Tuesday 29 March 2022

वकील साहिबा

कुछ खटर–पटर करती
चटर पटर करती,
उससे पूछकर उसका
उसके संग जोड़ती थीं
वकील साहिब,

जो होना होता नहीं था
उसको सोच लेती थीं,
वकील साहिबा 2 से 2
जोड़ लेती थीं,

वो बहन कहती
सभी को गोद लेती थीं,
नेह करती थीं
सरों पर तेल मलती थीं,

पर जलन जब हो तो
सबको तोड़ देती थी,
वकील साहिबा सभी को
झाड़ देती थीं,

बैठकर planning
वो रातों रात करती थीं,
वकील साहिबा
खुदा के साथ लड़ती थीं,

लड़ती–झगड़ती वो एक
वकील से टकरा गई,
वकील साहिबा अब तो 
खुद ही गच्चा खा गई,

वकील को सुनती हैं अब
कहे हां वो या की ना,
प्रेम मे सकुचा गई
वकील साहिबा😊😊।

Monday 28 March 2022

सही

किसने गलत किया
किसने किया नहीं
क्या कब सही रहा
क्या कब कभी नहीं?

क्या हंसना सिखा गया
क्या रोना जाने सही
क्या निधिश को प्रिय
क्या अप्रिय लगी?

क्या करना है?
कहां रुकना है?
क्या बोलना है
क्या नहीं?

यह वह के कारण है
या खुराफाती मेरा शरीर!
अब कब खुश होकर 
सबको माफ कर देगा
पता नहीं कब यह
अच्छा पढ़ लेगा,
देख लेगा और सुन लेगा,
फिर एक अच्छाई मे
सब सही और गलत का
भेद भुला देगा,

कब शरीर प्रेममय हो
पूरी श्रृष्टि मे व्याप्त हो
श्रृष्टि बन जायेगा?
कब सही के पीछे
भागना बंद
और गलत पर
नहीं चिल्लाएगा?

Saturday 26 March 2022

गरीब

हम तुम्हारी नज़र मे
गरीब बहुत हैं,
हम तो खाना भी
खाते हैं कुत्तों के साथ,

हमारे घर के खाने मे
नमक ज़्यादा है,
हमारे कपड़ों से घर मे
कफ़न ज्यादा है,

हमे पकवानों का शौक है
पढ़ाई से ज्यादा,
हमे खर्चे बहुत हैं
कमाई से ज्यादा,

हमारे बच्चे
हमारे काम मे
हाथ बटाते हैं,
जब तुम
बच्चो का अपने
काम कराते हैं,

हमारे लिए–दिए पर
तुम आंखें चढ़ाते हो,
तुम चवन्नी हमारी छीन कर
घर सजाते हो,

दारु पिलाके हमको
काम कराते हो,
अपना काम भुलाने को
तुम डुबकी लगाते हो,

हम गरीब हैं
तुम्हारी नज़र मे
क्यूं मुंडेरों से
हमारे घरों में झांककर,
अपने दिए
मद्धम जलाते हो?

कलम

मेरी कलम
तुम्हारी बातें
लिखती है,
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे कहने के बाद,

मेरी कलम
तुमसे बातें करती है
मेरे बोलने से पहले
तुम्हारे कहने के बाद,
 मेरी कलम को
शिकायत है तुमसे
कुछ लिखने के पहले
कुछ लिखने के बाद,

मेरी कलम
तुम्हारी कनीज़ है,
मेरा हाथ धर के रोती है,
स्याह मे तुम्हारी
डूबने के बाद।

drama Queen

Drama Queen
मेरी चली गई,
मुझसे सुबह–सुबह
वो झगड़ा करके
मेरी बेटी चली गई,

मै हँसा बहुत
और वो चिल्लाई,
उसने बात कहां की
कहां लगाई,
दूध न पिया
फल न खाया,
वो sadwitch छुपाकर
चली गई,

Order कर दिया
बीबीमबाप,
roommate से अपने
लड़ी बड़ी,
फोन उठाकर
बोला ना कुछ
मुस्कान लिए वो
खड़ी रही,
ड्रामा क्वीन
खुश हुई बड़ी,

उसने बहन की
मालिश कर दी,
उसने बहन की
पुच्ची ले ली,
गोद में उसकी
सोकर बोली,
नींद आज की
बहुत भली,
उसकी बहन
जब मुझसे बोली
उसको बहन से
जलन हुई,
घोषले से उसको
उड़ा दिया,
और खिड़की रख
दी खुली हुई,
Drama Queen
तुम कहां गई?

