Sunday 27 November 2022

राम करेंगे

राम करेंगे
हम तो
राम का 
नाम करेंगे,
राम हमारे 
काम करेंगे,
आज करेंगे
और करेंगे,
राम ही सुबह
और शाम करेंगे,
राम हमारा
काम करेंगे,
जो हम राम का
ध्यान करेंगे,
राम हमारा 
ध्यान करेंगे !🙏

मेरी नज़र

एक शहर हो
और मेरी नज़र हो,
मैं आऊं पैदल
और जाऊं इधर–उधर,

रूमी दरवाजा हो
भूलभुलईया हो,
मानस मंदिर
कबीर मठ हो,
मेरी पेशानियों पर
उसका असर हो,

लोग वहां के
तहजीब वहां की
वहीं का गूगल
तस्वीर वहां की
वही का बाराती हो
वहीं की लगन हो,

एक शहर हो,
मेरी नज़र हो!

Thursday 24 November 2022

ए गोलू

का कहला तू ए गोलू
का भैला तू ए गोलू,
केसे बतिययिला ए गोलू
का मुस्किययीला ए गोलू

तू बहुत ऊ हया ए गोलू
बस दांत निपोरै जिन गोलू,
आवा अईबा त गोलू
होशियार जिन बना ए गोलू,
हम कहत रहली ए गोलू
तुम बड़ा न भइला ए गोलू!

खाना खाला ए गोलू
पानी पीला ए गोलू,
मम्मी तोहार पनीर बनहियां
धनिया लावा ए गोलू,
पान बनावे खातिर कत्था
खूब लगइला ए गोलू,
आजी हमरे संगे सुतिहन
खाट लगैता ए गोलू,
आजा बचवा अंदर बैठा
धूप लगत बा ए गोलू,
अंगना मे कूलर लगवईता
गोड़ चलऊता ए गोलू,
मोजा तोहार महकत हौवे
पैर धोवइता ए गोलू,
दू ले नान खटाई खइता
पानी पीता ए गोलू,

मेहरारू से झगड़ा कयिला
काशी जैबा का गोलू,
नातिन हमार बिहाने ऐहन
स्टेशन चल जा ए गोलू,
आज त बहुत बिहाने उठला
PT करबा का गोलू?
काहें मुंह फुलैले बाड़ा
कुछ बतियावा ए गोलू
देखा आवा महेंदर चच्चा
कुछ समझौता ए छोटू!😁

धर्म–कर्म

जो नहीं किया
तो कर लोगे,
जो बहुत किया
वो तज दोगे,
जो सोच लिया 
तो नहीं किया,
जो छूट गया 
वो धर लोगे,
जो फीका है 
वह चख लोगे,
जो पका रहे
वह दे दोगे,

जो बन पाया है बिगड़ेगा
जो बिगड़ा है वह सुधरेगा,
जो है वह हाथ से छूटेगा
जो छूटा है वह बांधेगा,
तुमने छोड़ा या छूट गया
ये जाने वो जो डूबेगा,
राम नाम की नैया है
ये राम–नाम से तैरेगा!

श्रृजन

मेरे विचारो की
कैसी साक्षात्कार हो,
मेरे प्रणय की
तुम मूर्तिवार हो,

तुम कांता हो
केशव हो
और रघुराम हो,
तुम शब्द, 
संधि हो
पूर्ण विराम हो,

शिष्या हो
राधिका हो
मिथिला की 
अलंकार हो,
ज्ञान हो भी
मोक्ष हो,
कामना की कटार हो,

गुरु हो 
गोविंद हो
संत और व्यभिचार हो,
तुम प्रेरणा हो
धारणा हो
धर्म–कर्म साथ हो,

तुम कवियों की 
कल्पना हो,
तुम द्रौपदी की 
चित्कार हो,
तुम श्रृजन की
श्रृंखला हो,
श्रृजन का आधार हो!


