अब रोने भी न दोगे,
खुद तो सोते हो किसी की
महफूज़ बाहों में,
मुझे कोतवाली भेजकर
अब घर में सोने भी न दोगे,
मुझे दुखी करने की
अदा ये तुम्हारी है,
अब किसी और की
मुझको होने भी न दोगे,
मुझे किरण चाहिए
एक उम्मीद तिनके की,
मुनासिब तुमसे बन सके
उतना होने भी न दोगे,
मुझको गाफिल रखा
तुमने कुफ्र होने तक,
अब मुंह मोड़कर
सब्र खोने भी न दोगे,
तुम शिर्क बन गए हो
ये मालूम था मुझे,
पता ये ही नहीं था
की हम दोनो ही न थे,
अपने शितम से जब
तौबा करोगे तुम,
मुझे याद करोगे
जिक्र होने नहीं दोगे,
नाम मेरा लोगे
जब रकीब के घर मे,
बेआबरू करके
मेरी इबादत को,
मै जानता हूं
तुम मुझे जीने नही दोगे,
ये खलिश छोड़कर
जो बेखयाल हो गए,
तुम अपने गमों का
ईल्म होने भी न दोगे,
परवरदिगार से पर मै
दुआ ये करूंगा,
मेरी जान को खुदा
कभी रोने नहीं दोगे।
No comments:
Post a Comment