Wednesday 23 November 2022

रहने दो

जो जैसा है
वो रहने दो,
पढ़ाओ मत
लिखाओ मत,
सिखाओ मत,
मत लगाओ 
HR वाला दिमाग,
राम का जमा किया है
उस पत्थर को 
हिलाओ मत,

सुनो, हंसो और खिलखिलाओ
कुछ उनसे ही हंसना सीख जाओ,
आज गांव की उस जमीन से
हरियाली जलाओ मत,
कोई चिड़ियां
बैठी हुई है डाल पर
आज उसको कबूतरों–सा
उड़ाओ मत,

वह मोम की सी थी सजाई 
और करती थी नुमाइश
पढ़ती थी भले ही वो
किताब से उड़ती थी ख्वाइश
आज वो पैबंद है कुछ
झोपड़ियों की रोशनी 
कर रही रहकर प्रकाशित
आज उसको शहर
कोई राह मत दिखाओ,
राम के वनवास को 
दिवाली से मत सजाओ,

रो लेगी वो 
कुछ और करने को,
कभी और कुछ करने को
आज उसके आंसुओं
की कीमत मत लगाओ,
सुना रही है लोरियां
आज ‘अनय’ को मत जगाओ
आज पंचवटी को को मत उजाड़ो!

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