Thursday, 24 November 2022

श्रृजन

मेरे विचारो की
कैसी साक्षात्कार हो,
मेरे प्रणय की
तुम मूर्तिवार हो,

तुम कांता हो
केशव हो
और रघुराम हो,
तुम शब्द, 
संधि हो
पूर्ण विराम हो,

शिष्या हो
राधिका हो
मिथिला की 
अलंकार हो,
ज्ञान हो भी
मोक्ष हो,
कामना की कटार हो,

गुरु हो 
गोविंद हो
संत और व्यभिचार हो,
तुम प्रेरणा हो
धारणा हो
धर्म–कर्म साथ हो,

तुम कवियों की 
कल्पना हो,
तुम द्रौपदी की 
चित्कार हो,
तुम श्रृजन की
श्रृंखला हो,
श्रृजन का आधार हो!


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