झूठा–गुस्सा

तुम्हारे नाक पर बैठा
तुम्हारा झूठा गुस्सा,
गुस्से मे बैठा हुआ
एक झूठा किस्सा,

न जाने कैसा है
ये फोन वाला रोस,
न जाने देता मुझे क्यों
ये किस बात का दोष,

ये बात करता 
मुझपर एहसान करता है
ये बिहार वाला प्यार
मुझे बदनाम करता है,

ये उलाहना देता
मुझे खुदगर्ज कहता है,
पढ़ने की मेरी आदत
मुझपर कर्ज रखता है,
ये बात मुझसे करके 
मुझको छोड़ देता है,
ये और मुझे लुभाता
तुम्हारा झूठा गुस्सा!😎

Wednesday 23 November 2022

रहने दो

जो जैसा है
वो रहने दो,
पढ़ाओ मत
लिखाओ मत,
सिखाओ मत,
मत लगाओ 
HR वाला दिमाग,
राम का जमा किया है
उस पत्थर को 
हिलाओ मत,

सुनो, हंसो और खिलखिलाओ
कुछ उनसे ही हंसना सीख जाओ,
आज गांव की उस जमीन से
हरियाली जलाओ मत,
कोई चिड़ियां
बैठी हुई है डाल पर
आज उसको कबूतरों–सा
उड़ाओ मत,

वह मोम की सी थी सजाई 
और करती थी नुमाइश
पढ़ती थी भले ही वो
किताब से उड़ती थी ख्वाइश
आज वो पैबंद है कुछ
झोपड़ियों की रोशनी 
कर रही रहकर प्रकाशित
आज उसको शहर
कोई राह मत दिखाओ,
राम के वनवास को 
दिवाली से मत सजाओ,

रो लेगी वो 
कुछ और करने को,
कभी और कुछ करने को
आज उसके आंसुओं
की कीमत मत लगाओ,
सुना रही है लोरियां
आज ‘अनय’ को मत जगाओ
आज पंचवटी को को मत उजाड़ो!

माया

अगर होगी तो
हो जाएगी
होने वाली माया,
मै बचता फिरता
और पकड़ के निकलता
आज मैं गड्ढे से
गड्ढे वाली माया से,
माया को मैं समझता
माया की ही छाया से,
राम को मै आंकता हूं
राम की ही माया से!

उधेड़–बुन

उधेड़ता हूं फिर बुनता
मै राम को टटोलता
राम को मैं जानता
पर राम को मैं तौलता,

राम का दिया हुआ 
क्यूं राम से अलग कहा
मै क्या कहा तो क्या हुआ
मै राम से ही प्रश्न किया,

राम की समझ मे मै
राम राम कहता
और राम की मर्जी से मै
उधेड़ता और बुनता!

Saturday 19 November 2022

कब

कब वो राह बनाते हैं
कब वो राह बन जाते हैं,
कब परीक्षा लेते हैं
कब वो नया सीखाते हैं,
कब उपदेश की बारी है
कब सार समझाते हैं,

कब समाधान की परतों मे
नई समस्या लाते हैं,
कब समस्या की नई सकल में
वो उलझन और बढ़ाते हैं,

राम ही जाने 
कब और कैसे,
लीला राम रचाते हैं!

पुराना वाली मुहब्बत

वापस आ गई
आज फिर मेरी
पुरानी वाली बात,
वो इंतज़ार वाली रात
वो अधूरी मुलाकात
वो आंखों की बरसात
वही पुरानी मुहब्बत।

वह सरकार की इनायत
वो शोरगुल, बगावत
वो रूठना–मनाना
वो बातों मे उलझाना
वो किस्से कहानियां
वो छोटी हैरानियां
वापस मेरी आ गई
बेकरारियां भी साथ!


Thursday 17 November 2022

बात

आज बस बात हुई 
यहां की 
वहां की 
इधर की 
उधर की 
ऊपर की 
नीचे की
दाएं की 
बाएं की 
आगे की 
पीछे की 
इसकी 
उसकी

आज बस बात हुई 
भूली हुई 
बिसरी हुई
देखी हुई 
सुनी हुई 
रुकी हुई 
बनी हुई 
बिगड़ी हुई 
चली हुई 

आज फिर से बात हुई 
चाहत की 
मिलन की 
बिछड़ने की 
सवरने की 
मिलने की
बिछड़ने की
आने की 
जाने की 
पकड़ने की 
छोड़ने की 
पाने की 
खोने की
होने की।

