कुछ बात
तुम्हारी और मेरी जो होनी थी वह नहीं हुई,
कुछ कहते–कहते मै रुक गया
कुछ गुस्से में तुम्हारी झुलस गई,
कुछ बातें खुली किताबों की,
कुछ बातें फिल्मी गानों की,
कुछ कॉलेज की नुक्कड़ के चर्चे
कुछ लाइब्रेरी अखबारों की,
कुछ होते हुए इलेक्शन पर
बस चाय की चुस्की ले लेते,
क्लास को bunk करके मिलते
और गले पे पुच्ची ले लेते,
तुम चल लेती दो कदम अगर
मधुबन मे, कदंब के छांव तले,
कुछ बात पुरानी उठ जाती
स्कूल के किस्से गड़े–पड़े,
तुम डर ना जाती लोगों से
समाज का पहरा ना होता,
तुम फोन की घंटी ना सुनती
और वक्त तुम्हारा ना होता,
यमुना की छीटों से कुछ
होली खेल लिए होते,
पांव तुम्हारे भीग जाते
सांसें ज़रा उखड़ जाती,
तुम हाथ छुड़ा कर ना जाती
नजरें नीची, तन ढक करके
वह शाम हमारी ना ढलती
जो सोए थे मुँह ढक कर के,
मैं बस से जरा उतर जाता
और दोस्त मेरे वो ना होते,
हम Domino's को छोड़ ज़रा
Movie मे समय लगा लेते,
कुछ पींगे अपनी बढ़ जाती
कुछ किस्से अपने बन जाते
जो जलन तुम्हारी ना बढ़ती
आवाज तुम्हारी नम रहती,
परीक्षा मेरी नहीं होती
मैं झूठ को बहुत बढाता ना
समय पे माफी मांग के मै
तुमसे बहुत छुपाता ना
तुम डरी हुई सी ना रहती
मै डरा हुआ सा ना रहता
मै प्रेम को तुम्हें दिखा पाता
तू सब कुछ मुझे बता पाती,
कुछ बातें अपनी और होती
कुछ किस्से अपने और होते।