तुम थे नहीं अब तक
या तुमको भूल बैठे थे
हम थे तुम्हारे गांवों मे
नशे में चूर बैठे थे,
तुम थे तो था की है कोई
अब कौन ऐसा है,
जो जान भी दे दे खुशी से
कौन वैसा है,
तुम थे लड़े जिससे अभी तक
वो ही अभी तक था,
भगवा पहन, पगड़ी लगा
बस रूप बदला था,
आज फैला है उसी का
उजाला हर तरफ
जो दिया रौशन हुआ था
भगत बन शबब,
फिर जलाएंगे घरों मे
चूल्हे दोनो पहर,
फिर से खेतों मे उगेगी
सरसों, नहीं ज़हर,
अब झुकाएंगे सरों को
दरों पर नानकों के हम,
अब बचाएंगे युवा को
नशों की बेड़ियों से हम,
अब बनाएंगे नए अजीत
नए आज़ाद नए भगत।
No comments:
Post a Comment