उसने पढ़ाई
नहीं करी
पर प्रोफेसर
पर भड़क गई,
BJP टीवी पर देखा
उसको गलती वही लगी,

पर्चा दाखिल किया जभी
तब नाम दोस्त का डाल दिया
उसकी मेहनत नहीं दिखी
तो राजनीति का नाम दिया,

सबको engange
करती सबको वो manipulate,
सबको गीता का सबक सिखाती
हंसती– खिलखिलाती
विदुषक मेरी
Drama Queen 👑! 

Friday 25 March 2022

किरदार

किरदार है तुम्हारा
तुम निभा रही हो,
मै रूठ जाता हूं बहुत
तुम और सता रही हो,

तुम आइना मुझको
मेरा ही दिखा रही हो,
किरदार है तुम्हारा
तुम निभा रही हो,

उसमे रंग है नहीं हिना का
पर भाव का तो है,
एक मगरूर रियासत की
दास्तान का तो है,

इसमें पात्र हैं सजे
कई शहरों के नुमाइंदे हैं,
कई बाग के परवाने
कई साखों के परिंदे हैं,

इसमें कुफ्र की खिदमत है
और राम की तलब है,
इसमें रात की गलती है
और दिन की दुहाई है,

हर शाम की तोहमत को
तुम सहर भुला रही हो,
किरदार है तुम्हारा..

इसमें जिक्र है गीतों का
और तन की नुमाइश है,
आरजूओं का काफ़िलें मे
अशर्फियों को गुंजाइश है,

यहां फिर वही रेलें हैं
जो ख्वाब में देखे थे,
यहां अब वही मेले हैं
जो बाज़ार मे देखें हैं,

यहां थिरक है साथ कि
ज़मूरियत की झाँकी है,
गैरों के उल्फतों मे
हर शख्स जज़्बाती है,

पर्दे बहुत पड़े हैं
अपने फजीहत पर,
उनकी नज़र भी फिसली तो
लुटती ही सानी है,

तुम भी उन्ही की भीड़ मे
आवाज़ उठा रही हो,
किरदार है तुम्हारा
तुम खुलकर निभा रही हो।








Wednesday 23 March 2022

बाली


बाली क्यूं तू
कर्म करता
मुंह छुपाने वाला?

क्यूं सुग्रीव को
दिखाता दिन
देह छलने वाला?

बाली तू करता बेआबरु 
बेटी–समान को,
क्यूं अधर्मी राह चलता
डाह, घात को,

है तुझे फिर राम के
क्यूं दर्श का अब इंतजार,
तीर आकार मार देगा
नरेंद्र का, कर अंधकार,

बाली, किष्किंधा मे कर
निष्काश अपने भृत्र का,
कश्मीर के पंडित सरीखा
नराघात करता आप का,

लंका जलेगी, बिट्टा मरेगा
तब देख लेगा सब,
यह रूप भी संहार का,
जब नरेंद्र तीरों से करेंगे
घात आतंकवाद का,

कब तक छुपा बैठा रहेगा
बाली, गुफाओं–कंदरों मे
और राम क्यूं ढूंढेंगे तुमको
जब तुम छुपे हो बंदरों मे?

है नहीं समझ तुमको
युद्ध के जब नीति का
रह चुन ली है जो तुमने
आतंक और भीति का,

तो होगा फिर शिकार ही
अंत जैसे चींटी का,
नहीं वीर गति नरोचित है
आतंक के संप्रिति का।


भूल

वो भूल गए की
क्या था मै
और क्या–क्या थी
मेरी बातें,

वो भूल गए
झगड़े तगड़े
और थाली की
गिरती आवाज़ें,

वो भूल गए की 
चटर –चटर कर
पटर–पटर
मै लड़ता था,

वो भूल गए
साइकिल मेरी,
जो मै खरीद कर
खोता था,

मेरी गन्दी–सी 
हरकत को,
वो बातें करके 
भूल गए,

मेरे खाने की
थाली रख
वो अपना
खाना भूल गए,

परदेश से जब मैं
घर आया
वो मेरा जाना
भूल गए,

मुस्कान सजाकर
गले लगाया
वो मेरी भूलें भूल गए !