आज फिर मुलाकात हुई
पहली बार 
आखरी बार 
ईतनी बार 
उतनी बार
दिल ने चाहा जितनी बार
आज किसी ने रोका नहीं 
न परीक्षा ने 
न किताबों ने 
न स्कूल ने
न मैडम ने
न सर न 
न घंटे की क्लास ने
न prelims ने
न रिजल्ट ने

आज फिर से मिलने का वादा हुआ 
बनारस मे 
इलाहाबाद मे
संगम मे
सितारों मे 
गलियों मे 
बाजारों मे 
चौराहे पर
किनारों पर
यूपी कॉलेज मे 
जेएचवी मे
अस्सी घाट पर 
गंगा के नाव पर
संकटमोचन मे 
काशी विश्वनाथ मे
शादियों मे 
पंचकोश मे
भीड़ मे
बरातों मे
आज कुछ याद नहीं रहा 
समय का 
धूप का 
चादर का 
चटाई का 
टेबल का 
पानी का 
कलम का

आज रुकी नहीं 
कलम मेरी 
कदम मेरे 
फोन की मेरी बैटरी 
या फिर मेरी कविताओं के बंद 
मेरी गजलों के शेर 
मेरे अनुभव के दास्तान 
आज हल्का हो गया 
मेरे दर्द का गुबार
आज फिर से खुल गया 
मेरा पुराना प्यार 
आज बस बात हुई,
पढ़ाई नहीं!


Wednesday 16 November 2022

उधार

उधार की खुशी मेरी
उधार का ही ज्ञान,
उधार पर टिका हुआ
मेरा आत्मसम्मान,

उधार की बात पर
मै बात बनाता,
उधार को खिताब कर
मै राह सजाता,

उधार मांगने को मैं
कहां तक चला जाता,
उधार का विनाश मैं हूं
सर पे उठाता,

राम का उधार क्या 
मैं हूं चुकाता,
या और उधार
मै हूं राम भुलाता!


Sunday 13 November 2022

मित्र

इस गली मे मित्र मेरा
एक रहता था,
वो भी तब का
जब मित्र का मतलब मै
क्या ही समझता था,

वो यहीं पार्क में
हर रोज मिलता था,
बेचकर के चूड़ियां
वो दाव खेलता था,
चब्भे थे पड़ते उसके
पिल्लो मे बहुत सटीक,
बाल थे बड़े–बड़े
निपोर थी निर्भीक,

वह मुझे हर शाम को
गले से मिलता था,
मेरे लिए वो टीम मे
जगह रखता था,
मोड़ पर चौराहे के
मां के साथ रहता था,
हर सुबह, स्कूल मैं
वो बाजार जाता था,

मां उस गली
जाने से मुझको
रोक लेती थी,
उस गली शैतान है
यह बिल देती थी,
अब बड़ा होकर जो मै
परदेस से आया हूं,
चौराहे पर घूमने
एक बार आया हूं,

उस गली के मोड़ पर 
क्या वो अब भी रहता है?
शैतान गरीबी का 
क्या वहां पर अब भी सोता है?


3 दिन

3 दिन की है तपस्या
3 दिन की वेदना,
3 दिन का मोह है
3 दिन की चेतना,

3 दिन तड़प मेरी
3 दिन पुकार है,
3 दिन का द्वंद है
3 दिन उछाल है,

3 दिन की है पिपासा
3 दिन यलगार है,
3 दिन राम भूल
3 दिन विषाक्त हैं,

3 दिन की है परीक्षा
3 दिन अकाज है,
3 दिन ही संकुचित हूं
फिर मेरे श्री राम हैं!

मरहम

परत–दर–परत
हर विचार खोलकर,
राम नाम बसा लिया
कपार खोलकर,

हर गली घूम–घूम
हर काल खोलकर,
देख लिया जन्म भर का
भार खोलकर,

इधर–उधर हुआ बहुत
आंख खोलकर,
पलट–पलट, उठा–पटक
हर भाव तोलकर,

सुलझ रही है भावना
आधार धरकर,
पी रहा हूं आजकल
जो राम घोलकर,

मै मौन हूं
अब सभी से
प्रणाम बोलकर,
सो रहा हूं
उठ रहा,
सिया राम बोलकर!

