसात,

असंतुलन का है 
नाम क्या?
विकार का 
उद्गम क्या
विस्तार क्या?
राम विमुख 
जीवन का 
पैगाम और 
परिणाम क्या?

Sunday 24 December 2023

मिट्टी का पुतला

फिर वही 
मिट्टी का बुत, 
जोड़कर रख्खा 
ऊपर एक पर एक,
ढो- ढो कर ले जाता 
यह जान को टेक,

यह कर्ता कोई प्रण 
फिर होता विफल,
आज का कल 
और फिर कल,
चेतना पर बोझ 
यह अन्तर पर स्थूल!

Saturday 23 December 2023

स्वरूप

जैसा अन्न, जैसी संगत 
जैसे चित्र, जैसे फिल्म,
जैसा इतिहास,जैसी बात 
जैसा समय, जैसा विन्यास, 

ढल जाता शरीर, 
उस रूप मे अनायास,
रहता घुला-मिला 
रहता रमा हुआ,
और तथ्य लगते असत्य
यह मिट्टी के मूल तत्व,

चाहता लेना वह 
और कोई स्वरूप,
करता हुआ तुलना 
बातों में मशगूल,
राम-सेतु से करता
लंका और अयोध्या 
अन्तर मे विस्तार,
होता रामाकार और 
फिर भर लेता विकार,

स्वरूप होता विखण्डित 
राम के महीन सूत्र पर,
बार-बार उद्देश्य-रहित 
यह सत्य, राम रहित!

Tuesday 19 December 2023

वो कहाँ हैं?

वो अब भी यहीं हैं 
मेरे ख़यालों मे
वैसे ही मौजूद,
जैसे उनसे 
मुलाक़ात हुयी थी,
जो यादे उनसे जुड़ी थी 
उन्हें ही सजाते हैं,

मेरे हिसाब से खाते हैं 
मेरे हिसाब से उठते हैं,
आते-जाते हैं, रह जाते हैं,
वो मेरे ही किसी 
जीवन-पड़ाव को 
हूबहू अभिनीत करते 
मेरे जैसा बन 
ख़यालों में आते हैं,

मैं उन्हीं के गुलदस्ते से 
सजा हुआ एक शख्स हूं,
मैं यहीं हूं, वो भी!

Sunday 17 December 2023

अधिकार

तुम्हारे व्याभिचार से 
मेरा कुछ चला गया,
बात नहीं की तुमने 
मेरा दुख बढ़ा हुआ,
कैसी है तुम्हारी बात 
कैसी होगी हँसी,
मिलती होगी कैसे 
कैसे मचलती होगी,
यह सोचकर मन मेरा 
जाता और भँवर,
खोता-सा मेरा 
व्याभिचार का अधिकार!

काम-कर्पूर

ऊर्जा की धीमी 
उभरती सुगंध को,
ज्योति की 
छोटी-सी लौ को,
रिसते हुए जल-अमृत
विभर को,
काम करना 
चाहता राख,
कुछ करके ना-पाक,
जलकर कुछ क्षण 
क्षणिक सुख से मजबूर 
जलता 'छूर्र- छुर्र'
काम-कर्पूर !

Friday 15 December 2023

समाज की बंदिशें

समाज की ये बंदिशें
मुझे मंजूर नहीं,
ये झूठी दुनिया के फैसले 
मुझे ऐसे कबूल नहीं,

ये तौर-तरीकों के ज़िल्द 
ये सलीको की सिलाई,
ये अदब की दफ्तियाँ 
ये मोटे अक्षरों की लिखाई,
ये कानून की किताबें 
मुझे कबूल नहीं!

ये नर की पतलून 
ये देवियों की साड़ी,
ये हिजाब के झरोखे 
स्कर्ट की लंबाई,
ये बालों के फीते 
ये चोटियों की गछाई,
ये पर्दे और नुमाइश 
मुझे मंजूर नहीं!

ये रातों के अंधेरे 
ये दिन के उजाले,
ये दोपहर की धूप 
ये शाम की मुँहारे,
ये तारों का टिमटिमाना 
ये चांद का घट जाना,
किसी और की रोशनी है 
मेरी आँखों का नूर नहीं!

ये तबादलों के नियम 
ये घर से दूरी,
ये कहने की भाषा 
किसी और की बोली,
ये ऑडिट के प्रश्न 
ये बिल भरने के दिन,
ये भाड़े के रिक्शे 
ये सीनियर के जिन,
किसी और की तमन्ना हैं 
मेरे गुल्लर के फूल नहीं!

