Monday, 31 January 2022

कर्म

जितना कर सकते जान के तुम
उतना ही कर्म निहित कर लो,
राम नाम की नाव धरो और
कर्म–धर्म के सुपुर्द करो,

यह धन और वैभव की तलाश के
कर्म नहीं सम्पूर्ण कभी,
यह मान–ज्ञान के दरवाजे
कभी खुले नही, अध–खुले रहे,
जो है दिखता वह सत्य नहीं
पर सत्य से ओझल भी तो नही,

इनकी चौखट के दरबारी
बनकर तुम विनोद करो,
जितना कर्म कर सकते
उसको थोड़ा–बहुत करो!😊

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