Saturday 12 November 2022

द्रौपदी के वस्त्र

द्रौपदी क्या थी शरीर
या दुःशासन की कल्पना,
किस परत को ढूंढता था
आज वह निर्वस्त्र कर?

कौन–सी साड़ी छुपा कर
रख सकी है वासना,
मन की वृत्ति मे छुपी है
जब काम की भर्त्सना,

चुप नहीं हुई जो नारी
तंज को सुन पाप के,
पाप चाहता है उसको
मलिन पद दलित करे,

पर जो विलीन हो गई हो
नाम मे श्री कृष्ण के,
उसको उकेर पाए
काम की कोई कल्पना,

आंख मूंद लेंगे वो
या मिट्टी होगी तृष्णा,
वस्त्र या बेवस्त्र हो
जोगिन भजे जो ‘कृष्णा’!

राग

राग से अलग हुआ है
राग अब बदल गया है,
राम नहीं बुझाता
राम नहीं भा रहा,

रास मे घुला–मिला तो
रास मन विलीन है,
राम धर किनार कर
राग नया लीन है,

राग रास छेड़ता है
अंग–अंग भरा मिटा,
तरंग को लगा–बुझा
राग अब डरा रहा,
रक्त को नचा–नचा
कल्पना मे अप्सरा
घड़ी –घड़ी सजा–सजा,

राम को पकड़–पकड़
तोड़ता हूं मैं जकड़,
दूर होके देखता हूं
राग जब रहा बिगड़!

Friday 11 November 2022

स्थिर

तुम नहीं स्थिर 
तो जग नहीं स्थिर,
तुम हुए जो चुप
तो सब शोर लगता है,
तुम हुए बीमार तो
सब जग ही सोता है,
तुम हुए गुमसुम
तो अखबार मे क्या है?
तुमको लगी टट्टी तो
सड़क ही लंबा है,
तुमको हुई आशक्ति
तो हनुमान बेमतलब,
तुमको हुआ जो भ्रम
तो फिर राम माया है,
तुमने पाला द्वंद तो
रावण ले गया मुझको,
तुमको आया द्वेष
शकुनी भा गया सबको,
हो तुम्हे दुविधा तो
गांधी भी हुए असहाय,
तुमको हुआ अभिमान
तो कैलाश भी है क्षद्म

तुमने बोला राम
तो हुआ आराम,
मन रे तो हुआ आराम!

कुछ नहीं

कुछ नहीं हैं
पर्दे के पीछे,
पर्दा काल का
है प्रतिबिंब,

पर्दा वही 
आकर्षित करता,
जिसमे मन और
लगा हो जिस्म,

पर्दा नहीं सभी को खींचे
नहीं सभी को एक–सा,
पर्दे के रंग हैं बहुत
बहुरंगी जगत बिंब–सा,

तुमको कौन–सी 
परत खोलनी,
कौन–सी तुम्हे रिझाएगी,
वही तुम्हारा मुक्ति–बंध है,
संभू नहीं बनाएगी,

राम नाम है सबका मूल
हर भाव की पराकाष्ठा है,
राम नाम का सुख अपार है
राम पर्दों का श्रृष्टा है!

ठौर

आज नहीं तुम
राम ठौर पर,
आज भ्रमर संसार के,
आज हो दृष्टा
जगत मूल के,
शावक हो अभिमान के,

आज जगत से
राम को देखो,
हंस लो उसकी
चर्चा पर,
आज भुलाकर
राम की रचना
बैठो ऊंची 
मज्जा पर,


पर सभी ठौर
जब देख लिया 
तब राम ठौर ही भाएगा,
जब राम कृपा की
वर्षा होगी,
राम बुलावा आएगा!