माँ होती तो

मां होती बतला देती
की नाम तुम्हार क्या है
मां होती तो बतला देती
की काम तुम्हारा क्या है,

मां नहीं भटकने देती तुमको
अलग–अलग दरवाजों पर,
अंदर झांक दिखा देती
मां एक ईश्वर की आंखों पर,

मां होती तो तुम पैसों को
मोल की वस्तु समझ पाती,
मां होती तो तुम अपने मोल को
अपने से ही चुका पाती,

मां होती तो गाली देना
तुमको बहुत नहीं आता
मां होती तो कविता पढ़ती
और वकील–सा मालिक ना होता,

मां आज का पिंजरा तोड़ के तुमको
खुली हवा मे उड़ा देती
मां होती तो तुम मुंह छुपा के अपना
साथ और किसी के ना सोती,

मां चली गई और संग ले गई
मर्यादा के परदे भी
मां चली गई तो चली गई
लेकर अपनी शर्तें भी।

Sunday 13 March 2022

जुगनु और तिलचट्टा

जुग्नु रात को
टिमटिमा रहा था,
और एक तिलचट्टा
उड़–उड़ कर
अपनी भूख 
अंधेरों मे मिटा रहा था,

वह खोज रहा था
नालियों की गंद,
और महकता कचरा
जिसमे वो
comfortable होकर
छुप जायेगा
पेट की भूख मिटाएगा
शांति से कुतर देगा
बचा हुआ भोजन
जो नालियों मे
कल सवेरे निकल जायेगा,

जुगनु पर तो उड़ रहा था
छुपने को नहीं वो कह रहा था
टिमटिमा रहा था वो
और दिखलाने को वो
उसको थी किसी साथ की
नहीं महज़ एक
पेट की,भूख की बस कल्पना,

जुगनु और तिलचट्टे
दोनो उड़ रहें
भारत के अंधकार में,
दोनो को है दरकार
एक अंधकार की,
एक जीने के लिए
एक दिखने के लिए,
एक छिपता, एक उड़ता
एक छोटी रोशनी को
सूरज के सामने कम पता
एक अपने रूप को आजमाता
बस अंधेरों में ही
जान बचा पाता,

एक जुग्नु एक तिलचट्टा,
भारत के दो अंग,
एक घटता, एक बढ़ता!


मेरी car खराब हो गई थी !

वो बोली मुझसे की
मेरी car
हो गई थी खराब
रुक गई थी मै इसलिए,

हो गई थी मै 
परेशान ज़रा–सी
मै आगे बढ़ गई
की Cycle की थी
दुकान इसलिए,

हम बातें कर रहे थे
गांधी की, भाभा की
और तुम्हारे interview की
पर देख नहीं पा रही थी
हिंदी पर तुम्हारा ध्यान इसलिए,

बेच पाओगे
कैसे car वालों को
अपनी बातों को
रखकर इत्मिनान,
कैसे समझेंगे
जो समझते हैं
जिंदगी को इम्तिहान,
वक्त को संग्राम
तुम आए दिल्ली
मेहरबान किसलिए?

Saturday 12 March 2022

हया

लड़की बड़ी कब हो गई?

कब हया की ओढ़नी
वह ओढ़ कर अपनी
नज़र बचाने लग गई
दहलीज धर घर की,

पहनने लगी साड़ियां
जब पर्दों की तरह
खींचने पल्लु लगी
जब और भी खींचने,

जब सर और सीने
ढकने को लगी वह जूझने
वह जब लगी हो नज़र
औरों की बचाने, 
कोसने खुद को,

मार खाने और 
नहीं भी चिल्लाने,
प्रश्न को मन मे छुपाकर 
नजरों से ढूंढने 
अपने जैसी मार खाती,
तसल्ली उसी में करने,

डर के घरों में चूल्हे जलाती
और खुद साये से ही डरने,
लड़की शायद तब
बड़ी लगती है लगने,

नहीं है कोई उम्र 
की जिसको पार वो करले
तो कहे की अब वो 
बड़ी है बहुत लगने।


भगत सिंह


तुम थे नहीं अब तक
या तुमको भूल बैठे थे
हम थे तुम्हारे गांवों मे
नशे में चूर बैठे थे,

तुम थे तो था की है कोई
अब कौन ऐसा है,
जो जान भी दे दे खुशी से
कौन वैसा है,

तुम थे लड़े जिससे अभी तक
वो ही अभी तक था,
भगवा पहन, पगड़ी लगा
बस रूप बदला था,

आज फैला है उसी का
उजाला हर तरफ
जो दिया रौशन हुआ था
भगत बन शबब,

फिर जलाएंगे घरों मे
चूल्हे दोनो पहर,
फिर से खेतों मे उगेगी
सरसों, नहीं ज़हर,

अब झुकाएंगे सरों को
दरों पर नानकों के हम,
अब बचाएंगे युवा को
नशों की बेड़ियों से हम,

अब बनाएंगे नए अजीत
नए आज़ाद नए भगत।

Thursday 10 March 2022

बातें

कुछ बात तुम्हारी और मेरी 
जो होनी थी वह नहीं हुई,
कुछ कहते–कहते मै रुक गया
कुछ गुस्से में तुम्हारी झुलस गई, 

