Wednesday, 9 November 2022

सीमा

सीमा के 
इस पार कभी तुम,
मै उस पार
आ जाता हूं,
तुम होती हो शांत कभी
मै चुप–चाप हो जाता हूं,

तुम छेड़ती राग कभी
कभी मैं मल्हार सुनाता हूं,
मै टेरता रहता रात भर
अंधकार की चादर मे,
तुम भोर तक जगती हो
तकिया लेकर भादव मे,

तुम निहारती चांद कभी
मै चांदनी कलम से
लिखता हूं,
तुम सवारती बाल कभी
मै पानी पीने जाता हूं,
तुम टटोलती मुझे कभी
मै तुमपर तर्क लगाता हूं,
तुम कंखियों से देखों
मै छठ पूजा मे आता हूं,
तुम भी उससे बात करो
मै जिससे बतियाता हूं,

तुम मेरी कॉपियां सूंघ रही
मै तुम्हारी कलम चुराता हूं,
तुम इंटरवल मे जाती हो
मै तुम्हारी कुर्सी पर चढ़ जाता हूं,
तुम आती हो,मै आता हूं,
सब आते हैं, सब जाते हैं,
सब मालूम है, सब जानते हैं,
तुम महटीयाती, सब हंसते हैं
मै चलता हूं, शर्माता हूं,

तुम सीमा के उस पार प्रिये
और मै इस पार,
धीरज धारण करती हो 
मै अपनी प्रीत से लड़ता हूं!


No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...