Wednesday 9 November 2022

सीमा

सीमा के 
इस पार कभी तुम,
मै उस पार
आ जाता हूं,
तुम होती हो शांत कभी
मै चुप–चाप हो जाता हूं,

तुम छेड़ती राग कभी
कभी मैं मल्हार सुनाता हूं,
मै टेरता रहता रात भर
अंधकार की चादर मे,
तुम भोर तक जगती हो
तकिया लेकर भादव मे,

तुम निहारती चांद कभी
मै चांदनी कलम से
लिखता हूं,
तुम सवारती बाल कभी
मै पानी पीने जाता हूं,
तुम टटोलती मुझे कभी
मै तुमपर तर्क लगाता हूं,
तुम कंखियों से देखों
मै छठ पूजा मे आता हूं,
तुम भी उससे बात करो
मै जिससे बतियाता हूं,

तुम मेरी कॉपियां सूंघ रही
मै तुम्हारी कलम चुराता हूं,
तुम इंटरवल मे जाती हो
मै तुम्हारी कुर्सी पर चढ़ जाता हूं,
तुम आती हो,मै आता हूं,
सब आते हैं, सब जाते हैं,
सब मालूम है, सब जानते हैं,
तुम महटीयाती, सब हंसते हैं
मै चलता हूं, शर्माता हूं,

तुम सीमा के उस पार प्रिये
और मै इस पार,
धीरज धारण करती हो 
मै अपनी प्रीत से लड़ता हूं!


Tuesday 8 November 2022

समय

आज समय को
बीत जाने दो,
सामने बैठी रहो
आने जाने वालों को
जाने आने दो,
कुछ बातें करती रहो
खिलखिलाती रहो,

आज सुबह टहलने को
निकले तो थे साथ मे,
कुछ योग करने को
कहते तो थे,
कुछ समय टहलने मे
और जाने दो,

दौड़ने वालों को 
परेशान होने दो,
हाथ मेरा तुम पकड़
फैल कर चलो,
बेला के बाग से
होकर संग चलो,
कुछ फूलों को
केशों को अपने
खींच लेने दो,

चलो घास पर 
ओस की बूंदें 
समेटें साथ,
पांव को संग मे
मेरे नहाने दो,
आज थकने ही
सांसों को मुस्कुराने दो,

सूर्य–नमस्कार 
थोड़ी देर मे करेंगे,
सूर्य को माथे पे
थोड़ा और चढ़ने दो,
भस्त्रिका करने तो
यहां पर रोज आते हैं,
अनुलोम–विलोम से
सांसों को पिरोते हैं,
आज तुमको देखकर ही
ध्यान करने दो,
आज कुछ आध्यात्म की
बदली बरसने दो,
पार्क मे घंटे ही भर का
टाइम टेबल है,
पर आज टाइम टेबल को
टेबल पे रहने दो,

दिन उभरने दो
पसीने निकलने दो,
सब जा चुके हों जब
तो आलस को
मचलने दो,
बिखरने दो खुद को
समेटेंगे हम ही मिलकर,
आज समय के बांध की
सीमा तोड़ बहने दो!



मनोकामना

मन घोंसलों मे बैठकर
तितलियों के संग
उड़ना चाहता है,
मन केचुओं 
के संग रेंगकर,
चिंडियों से 
मिलना चाहता है,
मन रंगों को
हाथ मे लगाकर,
पंख फड़फड़ाना चाहता है!

बहाने

बहानों को उनके
तराना समझ लो,
उनकी नुमाइश
अदाएं समझ लो,
बातों को उनकी
हिदायत समझ लो,
उलझन को समझो
पैमाने समझ के,
उल्फत को उनकी
रिवायत समझ लो!

Sunday 6 November 2022

सहमत

मुझसे कैसे हो नहीं
तुम सहमत,
मै कह रहा हूं
आज बहुत
पढ़ने के बाद,

आज मुंह खोलकर
कर दिया उपकार,
आज फिर तुमपर 
है मेरा पूर्ण सा सत्कार,

पर क्यों तुम 
खोलते हो
नहीं अब
ज्ञान के चक्षु,
हे खुदा इसपर करो
कुछ और भी रहमत!

बड़े

बड़े बन जाते हैं
वो जो बोल जाते हैं,
झूठ किसी के सामने
और भूल जाते हैं,

बाद मे दोहरा के उसको
और छुपाते हैं,
किसी को जानते रहने पर
उससे मुंह चुराते हैं,
बड़े क्यूं दूर जाते हैं,
बड़े क्यूं दूर जाते हैं!

