Thursday 29 November 2018

कुम्भकर्ण

"मुझे लगा की
कुम्भकर्ण बड़ा है,
क्यूँकि वह
दिखता बड़ा है।

मैंने confirm भी
किरन से किया है,
क्यूँकि उसको तो
सबकुछ पता है।

मैंने कुम्भकर्ण से
प्यार किया है,
यह बात "शायद"
उसको पता है ।"

क्या कुम्भकर्ण को
तुमने बताया है ?
"नहीं ऽऽऽऽऽऽ !
उसको तो बस
सोना होता है ।"

तुम्हें ऐसा क्यूँ लगा है ?

"मैंने पूछ लिया है !"

किससे ? कुम्भकर्ण से ?

"नहीं ऽऽऽऽऽऽ !  किरन से !
क्यूँकि उसी को तो
दुनिया मे सबकुछ पता है।"

Thursday 1 November 2018

तुम क्या सोचती हो ?

तुम्हारे ज़हन मे
बहुत खलबली है,
तुम्हारे नज़र मे
बड़ी जुस्तजूँ है,

क्यूँ अपनी घुटन को
हवा दे रही हो,
क्यूँ भेद अपने
जताती नहीं हो ?

तुम क्या सोचती हो, बताती नहीं हो !

तुम्हारे कंधों पे
बाज़ू चढ़ाया,
तुमको ही मैंने
गले भी लगाया,

तुम्हारी scooty पे
मै पीछे बैठा,
मंदिर के चौखट से
तुमको ही देखा,

तुम क्यूँ अब मंदिर मे
आती नहीं हो,
मेरे आग़ोश में भी
समाती नही हो,

पर कंधों से अपनी
मेरी ये बाँहें,
क्यूँ कर कभी तुम
हटाती नहीं हो ?

तुम क्या सोचती हो, बताती नहीं हो !

बहुत कुछ है जो तुम
बताती नही हो,
पर लगता है यूँ
कुछ छुपाती नहीं हो,

करती थी बचपन से
Music की classes,
रामायण के चर्चे,
Cartoon की बातें,

सो जाती थी पेड़ों की
झुर्मुठ में खोकर,
लड़ती थी भाई से
खुलकर-झपटकर,

सुनाती हो क़िस्से
मन मे खिल-खिलाकर,
पर क्यूँ लबों से
मुस्कुराती नहीं हो ?

तुम क्या सोचती हो, बताती नहीं हो !

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...