कुछ बातें खुली किताबों की,
कुछ बातें फिल्मी गानों की, 
कुछ कॉलेज की नुक्कड़ के चर्चे
कुछ लाइब्रेरी अखबारों की,

कुछ होते हुए इलेक्शन पर
बस चाय की चुस्की ले लेते,
क्लास को bunk करके मिलते
और गले पे पुच्ची ले लेते,

तुम चल लेती दो कदम अगर
मधुबन मे, कदंब के छांव तले, 
कुछ बात पुरानी उठ जाती 
स्कूल के किस्से गड़े–पड़े,

तुम डर ना जाती लोगों से
समाज का पहरा ना होता,
तुम फोन की घंटी ना सुनती 
और वक्त तुम्हारा ना होता,
 
यमुना की छीटों से कुछ
होली खेल लिए होते,
पांव तुम्हारे भीग जाते
सांसें ज़रा उखड़ जाती,

तुम हाथ छुड़ा कर ना जाती
नजरें नीची, तन ढक करके
वह शाम हमारी ना ढलती
जो सोए थे मुँह ढक कर के,

मैं बस से जरा उतर जाता
और दोस्त मेरे वो ना होते,
हम Domino's को छोड़ ज़रा
Movie मे समय लगा लेते,

कुछ पींगे अपनी बढ़ जाती 
कुछ किस्से अपने बन जाते
जो जलन तुम्हारी ना बढ़ती
आवाज तुम्हारी नम रहती,

परीक्षा मेरी नहीं होती
मैं झूठ को बहुत बढाता ना 
समय पे माफी मांग के मै 
तुमसे बहुत छुपाता ना

तुम डरी हुई सी ना रहती
मै डरा हुआ सा ना रहता
मै प्रेम को तुम्हें दिखा पाता
तू सब कुछ मुझे बता पाती,

कुछ बातें अपनी और होती
कुछ किस्से अपने और होते।

Sunday 6 March 2022

शोर

ये शोर है शरीर का
ये शोर नहीं राम का
ये शोर बस समय का है
ये शोर नहीं काम का,

ये शोर ओमकार हैं
ये शोर अंधकार है
ये शोर व्यर्थ का बहुत
ये शोर है अनर्थ का,

सारा जोर कर्म का है
सारा काम कर्म का,
सारा नाम शोर मे है
नाम नहीं अर्थ का,

शोर–शोर ही रहे
और शोर बढ़ चले
शोर भी भला लगे 
जो नाम राम का रहे।

उड़ान

मैं उड़ जाता 
चिड़ियों के संग
मै पकड़–पकड़ के लाता,

मै उड़ने को अकुलाता
मैं उड़ता–उड़ता
उड़ ना पाता, 
उड़ने से डर जाता,

आतुर और सघन होकर 
चिल्लाता, उबियाता,
मैं पकड़–पकड़ कर लाता
उड़ता नहीं, न उड़ाता
डाली पर बैठता,
कुँक कोयलिया की 
मधुर–मधुर धुन,
गा–गाकर समझाता,

मै फिर–फिर उड़ता, 
मै पकड़–पकड़ कर लाता
मै राम-राम ही गाता।

नाटक

ये रोना झूठ–मुठ का है,
ये हंसना झूठ–मूठ का है,

हमे ख़बर भी नहीं
उनके ना होने की
दर्द का सहना
हमारा झूठ–मूठ का है,

कुछ बात नहीं बनती
तो उनकी याद आती है,
वरना याद भी करना 
हमारा झूठ–मूठ का है,

बातें कर रहें हैं हम
और से बहुत खुलकर,
उनकी राह भी तकना
हमारा झूठ–मूठ का है,

उनके चीख के किस्से
हमे तो याद हैं अब तक,
उनकी प्यार की आदत बताना
हमारा झूठ–मूठ का है,

उन्हें हम छोड़ आए थे
Metro के मुहाने तक,
उनकी राह तकने का बहाना
हमारा झूठ–मूठ का है,

उन्हें भुलाकर बैठे थे
शहर में जाकर उनके ही,
उनके ही लिए पढ़ना
हमारा झूठ–मूठ का था।

Friday 4 March 2022

मातम

उनके जाने मातम 
करेंगे नहीं तो 
मुहब्बत बड़ी
नामुकम्मल लगेगी,

उनको तो मेरी
फिकर अब कहां है,
पर अधूरी मेरी कुछ
इबादत लगेगी,

क्या बोलेंगे
मुझे याद करके किसीसे
उनकी मेरी गर
हिकारत लगेगी,

अपने घुटन की
दुहाई वो देंगे
जब उन्हें मेरी उल्फत
सहादत लगेगी,

चाहतें गर न कहते
मातम को अपने
दुनियां को वो एक
तवायफ लगेगी,

उन्हें याद करना
नहीं चाहते हैं,
पर मातम न करें तो
बगावत लगेगी !