छल

छल करता
मन चंचल,
या अनहोनी का 
है यह भय प्रबल,
मन होता खिन्न–विकल,
कुछ और आगे चल
करता नया प्रयत्न,

नया व्यक्ति सरल
ढूंढता,
छोड़ता जो जटिल
भरा कोई गरल,
इधर और उधर
कचोटता,
बनाता बातों का जंगल,
एक अनेक 
बार बार
छोड़ता विवेक,
कुछ मिलता–जुलता नहीं
आज वह ढूंढता
नया एक संबल,
क्या करता मन एक छल!




तृष्णा

यह तृष्णा है
जीवन की,
तुमसे बातें करने की,
इठलाना तुम्हारा देख सकूं
तुमको आतुर करने की,

तुमको आकर छू लेने की
कुछ अंगों को सहलाने की,
अधूरी हमारी है कहानी
उसको पूरा करने की,

तुम्हारा हाथ पकड़ने की
अपने हृदय लगाने की,
आगोश मे भरकर तुमको घंटो
समय, समाज भुलाने की,

देखने की तुमको विभोर
पर तृष्णा और बढ़ाने की,
तुमको कातर कर देने की
और तृप्ति को, अकुलाने की,

करवटें बदल कर तड़प दिखा
तुम्हारा आवरण हटाने की,
जो है अनकही, अनसुनी बहुत
वो मुख से ही बुलवाने की,

सांस गरम कर देने की
रोंगटे खड़े कर देने की,
आखों मे ज्वाला भर देने
और कंपकपी शरीर मे लाने की,

अक्षेप क्षेप के बंधन से
कुछ आगे बढ़ जाने की,
बदन तुम्हारा और उघार कर
उसपर कलम चलाने की,

मुट्ठियां तुम्हारी पकड़ के
मजबूरी कुछ वक्त चिढ़ाने की,
अपने यौवन की मदिरा का
तुमको ही पान कराने की,

अपने बलिष्ठता मे दबोच कर
तुमको और सताने की,
होने वाले को रोक ज़रा
कुछ नाहक श्राप जुटाने की,

कटाक्ष तुम्हारे झेल वार 
मर्यादा मेरे भुलाने की,
तुम्हारी–मेरी तृष्णा को
मृग–तृष्णा बहुत मिटाने की,

पर वक्त वो सारा गुजर गया
जो नाव तुम्हारा ठहर गया,
यमुना के ठौर पे ठहरा है
अपना भी सत्य ये बदल गया!

Saturday 5 November 2022

आप

आप ही तो हैं राम
आप ही तो करते तप,
आप का गुणगान!

आप की प्रतिज्ञा
आप का ही त्याग,
आप थे जो पहले
उसी का ही राग,

आप का ही शील
आप का ही मोह,
आपकी उदारता
आप का विछोह,

आप मेरे संग
आप मेरे साथ,
आप ही मे बसते
राम सिया साथ!

Friday 4 November 2022

वही

वही तो हूं मै
नहीं तो हूं मै,
सोच मे अलग हूं
कहीं तो हूं मै,

परदे के पीछे बैठा
उसके बगल मे नाचा,
अपने को देखता हूं
अपनी बही तो हूं मै!

Thursday 3 November 2022

वस्तु

तुम्हें मांग लूं खुदा से
कोई वस्तु तो नहीं तुम,
मेरी हसरतों से पैबंद 
कोई हस्ती तो नहीं तुम,

मैंने खुदा बनाया 
सजदे मे जिसको झुककर,
उसीको खुदा ने मांगा
कोई सस्ती तो नहीं तुम,

मैं संग–संग तुम्हारे
संगम के जल नहाया,
आगे सफर बदल दूं
कोई कश्ती तो नहीं तुम,

मछली की आंख भेदूं 
अपने मुकुट सजा लूं,
बाज़ी मे भी लगा दूं
कोई द्रौपदी तो नहीं तुम,

धनुषों को तोड़ दूं मैं
सुदर्शन तुरंत उठा लूं,
तुमसे प्रणय का प्रण लूं
कोई बेबसी तो नही तुम!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...