Sunday 13 March 2022

जुगनु और तिलचट्टा

जुग्नु रात को
टिमटिमा रहा था,
और एक तिलचट्टा
उड़–उड़ कर
अपनी भूख 
अंधेरों मे मिटा रहा था,

वह खोज रहा था
नालियों की गंद,
और महकता कचरा
जिसमे वो
comfortable होकर
छुप जायेगा
पेट की भूख मिटाएगा
शांति से कुतर देगा
बचा हुआ भोजन
जो नालियों मे
कल सवेरे निकल जायेगा,

जुगनु पर तो उड़ रहा था
छुपने को नहीं वो कह रहा था
टिमटिमा रहा था वो
और दिखलाने को वो
उसको थी किसी साथ की
नहीं महज़ एक
पेट की,भूख की बस कल्पना,

जुगनु और तिलचट्टे
दोनो उड़ रहें
भारत के अंधकार में,
दोनो को है दरकार
एक अंधकार की,
एक जीने के लिए
एक दिखने के लिए,
एक छिपता, एक उड़ता
एक छोटी रोशनी को
सूरज के सामने कम पता
एक अपने रूप को आजमाता
बस अंधेरों में ही
जान बचा पाता,

एक जुग्नु एक तिलचट्टा,
भारत के दो अंग,
एक घटता, एक बढ़ता!


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