जाने भी दो

बचपना उनका है
उनको जाने भी दो,
किसी और की
अब हो जाने भी दो,

उनकी खुशी की 
इल्तज़ा करते थे,
कुबूल हो गई है
हो जाने भी दो,

हम तो पैमानों मे
समाते ही कहाँ थे,
मैखानों का लुप्त 
अब उठाने भी दो,

उनको नाज़ है अपने
खरीदारों पर,
उनको हुश्नों–जमाल
कुछ लुटाने भी दो,

लिहाफों पे पैबंद
आफताब का हो,
हिजाबों से ख्वाहिश
सजाने तो दो,

महलों मे वो 
नज़रबंद हो गए हैं
उनको दुनिया से
नज़रें चुराने भी दो,

कल को आयेंगे शहर मेरे 
मुझे ढूंढते हुए,
उनको पता मेरा
भूल जाने भी दो,

लिख लो दिल की कलम से
अफसाने मुहब्बत के,
महफिलें गैर की
सजाने भी दो,

वो मुकर्रर करेंगे
मेरे नाम को,
कुछ और वक्त
बीत जाने भी दो।

Thursday 3 March 2022

शिर्क

अलविदा कहकर मुझको,
अब रोने भी न दोगे,
खुद तो सोते हो किसी की
महफूज़ बाहों में,
मुझे कोतवाली भेजकर
अब घर में सोने भी न दोगे,

मुझे दुखी करने की 
अदा ये तुम्हारी है,
अब किसी और की
मुझको होने भी न दोगे,
मुझे किरण चाहिए
एक उम्मीद तिनके की,
मुनासिब तुमसे बन सके
उतना होने भी न दोगे,

मुझको गाफिल रखा
तुमने कुफ्र होने तक,
अब मुंह मोड़कर
सब्र खोने भी न दोगे,
तुम शिर्क बन गए हो
ये मालूम था मुझे,
पता ये ही नहीं था
की हम दोनो ही न थे,

अपने शितम से जब 
तौबा करोगे तुम,
मुझे याद करोगे
जिक्र होने नहीं दोगे,
नाम मेरा लोगे 
जब रकीब के घर मे,
बेआबरू करके 
मेरी इबादत को,
मै जानता हूं
तुम मुझे जीने नही दोगे,

ये खलिश छोड़कर
जो बेखयाल हो गए,
तुम अपने गमों का
ईल्म होने भी न दोगे,
परवरदिगार से पर मै
दुआ ये करूंगा,
मेरी जान को खुदा 
कभी रोने नहीं दोगे।

सुर्पनखा के राम

सुर्पनखा ने राम
को चमकता देखा,
पर्ण–कुटी मे
दुखों से लिपटा देखा,

देखा जो उसने 
भोग की वस्तु 
समझकर के,
देखा जो उसने
काम की वृत्ति
में पड़कर के,

उसने कहा
निकाल लूं मै,
स्वर्ण के
इस रूप को
उठा लूं मै,
फूल की खुशबू
वनों मे
व्यर्थ होती है,
इत्र करके
महल मे
फैला दूं मै,

दर्द मे व्यथित हैं 
जग के, दीन के बंधु,
आज माया 
कि लहर मे
उनको डुबा दूं मै,

माया–लोपित प्राणी
राम को गद्दी चढ़ाता है,
सीता–सा हृदय मे
कौन उनको
अब बसाता है?

चमक से रघुनाथ की
सुर्पनखा भरमा गई,
राघव को वस्तु समझकर
काम से व्याकुल हुई,
प्रेम को मुख पर रखा
और आँख से ललचा गई,

प्रेम को पाने को वो
मुट्ठी समाने आ गई,
राम को पाने को मन के
राम से टकरा गई,
राम की प्यासी बहन
रावण को भी खा गई!

चुप्पी

तुम्हारी चुप्पी है
बोलने वाली,
कुछ मुँह दबाकर
हँसने वाली,
Phone करने वाली
मगर बस सुनने वाली,

बात को बस बोलकर
महटियाने वाली,
जानने से बची और
सुनाने वाली,

बात कल की 
दिल पे रखकर
सालने वाली,
माफ कहके
माफ नहीं
करने वाली,

तुम्हारी चुप्पी है
कल से कल को 
तोड़ने वाली !

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...