तुम पानी भरने जाया करो
राधे, तुम पानी भरने जाया करो
पनघट पर जो मिलती थी
तुम फिर से मिलने आया करो
कभी पनघट पर मटकी रखकर
तुम मुरली मेरी सुन सुनकर
मुझ ढूंढ रही आंखों से तुम
खुद को भूल भी जाया करो,
कभी ललिता संग कुरेद करो
की है मुरलीधर कहां? कहो!
कुंजों मे और घाटों की सीढ़ियों पे
तुम मुझे ढूंढकर जाया करो,
तुम पानी भरने आया करो
तुमको देखूं और मै खुद को
सवार लूं प्रेम के दर्पण मे,
तुमको मुरली मे सजा भी लूं
और साज़ बढ़ा दूं सरगम मे
तुम मेरे अंतर की अभिव्यक्ति
को मूर्त रूप मे लाया करो,
मै पानी पीने आऊंगा
प्यास की तपिश मे व्याकुल हो,
अधरों की मुरली गायेगी
विरह की दंश से गाफिल हो,
तुम मेरी मन भी रखने को
अपने मन को समझाया करो
तुम पानी भरने आया करो !