मेरे चर्चे हुए खुलकर बहुत
कुछ जिरह हुुई बारी–बारी
कुछ तर्क बिना संवाद हुए
मै जीता बारंबार बहुत
पर जीत मेरी बस सीमित थी
मै हारा बारंबार गिरा
पर हार मेरी कुछ पल की थी
मै ढूंढा खुद को अंतर मे
पर खोज मेरी बंधन सी थी
मै बता दिया खुद सबको
पर याद मेरी क्षण भर की थी
मैंने जो किले बनाए थे
नीव मेरी कंकड़ की थी
अब सत्य सामने आया है
जब रखना है अंतर मन को,
आवरण खोजने की खातिर
मेरा बढ़ा है हाथ समर्पण को,
तो यह बतलाकर शांत हूं मै
की यह पल भी पलभर का है,
मेरा मुझे जानने का प्रयास
काम तो जीवन भर का है, 😊😊!
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