Monday 31 January 2022

कर्म

जितना कर सकते जान के तुम
उतना ही कर्म निहित कर लो,
राम नाम की नाव धरो और
कर्म–धर्म के सुपुर्द करो,

यह धन और वैभव की तलाश के
कर्म नहीं सम्पूर्ण कभी,
यह मान–ज्ञान के दरवाजे
कभी खुले नही, अध–खुले रहे,
जो है दिखता वह सत्य नहीं
पर सत्य से ओझल भी तो नही,

इनकी चौखट के दरबारी
बनकर तुम विनोद करो,
जितना कर्म कर सकते
उसको थोड़ा–बहुत करो!😊

द्वंद

बातें हुई मेरी खुद से बहुत
मेरे चर्चे हुए खुलकर बहुत
कुछ जिरह हुुई बारी–बारी
कुछ तर्क बिना संवाद हुए

मै जीता बारंबार बहुत
पर जीत मेरी बस सीमित थी
मै हारा बारंबार गिरा
पर हार मेरी कुछ पल की थी
मै ढूंढा खुद को अंतर मे
पर खोज मेरी बंधन सी थी
मै बता दिया खुद सबको
पर याद मेरी क्षण भर की थी
मैंने जो किले बनाए थे
नीव मेरी कंकड़ की थी

अब सत्य सामने आया है
जब रखना है अंतर मन को,
आवरण खोजने की खातिर
मेरा बढ़ा है हाथ समर्पण को,
तो यह बतलाकर शांत हूं मै
की यह पल भी पलभर का है,
मेरा मुझे जानने का प्रयास
काम तो जीवन भर का है, 😊😊!

पानी

तुम पानी भरने जाया करो
राधे, तुम पानी भरने जाया करो
पनघट पर जो मिलती थी
तुम फिर से मिलने आया करो

कभी पनघट पर मटकी रखकर
तुम मुरली मेरी सुन सुनकर
मुझ ढूंढ रही आंखों से तुम
खुद को भूल भी जाया करो,

कभी ललिता संग कुरेद करो
की है मुरलीधर कहां? कहो!
कुंजों मे और घाटों की सीढ़ियों पे 
तुम मुझे ढूंढकर जाया करो,
तुम पानी भरने आया करो

तुमको देखूं और मै खुद को
सवार लूं प्रेम के दर्पण मे,
तुमको मुरली मे सजा भी लूं
और साज़ बढ़ा दूं सरगम मे
तुम मेरे अंतर की अभिव्यक्ति
को मूर्त रूप मे लाया करो,

मै पानी पीने आऊंगा
प्यास की तपिश मे व्याकुल हो,
अधरों की मुरली गायेगी
विरह की दंश से गाफिल हो,
तुम मेरी मन भी रखने को
अपने मन को समझाया करो
तुम पानी भरने आया करो !


Monday 24 January 2022

मंडली

आज कौन–कौन
आया है,
कल कौन–कौन मिलेगा
और कल कौन कहां होगा,
यह भूल बैठे आज
बस देख रहे हैं
की कौन–कौन है यहां
और कौन कहां है?

कौन याद कर रहा है
किस लिए कितना,
कौन बात कर रहा है
किस वजह कितना,
यह भूल बैठे आज
बस सुन रहें है किलकारी
अमृतवाणी, ठहाके और
फिर से कोई गूंज,
अगले पड़ाव तक के।

संवाद

राम कहूं मैं, 
राम सुनूं मै,
राम हृदय मे
साफ धरूं मै

मै जब बोलूं
राम के लिए,
मै कुछ कहूं तो
राम के लिए,

मै साथ चलूं तो
राम ही बढ़ें,
मै कहीं रुकूं तो
राम हों खड़े,

मै राम ही सबमें
देख सकूं,
मै राम मे सबको देख सकूं।

Wednesday 12 January 2022

गांव

आओ तुम्हारे गांव चलते हैं
हाथ फिर से थाम कर
कुछ गली की, चौपाल की
कुछ खाक छानते हैं,

फिर से उसी गांव मे
जहां से भाग आए थे
दादा तुम्हारे
हाथ मे लेकर तुम्हे,
और माथे पर पोछकर
कुछ पसीने और
कुछ खून की बूंदे,
आओ हम लाहौर चलते हैं।

तल्ख हो जो गई
रूह तक बैठी वहसियत
पंथ के जो नाम से भी
हाथ झलते हैं,
की मांगते हैं
बंदूक की जो नाल
सीने चलनी करने को
बदले की बुझे तब आग,
की भूलकर को रोटियां
बदले की सेकते 
तंदूर मे जो भाव,
और उसी आवेग मे
सरकार चुनते हैं,
उन नफरतों को मिटाने
आज फिर सरहद पार चलते है।

भीड़ मे होकर जो शामिल
आ गए गलबहियां कर
रोटी तो मुमकिन नहीं
दो वक्त रोते थे जो बच्चे
उनको खोकर लानतें
आ गए खाकर कमाने
शहर जो अपना चुके हैं
और मिट्टी सूंघकर बस
जो घरौंदो मे लौट आए
आज उनकी रूह पर
कुछ बाम मलते है,
उनको लेकर घर तुम्हारे 
मिट्टी–वाले, एक बार चलते हैं,

फिर तुम्हारे गांव चलते हैं....

तर्पण

राम की जब भी
मर्जी होगी,
राम स्वयं ही आयेंगे,

जो दुःख आकार
क्रंदन करेगा
उसका करने उद्धार
राम स्वतः बढ़ जायेंगे
जटायू को आखिरी
जल चढ़ाएंगे।

जो करे विश्राम
ले के राम का नाम,
चेहरे की देखकर
मुस्कान
राम कुछ पल वहीं
रुक जायेंगे,
हनुमान के दर्शन को
राम खुद ही भटक जायेंगे।

जो भक्ति मे है लीन
और पथ पे रहा है
पुष्प बिछाकर
दिन परस्पर गिन,
राम उसकी प्रार्थना से
पिघल कर बह जायेंगे
जूठे बेर को मुंह दबाकर
भूख मिटाएंगे
नवधा–भगती ज्ञान
अपने मुख से सुनाएंगे,

जो है व्यथित
स्वजन से ही
और जिसकी है
राज्य–कुल, भार्या
मान–मर्दित
उसकी व्यथा को
राम भेद कर
एक तीर से
सात पेड़ों को
मिटाएंगे,
किष्किंधा वाले को भी
राज्य तक ले जायेंगे।

राम सबके साथ है,
राम चलकर आयेंगे।

मजदूर

मै मजदूर
देखकर दुःख
मजदूर का,
मजबूर हो
आगे बढ़ा,
मजबूत हूं की
मजदूर हूं मै
क्या है पत्थर
रास्ते का
की जो हटा
सकता नहीं,
वह भी हटा देगा
हटाने वाले की
जब इच्छा हुई,
राम की जब
मर्जी हुई,
मजदूर हो
मजदूर की मै
जानकर व्यथा
मै बहुत आगे बढ़ा।

Wednesday 5 January 2022

नज़र

पल रहें हैं जिसकी 
एक नज़र से हम,
कैसे लगा दे नज़र
उसको हम,

की उनके ही आगाज़ से
है खिली ये आरजू,
उनके की अरमान से
है सजी फिर जुस्तजूं,

उनकी उंगली थामकर
हम चल रहे हैं राह में,
उनकी चाहत पालकर
हम गा रहे हैं मल्हार,

नज़र उनसे अब चुराकर
उनको क्या करें तड़ीपार हम?

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...