जैसे चित्र, जैसे फिल्म,
जैसा इतिहास,जैसी बात
जैसा समय, जैसा विन्यास,
ढल जाता शरीर,
उस रूप मे अनायास,
रहता घुला-मिला
रहता रमा हुआ,
और तथ्य लगते असत्य
यह मिट्टी के मूल तत्व,
चाहता लेना वह
और कोई स्वरूप,
करता हुआ तुलना
बातों में मशगूल,
राम-सेतु से करता
लंका और अयोध्या
अन्तर मे विस्तार,
होता रामाकार और
फिर भर लेता विकार,
स्वरूप होता विखण्डित
राम के महीन सूत्र पर,
बार-बार उद्देश्य-रहित
यह सत्य, राम रहित!
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