देशी

रात को दिन और 
दिन को दोपहर,
घिसी-पुरानी बात 
बहुत तुम सोची 
कहती हो,
अँग्रेजी को छोड़ 
आजकल देशी पीती हो,

राँची को कोची कहती हो,
कोची मे चुप रहती हो,
सभी के साथ पेग लगाती 
पर कहने से डरती हो,
कुछ तो ढंग से बोला करती 
कुछ और ढंग से जीती हो,
रूम मे बैठ के मैडम जी 
आजकल देशी पीती हो?

दो चेहरे

एक दिखाने का 
एक चलाने का,
एक खाने का 
एक मुस्कराने का 
एक गुस्से वाला 
एक शांत भाव का,
एक ऑफिस वाला 
एक घर वाला,
एक गर्लफ्रेंड वाला 
एक दोस्तों वाला,
एक सहकर्मी वाला 
एक समाज का,
एक मांगने वाला 
एक अधिकार वाला,
एक सोचने वाला 
एक खोजने वाला,
एक काम का 
एक निष्काम वाला,
एक राम का 
दूसरा भी राम का!

अगला डिब्बा

अगले डिब्बे मे
सीट खाली है,
उसमे सब सभ्य हैं 
और शालीनता से बैठे हैं
कोई धक्का-मुक्की नहीं है,
भीड़ कम है 
और सोने की जगह है,
शौचालय साफ़ हैं 
और खिड़कियाँ खुली हैं,
पंखे चलते हैं और 
बत्तियां बन्द होती हैं,
पानी है और खाना है,
अगले डिब्बे में कोई नहीं गया है,
मैं ही जाऊँगा पहली बार 
ऐसा मेरा और सबका मानना है!

Sunday 10 December 2023

मज़ाक

उड़ा मज़ाक इस मिट्टी का 
छोटा दिमाग इस मिट्टी का,
नहीं तौर-तरिके मिट्टी के 
है अद्भुत किस्से मिट्टी के,

अब नाम हमारे मिट्टी के 
सब काम-काज हैं मिट्टी के,
ये रूप-रंज हैं मिट्टी के 
ये साज- श्रृंगार सब मिट्टी के,

ये बुढ़े-बच्चे मिट्टी के 
ये बुत बैठे हैं मिट्टी के,
अब चक्की-चक्के मिट्टी के 
ये चलती गाड़ी मिट्टी की,

सब हँसने वाले मिट्टी के
ताली, थिरकन मिट्टी की,
ये दोस्त यार सब मिट्टी के 
ये सारे चक्कर मिट्टी के!

Friday 8 December 2023

जिद

तुम्हारी जिद है 
बात नहीं करने की,
बात नहीं सुनने की 
बात मे आने की नहीं 
और बात सुनाने की नहीं,

तुम्हारी जिद है 
नाक पर चढ़ कर बैठी,
हुस्न की अंगार बनी 
आंखे फैलाकर ऐंटी,
एक चमक-सी नूर की 
होंठ पर रस-तरल सी,

मेरी तलब की चुभन-सी 
पूनम की शीतल-सी 
नमक-सी, जलन-सी 
मुझे खिंचती कसक-सी!

सवार लूँ

मैं अपनी वाणी सुधार लूँ 
तुम अपनी जिद भुला दो,
मैं अपनी आदतें बदल लूँ 
तुम अपनी सोहबत बदल दो,

मैं वैसा ही देख सकूं 
जैसी तुम हो,
और तुम स्वीकार कर लो 
जैसा मैं हूँ,
कुछ मैं सवर जाऊँ 
तुम्हारे लिए,
कुछ और बदल जाऊँगा 
तुम्हारे साथ होने पर!

Monday 4 December 2023

अकेले

तुम अकेले कैसे रहती हो 
कैसे दरवाजों के पीछे 
धूप से छुपकर सोती हो,

कैसे मिलती नहीं किसी से 
किसी को जानती नहीं,
फोन पर रिश्ते बनाती 
सुख-दुख बांटती और 
रूठा करती, मनाती,

कभी फ़िल्में नहीं देखती 
नहीं घूमने जाती,
बैग को कंधों पर 
खुद उठाकर घूमती,
तुम क्यूँ साथ किसी का 
क्यूँ यहाँ नहीं ढूंढती,
आने के बाद और 
जाने से पहले 
रहती कैसे अकेले?

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...